Thursday, October 2, 2025

2024 में संपत्ति बढ़ी 14.5% से, भारतीय परिवारों की दौलत ने लगाई रफ्तार

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व्यापार: भारतीय परिवारों की संपत्ति 2024 में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई है। इसमें बीते आठ वर्षों में सबसे तेज वृद्धि दर्ज की गई है। आलियांज ग्लोबल की हालिया जारी वैश्विक रिपोर्ट-2025 में बताया गया कि 2024 में भारतीय परिवारों की संपत्ति 14.5 फीसदी की दर से बढ़ी है। यह देश में तेजी से बढ़ती मध्य वर्ग की क्षमता को दिखाता है।

करीब 60 देशों को कवर करने वाली इस रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले दो दशकों में भारत की वास्तविक प्रति व्यक्ति वित्तीय संपत्ति पांच गुना बढ़ी है। यह किसी भी अन्य उभरती अर्थव्यवस्था के मुकाबले सबसे अच्छा प्रदर्शन है। पिछले साल प्रतिभूतियों में सबसे अधिक वृद्धि हुई, जो 28.7 फीसदी थी। बीमा और पेंशन में 19.7 फीसदी की वृद्धि हुई है। बैंक जमा में 8.7 फीसदी की वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय परिवारों के पोर्टफोलियो का 54 फीसदी हिस्सा बैंक जमाओं से आता है। ऐसे में इसमें वृद्धि बढ़ती बचत को दिखाती है। वास्तविक रूप से महंगाई के बाद वित्तीय संपत्तियों में 9.4 फीसदी की वृद्धि हुई है। इससे खरीदने की शक्ति कोरोना महामारी के पूर्व स्तर से 40 फीसदी ऊपर पहुंच गई है। यह पश्चिमी यूरोप से बिल्कुल अलग है, जहां खरीद क्षमता 2019 से 2.4 फीसदी कम बनी हुई है। 2024 में प्रति भारतीय शुद्ध वित्तीय संपत्तियां 2,818 डॉलर थीं, जो वर्ष 2023 की तुलना में 15.6 फीसदी अधिक है।

देनदारी 12.1 फीसदी की दर से बढ़ी
आठ वर्षों में देनदारी बढ़ने की दर 12.1 फीसदी रही। इससे परिवारों पर कर्ज देश की जीडीपी का 41 फीसदी रहा। 2024 में अमेरिका के वैश्विक वित्तीय संपत्तियों की वृद्धि का आधा हिस्सा हासिल किया। पिछले दशक में अमेरिकी परिवारों ने दुनियाभर में 47 फीसदी संपत्ति बढ़ाई है। चीन में यह 20 फीसदी और पश्चिमी यूरोप में 12 फीसदी पर रही है।

उभरते बाजारों में बढ़ा कर्ज अनुपात
उभरते बाजारों में दो दशकों में ऋण अनुपात में तेज वृद्धि हुई है। सूची में सबसे ऊपर चीन है, जहां अनुपात करीब चार गुना बढ़कर 64 फीसदी हो गया है। लैटिन अमेरिका और पूर्वी यूरोप के अन्य उभरते बाजारों में यह दोगुना हुआ है। भारत, फिलीपीन, वियतनाम जैसे कई देशों में आर्थिक उत्पादन के मुकाबले कर्ज तेजी से बढ़ा है। वियतनाम में पहले ही 50 फीसदी की सीमा से ऊपर 53.1 फीसदी पर है। भारत में यह 48 फीसदी से थोड़ा ही नीचे है।

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