नई दिल्ली । बीते सप्ताह भारत के तेल-तिलहन बाजार में त्योहारों के मौसम के बावजूद कीमतों में व्यापक गिरावट देखी गई। सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, कच्चा पामतेल (सीपीओ), पामोलीन और बिनौला तेल के थोक भाव गिरावट के साथ बंद हुए। विशेषज्ञों के अनुसार, कमजोर मांग, ऊंचे थोक भाव और खराब कारोबारी धारणा के कारण बाजार दबाव में रहा। मलेशिया एक्सचेंज में पाम तेल की कीमतें सट्टेबाजी के चलते मजबूती दिखा रही हैं, लेकिन भारत में ठंड के मौसम के कारण पाम तेल की मांग सामान्यतः घटती है, क्योंकि यह ठंड में जम जाता है। इस वजह से घरेलू बाजार में पाम और पामोलीन तेल के दाम दबाव में आए। वहीं सरसों तेल की कीमतें भी आयातित रिफाइंड तेलों की तुलना में अधिक होने से उसकी मांग कमजोर रही। सरकार ने आयात शुल्क मूल्य में भी वृद्धि की है। सीपीओ के आयात शुल्क में 41, पामोलीन में 107 और सोयाबीन डीगम तेल में 21 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है। इसके अलावा, आगामी रबी तिलहन फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में भी वृद्धि की गई है। डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी के चलते आयात महंगा हुआ है, जिससे बाजार में अतिरिक्त दबाव बना। सरसों की फसल किसानों और स्टॉकिस्टों के पास होने के कारण बिकवाली तेज हुई, जिससे दामों में गिरावट आई। बीते दो महीनों में सरसों तेल के थोक दाम लगभग 20-22 रुपए प्रति किलो तक टूट चुके हैं। हालांकि, खुदरा बाजार में इस गिरावट का कोई खास असर नहीं दिखा है, जो बाजार पारदर्शिता के लिए चिंता का विषय है। सोयाबीन, मूंगफली और बिनौला तेलों के दाम भी कमजोर मांग और निर्यात में कमी के कारण नीचे आए। इस तरह तेल-तिलहन बाजार फिलहाल अस्थिर बना हुआ है, जबकि त्योहारों के बाद मांग में सुधार की उम्मीद है।