दिल्ली : हाल के दिनों में अलग अलग राज्यों में उम्र कैद की सजा काट रहे अपराधियों को जेल Jail से छोड़ने की होड़ सी लगी है. अपराधी छोड़े तो जाते हैं कानून के हिसाब से ही लेकिन रिहा किए जाने वाले अपराधियों को चुनने की प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे हैं. अगर कानून की नजरों में सभी बराबर हैं तो अपराधियों को जेल Jail रिहा करते समय बराबरी का सिद्धांत कहां चला जाता है.
Jail से रिहाई में बराबरी का सिद्धांत कहां है ?
वैसे तो देश का कानून और संविधान कहता है कि यहां सब कोई बराबर हैं. कोई अमीर गरीब नहीं कोई छोटा बड़ा नहीं लेकिन कानून के सामने बराबरी के दावों के बीच कुछ हाइप्रोफाइल कांड के दोषियों की रिहाई कुछ और ही कहानी कहती है. खासकर तब जब दोषियों को जेल Jail से रिहा करने की हर राज्य की अपनी अलग व्याख्या और क्राइटेरिया है.
बिलकिस बानो के 11 बलात्कारियों की रिहाई
गुजरात के बिलकिस बानो गैंगरेप केस में ग्यारह सजा पाए दोषियों को सरकार ने Jail से रिहा कर दिया. 2002 में गुजरात दंगों के दौरान 11 लोगों ने बिलकिस बानो के साथ गैंग रेप किया उस समय बिलकिस 5 महीने की प्रिग्नेंट थी. बिलकिस की मासूम बच्ची समेत पूरे परिवार को मौत के घाट उतार दिया गया. कोर्ट में पेश गवाह और सबूत के आधार पर ग्यारह आरोपी दोषी पाए गए. कोर्ट ने उन्हे उम्र कैद की सजा सुनाई. सुप्रीम कोर्ट ने सजा को बरकरार रखा लेकिन 14 साल की सजा पूरी होने के बाद गुजरात सरकार ने सभी 11 बलात्कारियों को रिहा कर दिया. जेल से छूटने के बाद उनका फूल माला से स्वागत किया गया.
दरअसल रिमिशन पॉलिसी के तहत रिहाई मांगी गई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये गुजरात सरकार ही तय करे. कोर्ट के निर्देश पर एक कमिटी बना दी गई और कमिटी की सिफारिश पर सभी ग्यारह दोषियों को रिहा कर दिया गया. इस रिहाई पर बहुत हंगामा हुआ.
जी कृष्णैया के हत्यारे आनंद मोहन की रिहाई
एक डीएम यानी आईएएस जी कृष्णैया की हत्या में पहले फांसी और फिर उम्र कैद की सजा पाने वाले बिहार के बाहुबली आनंद मोहन का मामला तो बिलकिस केस से भी आगे है. आनंद मोहन को रिहा करने के लिए बिहार सरकार ने तो जेल से रिहाई वाले कानून में ही संशोधन कर दिया. 1994 में डॉन छोटन शुक्ला की हत्या के बाद उसकी लाश के साथ बाहुबली आनंद मोहन अपने समर्थकों के साथ प्रदर्शन कर रहे थे.उसी वक्त गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की गाड़ी उधर से गुजरी. गुस्साई भीड़ ने डीएम को पीट पीट कर मार डाला. सबूत कहते हैं कि डीएम कृष्णैया की मौत में सीधे सीधे आनंद मोहन का हाथ था और ये बात कोर्ट में साबित भी हो गई. आनंद मोहन को फांसी की सजा सुनाई गई लेकिन पटना हाईकोर्ट ने रहमदिली दिखाते हुए फांसी को उम्रकैद में बदल दिया. 2023 में नीतीश जी की नजरे इनायत हुई और 26 अपराधियों के साथ आनंद मोहन की भी रिहाई हो गई.
मधुमिता शुक्ला के हत्यारे अमरमणि-मधुमणि की रिहाई
लखनऊ की कवयित्री मधुमिता शुक्ला के हत्यारे अमरमणि और मधुमणि की रिहाई की कहानी तो और भी दिलचस्प है. अपनी प्रेमिका मधुमिता शुक्ला की गोली मारकर हत्या करने वाले हत्यारे अमरमणि और हत्या में शामिल उसकी पत्नी मधुमणि को कोर्ट ने उम्र कैद की सजा सुनाई थी. लेकिन बीस साल जेल में रहने और अच्छे आचरण के आधार पर हत्यारे अमरमणि और उसकी पत्नी को रिहा कर दिया गया. चौंकाने वाली बात ये है कि हत्यारे अमरमणि और उसकी पत्नी बीस साल में से कुल एक साल चार महीना ही जेल में रहे. बाकी का समय उन दोनों ने इलाज के नाम पर जेल के बदले गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में गुजारा. पिछले 10 साल में से साढ़े आठ साल अस्पताल में इलाज कराते रहे. उनको बीमारी क्या थी इसका पता किसी को नहीं है. इलाज करने वाले डॉक्टर को भी नहीं पता था कि उनको बीमारी क्या थी. क्या किसी आम अपराधी को ये सुविधा मिल सकती है.
जेसिका लाल के हत्यारे मनु शर्मा की रिहाई
दिल्ली की मॉडल जेसिका लाल मर्डर केस में भी यही हुआ. शराब ना मिलने पर सरे आम सबके सामने जेसिका लाल की गोली मार कर हत्या करने वाले, उंची पहुंच और रसूख वाले सिद्धार्थ वशिष्ठ उर्फ मनु शर्मा को समय से पहले रिहा कर दिया गया. वैसे तो उसे उम्रकैद की सजा मिली थी लेकिन जेल में रहने के दौरान ना जाने कितनी बार उसे पैरोल मिली. पैरोल के दौरान ही उसने शादी की और बच्चा भी पैरोल के दौरान ही हुआ.
सजा में भी मजा करते हैं रसूख वाले
कहने का मतलब ये कि कानून के सामने बराबरी की बात करने वाले देश में हाइप्रोफाइल मामलों में रिहाई कैसे होती है ये जांच का विषय है. जिस तरह से हर राज्य में अपराधियों को समय से पहले रिहा करने का ट्रेंड बढ़ा है उसने सुप्रीम कोर्ट को भी चिंता में डाल दिया है. जब बिलकिस बानो के हत्यारों को रिहा करने का मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया तो कोर्ट ने पूछा कि रिहा करने के मामले में भेद भाव क्यों किया गया. इस सुविधा का लाभ अन्य कैदियों को क्यों नहीं दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि जब देश की जेलें कैदियों से भरी पड़ी हैं तो फिर सुधार का मौका केवल इन्हीं लोगों को क्यों दिया गया. सुप्रीम कोर्ट के इन सवालों को देखें तो लगता है कि कानून की नजर में बराबरी की बात महज कागजी है. दरअसल पैसा पावर और रसूख की वजह से बड़े लोगों के लिए सजा में भी मजा ही होता है.