Former CJI DY Chandrachud : भारत के 50वें मुख्य न्यायधीश के तौर पर सेवानिवृत हो चुके जस्टिस डी. वाई चंद्रचूड़ को लेकर एक खबर राजनीतिक गलियारों में तेजी से फैल रही है. कहा जा रहा है कि जस्टिस डी वाई चंद्रचूड को लेकर कुछ बड़ा होने वाला है. दरअसल जस्टिस डी वाय चंद्रचूड़ के खिलाफ लगाये गये एक आरोप के मामले में राष्ट्रपति की ओर से जांच के आदेश दिये गये हैं.
Former CJI Justice Chandrachud : किस विवाद में फंसे हैं पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ?
दरअसल पिछले साल जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के रिटायरमेंट से केवल दो दिन पहले 8 नवंबर को राष्ट्रपति को एक शिकायत दर्ज कराई गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि एक मामले में चीफ जस्टिस रहते हुए अतिसक्रियता दिखाई गई थी, जो पद का संभावित दुरुपयोग था.
तत्कालीन मुख्य न्यायधीश के रिटायरमेंट से ठीक पहले उनपर आरोप लगाने वाले थे पटना हाईकोर्ट के सेवा निवृत जस्टिस राकेश कुमार. रिटायर्ट जस्टिस राकेश कुमार ने राष्ट्रपति को लिखे अपने पत्र में कहा था कि ‘सीजेआई चंद्रचूड़ ने एक मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने में अतिसक्रियता दिखाई थी.’ रिटायर्ट जस्टिस ने इस मामले मे राष्ट्रपति से सीबीआई जांच कराने की मांग की थी.
अब इसी मामले में जानकारियां आ रही है कि राष्ट्रपति भवन ने जांच के लिए आदेश दे दिये हैं.
राष्ट्रपति से आदेश देने के बाद से ही से वाल उठने लगे हैं कि क्या किसी पूर्व मुख्य न्यायधीश के खिलाफ जांच उसी तरह से होगी , जैसे देश के किसी आम नागरिक के साथ होती है ?
अगर जांच सही पाई जाती है तो क्या ‘उन्हें’ भी हो सकती हैं जेल ?
ये सवाल इसलिए क्योंकि ये इस मामले मे अगर जांच होती है तो ये मामला केवल नैतिक ही नहीं संवैधानिक भी हो सकता है.पूर्व सीजेआई जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ के निष्पक्षता पर पहले भी आरोप लगे थे, जब गणेश पूजन के समय प्रधानमंत्री मोदी उनके घर पहुंचे थे.उस समय भी चीफ जस्टिस से व्यवहार पर सवाल उठे थे. बतौर चीफ जस्टिस पीएम को घर बुलाना और पूजा में सम्मिलित होने को धर्मनिर्पेक्षता और नैतिकता से जोड़ा गया था. हलांकि बाद मे ये भी कहा गया कि ये व्यक्तिगत आस्था का सवाल है.
लेकिन इसबार पूर्व सीजेआई पर जो आरोप लगे हैं वो आस्था का नही बल्कि आचरण का सवाल है. आरोप है तत्कालीन चीफ जस्टिस ने एक विशेष मामले के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया.
वो मामला क्या था जिसे लेकर की गई थी शिकायत ?
पटना हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज राकेश कुमार ने आरोप लगाया था कि पूर्व सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़ ने कथित तौर पर फर्जी दस्तावेज बनाकर किसी को दोषी ठहराने का प्रयास करने की आरोपी तीस्ता शीतलवाड़ की जमानत याचिका पर सुनवाई के लिए एक ही दिन में दो बार विशेष पीठ गठित की थी.सीजेआई की द्वारा गठित पीठ में सुनवाई हुई और जमानत पर जज एक मत नहीं हुए. फिर फैसला हुआ कि मामले को सीजेआई के पास भेज दिया जाये, ताकि सीजेआई बड़ी पीठ का गठन करके मामले सुनवाई कर सके. मामला सीजेआई के पास गया और सीजेआई ने एक ही दिन में दूसरी पाठ का गठन कर दिया जिसमें तीस्ता शीतलवाड की जमानत मंजूर कर दी गई. ये सुनवाई 1 जुलाई 2023 को हुई जब सुप्रीम कोर्ट में छुट्टियां चल रही थी.
चीफ जस्टिस का विशेषाधिकार है पीठ का गठन
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में कौन सा मामला कब लगाया जाये, ये तय करने का विशेष अधिकार सीजेआई को ही होता है.सीजेआई मास्टर ऑफ रोस्टर होते हैं और किसी भी मामले की सुनवाई के लिए उसकी अर्जेंसी को देखते हुए पीठ गठित कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट में कई बार ऐसा हुआ है जब कोर्ट छुट्टी वाले दिन, या आधी रात को भी खुले हैं और अर्जेंट मामलों के सुनवाई हुई है.
रिटायर्ज जस्टिस राकेश कुमार वही जज हैं जिन्होने पटना हाईकोर्ट में जज रहते हुए अगस्त 2019 में कोर्ट के अंदर होने वाले भ्रष्टाचार के बारे में फैसला दिया था. हलांकि उस फैसले के बाद खूब हंगामा हुआ और दो महीने बाद ही उनका तबादला आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट कर दिया गया था.
जमानत देने के पक्षधर रहे है पूर्व सीजेआई
वैसे CJI रहते हुए भी डीवाई चंद्रचूड़ ने जमानत को लेकर साफ कहा था कि जमानत नियम है और जेल अपवाद है. पूर्व CJI ने इंडियन एक्सप्रेस के इवेंट में कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता का मतलब हमेशा सरकार के खिलाफ फैसला सुनाना नहीं होता. लेकिन कुछ प्रेशर ग्रुप इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का यूज करके अदालतों पर दबाव डालकर अपने पक्ष में फैसला पाने की कोशिश कर रहे हैं.
पूर्व सीजेआई ने कहा था कि, मैंने A-अर्नब से Z-जुबैर तक को जमानत दी. यही मेरी फिलॉसफी, न्यायपालिका की स्वतंत्रता का मतलब सरकार के खिलाफ फैसला सुनाना नहीं
उन्होंने कहा था कि, जमानत नियम है और जेल अपवाद है, इस सिद्धांत का मुख्य रूप से पालन किया जाना चाहिए.
इसी तरह का एक बयान पूर्व सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने अपने कार्यकाल के दौरान बेंगलुरु के बर्कले सेंटर के तुलनात्मक समानता और भेदभाव विरोधी 11वें वार्षिक सम्मेलन के दौरान भी दिया था. उन्होंने कहा था कि, जब अपराध के महत्वपूर्ण मुद्दों को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है, तो ट्रायल जज जमानत न देकर सेफ खेलना पसंद करते हैं.
मुख्य न्यायाधीश ने प्रत्येक मामले की बारीकियों को देखने के लिए ‘मजबूत कॉमन सेंस’ की आवश्यकता पर जोर दिया था. सीजेआई ने कहा कि जिन लोगों को ट्रायल कोर्ट में जमानत मिलनी चाहिए और उन्हें वहां नहीं मिल रही है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें हमेशा उच्च न्यायालयों का रुख करना पड़ता है.
अब देखना दिलचस्प होगा कि पूर्व जस्टिस चंद्रचूड़ के खिलाफ की गई उनकी शिकायत पर सरकार क्या कदम उठाती है क्योंकि राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद अब मामला कानून मंत्रालय होते हुए कार्मिक विभाग यानी DOPT तक पहुंच चुका है. कई बड़ी हस्तियों से जुड़ी कार्रवाईयों में सुप्रीम कोर्ट खुद कह चुका है कि न्याय ना केवल होना चाहिये बल्कि होता हुआ दिखना भी चाहिये. तो अब सवाल है कि क्या सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई में भी वही तत्परता दिखाई जायेगी. क्या का कानून की प्रक्रिया इतनी ही तेजी से पूर्व सीजेआई के खिलाफ लगे आरोपों की जांच करेगी ?
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