VP Dhankhar On PM Modi : अपनी बेबाक शैली के लिए मशहूर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज कहा कि “हमारे प्रधानमंत्री ने कौटिल्य के दर्शन को कर्म में उतारा है. कौटिल्य की विचारधारा शासन का एक ग्रंथ है, जो राज्य संचालन, सुरक्षा, और राजा की भूमिका—जो अब निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं—हर पहलू को समाहित करता है. आज के बहुध्रुवीय विश्व में, जहां गठबंधन लगातार बदलते रहते हैं, कौटिल्य ने पहले ही यह कल्पना की थी. मैं कौटिल्य को उद्धृत करता हूं: ‘पड़ोसी राज्य शत्रु होता है, और शत्रु का शत्रु मित्र होता है.’ कौन सा देश इस बात को भारत से बेहतर जानता है? हम सदैव वैश्विक शांति, वैश्विक बंधुत्व और वैश्विक कल्याण में विश्वास रखते हैं.”
VP Dhankhar On PM Modi : हमारे प्रधानमंत्री एक महान दूरदर्शी
नई दिल्ली में इंडिया फाउंडेशन के कौटिल्य फेलोज़ से संवाद करते हुए श्री धनखड़ ने कहा, “हमारे प्रधानमंत्री, एक महान दूरदर्शी हैं, जो बड़े पैमाने पर सोचते हैं. वे व्यापक परिवर्तन में विश्वास करते हैं. एक दशक के शासन के बाद, परिणाम स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं. कई दशकों के अंतराल के बाद, हमें ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जो लगातार तीसरी बार सत्ता में हैं और यही फर्क ला रहा है.”
‘कौटिल्य की तरह के हमारे प्रधानमंत्री की सोच’
उपराष्ट्रपति ने कहा कि कौटिल्य का एक विशेष जोर था, “लोकतंत्र भागीदारीपूर्ण होना चाहिए; विकास भी भागीदारीपूर्ण होना चाहिए. उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति के राष्ट्रीय कल्याण में योगदान पर बल दिया. एक राष्ट्र को शिष्टाचार और अनुशासन परिभाषित करते हैं — जो व्यक्तिगत स्तर पर होता है. मैं कौटिल्य को उद्धृत करता हूं: ‘जैसे एक पहिया गाड़ी को नहीं चला सकता’…..वैसे ही प्रशासन अकेले नहीं किया जा सकता.”
प्रधानमंत्री ने कैसे अपनाया कौटिल्य का मार्ग
उपराष्ट्रपति धनकड़ ने कहा कि कैसे ये सिद्धांत आज के शासन में परिलक्षित होते हैं, “हमारे देश में एक नवाचारपूर्ण प्रशासन है. पहले कुछ जिले पिछड़े हुए माने जाते थे, जहां नौकरशाह नहीं जाते थे. प्रधानमंत्री मोदी ने इन जिलों को ‘आकांक्षी जिले’ नाम दिया और अब वे ‘आकांक्षी जिले’ विकास के अग्रणी जिले बन गए हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने यह सोचा कि लोग महानगरों की ओर जा रहे हैं, इसलिए टियर 2, टियर 3 शहरों को भी आर्थिक गतिविधियों के केंद्र बनाना चाहिए. उन्होंने ‘स्मार्ट सिटी’ की संकल्पना प्रस्तुत की. स्मार्ट सिटी का मतलब केवल सुंदरता या अवसंरचना नहीं था, बल्कि यह सुविधा केंद्रित सोच थी—छात्रों और उद्यमियों के लिए.”
शक्ति और शासन के मूलभूत सिद्धांतों पर विचार करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “शक्ति को उसकी सीमाओं से परिभाषित किया जाता है। लोकतंत्र तब ही पोषित होता है जब हम शक्ति की सीमाओं को समझते हैं। यदि आप कौटिल्य की दर्शन में गहराई से जाएं, तो पाएंगे कि यह सब अंततः एक ही बिंदु पर केंद्रित होता है—जनकल्याण, यही है सुशासन का अमृत।”
कौटिल्य के अर्थशास्त्र का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “कौटिल्य ने कहा, ‘राजा की प्रसन्नता उसकी प्रजा की प्रसन्नता में है.’ यदि आप किसी भी लोकतांत्रिक देश का संविधान देखें, तो पाएंगे कि यही दर्शन लोकतांत्रिक शासन और मूल्यों की आत्मा है.”
भारत की सभ्यतागत परंपरा पर विचार करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “लोकतंत्र तब फलता-फूलता है जब अभिव्यक्ति और संवाद एक-दूसरे के पूरक होते हैं. यही लोकतंत्र को अन्य शासन प्रणालियों से अलग करता है. भारत में लोकतंत्र केवल संविधान के लागू होने या विदेशी शासन से स्वतंत्र होने के बाद शुरू नहीं हुआ. हम हज़ारों वर्षों से लोकतांत्रिक भावना के साथ जीते आ रहे हैं और यह अभिव्यक्ति तथा संवाद की पूरक प्रणाली—अभिव्यक्ति, वाद-विवाद—वैदिक संस्कृति में ‘अनंत वाद’ के रूप में जानी जाती है.”