Friday, November 22, 2024

Opinion: जाति जनगणना पर आरएसएस पड़ी नरम, 2024 में बीजेपी को नीतीश के इस मास्टर स्ट्रोक से लगता है डर

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मास्टर स्ट्रोक बीजेपी, उसके सहयोगी और आरएसएस सभी की चिंता का सबब बन गया है. पिछले दिनों बड़े-बड़े मुद्दे आए लेकिन जाति जनगणना ऐसा मुद्दा है जो किसी भी मुद्दे के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता है. सदन के बाहर हुए मिमिक्री केस को ले लीजिए तो जात-पात की बात को देश को तोड़ने वाला बताने वाली बीजेपी उपराष्ट्रपति को जाट बता सिंपथी कार्ड खेल रही है. इसी तरह जहां ममता ने इंडिया गठबंधन के प्रधानमंत्री चेहरे के लिए दलित चेहरा मल्लिकार्जुन खड़गे को आगे किया तो उनके नाम पर नीतीश कुमार की नाराजगी की कथित खबर को चिराग पासवान ने नीतीश कुमार को दलित विरोधी साबित करने के लिए इस्तेमाल कर लिया

5 राज्यों में कांग्रेस ने किया था जाति जनगणना का वादा

हाल में पांच राज्यों में हुए चुनाव में कांग्रेस के जाति जनगणना के वादे को लोगों का समर्थन नहीं मिला. प्रधानमंत्री मोदी ने भी साफ कहा कि वो जाति जनगणना का विरोध करते है क्योंकि ये देश को बांटने वाला है. कांग्रेस जो बिहार में जाति गणना के नीतीश के काम को मास्टर स्ट्रोक मान संसद से लेकर सड़क तक ओबीसी के लिए जितनी आबादी उतनी भागीदारी के नारे के साथ 2024 के रण को जीतने निकली थी उसकी लिए राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इसका नहीं चल पाना चिंता का विषय है. वैसे अगर आप भी 5 राज्यों के नतीजों के बाद जाति गणना के मुद्दे की ताकत को कम आंकने लगे है तो थोड़ा ठहरिए. क्योंकि भले बड़े स्तर पर ये मुद्दा फिलहाल चर्चा का विषय न नज़र आ रहा हो लेकिन इस मुद्दे को लेकर बीजेपी और आरएसएस दोनों बेचैन जरुर है.

जाति जनगणना पर आरएसएस की पहले न फिर हां

इस बात का सबूत इन दो घटनाओं में आपको मिल जाएगा. 19 नवंबर को नागपुर में आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने महाराष्ट्र राज्य विधानसभा और परिषद दोनों के सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और शिवसेना (शिंदे समूह) के विधायकों का एक दौरा करवाया. इस दौरे में आरएसएस ने जाति जनगणना पर अपना रुख साफ करते आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक और विदर्भ प्रांत के प्रमुख श्रीधर घाडगे ने कहा, “हमें इसमें कोई फ़ायदा नहीं बल्कि नुकसान दिखता है. यह असमानता की जड़ है और इसे बढ़ावा देना उचित नहीं है,”
यानी 5 राज्यों में चुनाव के नतीजों के बाद जोश-जोश में आरएसएस ने जाति जनगणना को नकार दिया लेकिन फिर अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर की तरफ से एक बयान जारी कर कहा गया है कि ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किसी भी प्रकार के भेदभाव और विषमता से मुक्त समरसता एवं सामाजिक न्याय पर आधारित हिंदू समाज के लक्ष्य को लेकर सतत कार्यरत है. यह सत्य है कि विभिन्न ऐतिहासिक कारणों से समाज के अनेक घटक आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ गए.’
बयान में आगे कहा गया, ‘उनके विकास, उत्थान एवं सशक्तिकरण की दृष्टि से विभिन्न सरकारें समय-समय पर अनेक योजनाएं एवं प्रावधान करती हैं, जिनका संघ पूर्ण समर्थन करता है. पिछले कुछ समय से जाति आधारित जनगणना की चर्चा दोबारा शुरू हुई है. हमारा यह मत है कि इस का उपयोग समाज के सर्वांगीण उत्थान के लिए हो और यह करते समय सभी पक्ष यह सुनिश्चित करें कि किसी भी कारण से सामाजिक समरसता एवं एकात्मकता खंडित ना हो.’
यानी एक तरफ जहां आरएसएस ने एक महीने पहले जाति गणना को सिरे से नकार दिया था. उसे अब इसके पक्ष में गोल-मोल ही सहीं बयान देना पड़ा. ऐसे ही गोल-मोल बयान 5 राज्यों में चुनाव से पहले अमित शाह ने भी दिए थे जब उन्होंने कहा था कि बीजेपी को जाति गणना से दिक्कत नहीं है.

जाति की राजनीति की ताकत को समझती है बीजेपी

वैसे दूसरों पर जाति की राजनीति का आरोप लगाने वाली बीजेपी उपराष्ट्रपति की मिमिक्री मामले में खुलकर उन्हें जाट बता रही है और उनके अपमान को जाटों का अपमान बता रही है. इतना ही नहीं बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार को किसी तरह किनारे लगाने की कोशिश में लगी बीजेपी और उसके सहयोगी दल किसी भी मुद्दे को नहीं छोड़ते जिसपर वो नीतीश को दलित विरोधी बता सकें.

नीतीश कुमार को दलित विरोधी बताना है मुख्य मकसद

खबर ये थी कि इंडिया गठबंधन की बैठक में नीतीश हिंदी को लेकर नज़ार हुए बाहर बयान ये दिया जाने लगा कि असल में नीतीश कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे का नाम बतौर गठबंधन के प्रदानमंत्री चेहरे के तौर पर आगे करने से नाराज़ हुए. हद तो ये हो गई कि एलजेपी पासवान गुट के नेता चिराग पासवान ने नीतीश के प्रधानमंत्री बनने के सपने को भी दलित विरोधी करार दे दिया. चिराग पासवान ने कहा, “नितिश जी का खड़गे जी के नाम पर विफरना बहुत स्वाभाविक है. इसलिए नहीं कि वो किसी दूसरे दल के नेता है है इसलिए कि वो दलित समुदाय से आते हैं. और ये बात स्पष्ट है, प्रधानमंत्री जी ने भी चुनावी सभाओं में उदाहरण के तौर पर इसको समझाया था कि किस प्रकार से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी पूणता दलित विरोधी सोंच रखते हैं. मेरे नेता मेरे पिता जी को अपमानित करने के पीछे क्या कारण था. क्यों क्योंकि दलित समाज का व्यक्ति बिहार की राजनीति में आगे बढ़ रहा था तो इसको किसी भी तरीके से उनको काटो उनको हटाओ. आखिर आखिर तक जिसका जिक्र प्रधानमंत्री जी ने किया कि किस तरीके से राज्यसभा नामांकन के दौरान, किस तरीके से उनको अपमानित करने का काम किया गया. पूर्व मुख्यमंत्री बिहार के जीतन राम मांझी को जो अभी कुछ दिनों पहले बिहार की विधानसभा में किस तरह से अपशब्दों का इस्तेमाल कर कर उनको अपमानित करने का प्रयास किया गया.”

2024 में मुख्य मुद्दा हो सकता है जाति जनगणना

यानी भले ही इंडिया गठबंधन जाति गणना की ताकत को भूल गया हो लेकिन सत्ता पक्ष को इसका बखूबी अंदाज़ा है. इसलिए धीरे-धीरे ही सही आरएसएस भी जाति जनगणना के पक्ष में आती नज़र आ रही है. कुल मिला कर रहे तो किसी भी दिन 2024 चुनाव का मुख्य मुद्दा फिर जाति जनगणना बन सकता है. ऐसा मुद्दा जो बीजेपी-आरएसएस के लिए आगे कुआं पीछे खाई साबित हो सकता है.

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