Indian rupee in crisis : इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव ने वैश्विक बाजारों में हलचल मचा दी है. इसका असर भारतीय रुपये पर भी पड़ रहा है. मुद्रा विशेषज्ञों का मानना है कि ग्लोबल अनिश्चितताओं के बढ़ने और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल से रुपये पर दबाव बढ़ेगा. ये जल्द ही 87 के स्तर को पार कर सकता है. अगर रुपया इस स्तर के पार जाता है, तो यह इस साल मार्च के बाद पहली बार इसमें बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा.
Indian rupee in crisis : जून में 1.2 फीसदी कमजोर हुआ रुपया
इजरायल-ईरान के बीच तनाव शुरू होने से रुपये में 0.6 प्रतिशत की गिरावट आई है. 12 जून को तनाव बढ़ने से पहले घरेलू मुद्रा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 85.6038 पर कारोबार कर रही थी और 20 जून को बंद होने पर डॉलर के मुकाबले 86.5900 पर आ गई. ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक, जून में अब तक रुपया 1.2 फीसदी कमजोर हुआ है, जबकि इससे पहहले 2025 में यह 1.1 फीसदी की गिरावट झेल चुका है. मनी कंट्रोल की रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले दिनों में रुपया 86.00 से 87.50 के दायरे में कारोबार करेगा. रुपया 87.50 का स्तर भी पार कर सकता है.
क्यों बढ़ रही है रुपये की बेचैनी?
इज़रायल और ईरान के बीच तनाव ने नया मोड़ ले लिया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पुष्टि की है कि अमेरिकी डिफेंस विमानों ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर हमला किया, जिसमें तेहरान का अहम परमाणु स्थल फोर्डो यूरेनियम एनरिचमेंट प्लांट भी शामिल है. यह पहली बार है जब अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर सीधा हमला किया है. इस कदम से ईरान की ओर से तीखी प्रतिक्रिया की आशंका है, जिससे मध्य पूर्व में तनाव और बढ़ सकता है. इस तनाव का असर कच्चे तेल की कीमतों पर भी पड़ा है. ब्रेंट क्रूड की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं, जो भारत जैसे देश के लिए चिंता का सबब है.
भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का 85 फीसदी से ज्यादा आयात करता है. रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों का कहना है कि कच्चे तेल की कीमत में 10 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी भारत के चालू खाता घाटे को जीडीपी के 0.3 फीसदी तक बढ़ा सकती है और महंगाई को हवा दे सकती है. तेल आयातकों की डॉलर मांग बढ़ने से रुपये पर और दबाव पड़ता है.
क्या करेगा रिजर्व बैंक?
रुपये में बढ़ती अस्थिरता को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक यानी RBI के हस्तक्षेप की संभावना बढ़ गई है. विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई रुपये की अस्थिरता को नियंत्रित करने की कोशिश कर सकता है. जानकारों का मानना है कि भू-राजनीतिक तनाव के अलावा रुपये की चाल पर विदेशी निवेश का प्रवाह भी अहम भूमिका निभाएगा. अगर विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से पैसा निकालते हैं, तो रुपये पर दबाव और बढ़ सकता है.