Wednesday, July 23, 2025

एक देश एक चुनाव को जेडीयू का मिला समर्थन, राजीव रंजन बोले- योजनाओं को इससे मिलेगी गति

- Advertisement -

One Nation One Election : विपक्ष मे रहते हुए वन नेशन वन इलेक्शन (One Nation One Election) का विरोध करने वाली नीतीश कुमार की जेडीयू ने भी अब मोदी सरकार के महत्वकांक्षी प्रस्ताव को समर्थन दे दिया है. न्यूज नेशन की खबर के मुताबिक, जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि अगर ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ की व्यवस्था बनती है तो इससे देश भर में विकास की योजनाओं को लेकर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के जो भी फैसले होंगे,  उनका क्रियान्वयन सही तरीके से किया जा सकेगा. राजीव रंजन प्रसाद ने वन नेशन वन इलेक्शन की खूबियां गिनाते हुए कहा कि चुनाव करवाने में होने वाले खर्चे से भी बचा जा सकेगा. इससे देश को फायदा ही होगा.

One Nation One Election को लेकर पीएम मोदी भी करते है वकालत

दरअसल देश में जब जब कोई महत्वपूर्ण चुनाव होने होते हैं, तब-तब वन नेशन वन इलेक्शन की चर्चा शुरु हो जाती है. आने वाले दिनों में जम्मू कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव होंगे, दूसरा 16 सितंबर को आज मोदी 3.0 सरकार के सौ दिन भी पूरे हुए हैं.  ऐसे में एक बार फिर से केंद्र की मोदी सरकार अपने इस महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट को लेकर मुखर है. प्रधानमंत्री मोदी खुद कई बार इसकी वकालत कर चुके हैं. हालांकि बीजेपी सरकार के इस एजेंडे को अभी तक विपक्ष से विरोध ही मिलता रहा है लेकिन अब विपक्ष से पक्ष में आये जेडीयू ने कहा है कि उनकी पार्टी ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के पक्ष में है.

 वन नेशन वन इलेक्शन पर बीजेपी और जेडीयू एक राय- ललन सिंह

जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि एक देश-एक चुनाव (One Nation- One Election)  पर उनकी पार्टी और एनडीए (NDA) की राय एक ही है. हम ये मानते हैं कि एक देश-एक चुनाव से देश में नीतियों की निरंतरता रहेगी.बार बार चुनाव होने से विकास की गति में ब्रेक लगता है.अगर देश में एक देश-एक चुनाव की व्यवस्था होती है, तो इन रुकावटो से निजात मिलेगी. राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि अगर सारे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हों तो मतदाताओं में भी जोश रहेगा.कुल मिलकर इससे देश के विकास की गति निर्बाध तरीके से चलती रहेगी.

‘एक देश-एक चुनाव’ को लेकर जल्द विधेयक ला सकती है सरकार

हाल के दिनों में ये चर्चा फिर से शुरु हुई है कि Modi 3.0 सरकार  अने इसी कार्यकाल में एक देश-एक चुनाव के लेकर विधेयक ला सकती है.सरकार इसके लिए लगातार तैयारी कर रही है.

देश में कब कब हुए एक साथ चुनाव ?

दरअसल आजादी के बाद पहली बार 1951 में 1951 में पहली पूरे देश में एक साथ ही चुनाव हुए थे. फिर ये सिलसिला 1967 तक चला. ये व्यवस्था तब बिगड़ गई जब कुछ राज्यों की सरकारें अपने 5 साल के कार्यकाल को पूरा नहीं सकी औऱ उन राज्यों में बीच में ही चुनाव कराने पड़े. फिर धीरे धीरे यो एक पैटर्न बन गया और राज्यों और लोकसभा के चुनाव अलग अलग ही हो गये.

पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के रिस्क

दरअसल एक बार तो ये सुनना अच्छा लगता है कि पूरे देश में चुनाव एक साथ हों , खर्चा और समय दोनों बचेंगें लेकिन समस्या तब शुरु होती है जब कोई सरकार निश्चिंत हो जाती है कि जनता के बीच उन्हें 5 साल बाद ही जाना हौ तो कई मायनों में ये स्थिति निरंकुशता की तरफ जाने लगती है . जनता के पास सिवाय हाथ मलने के कुछ रह नहीं जाता है. वहीं राज्यों के चुनाव के नाम पर ही सही, राजनेता और मंत्रियों के उपर ये दवाब रहता है कि  बार बार जनता के बीच जाना है. उन्हें ये बताना पड़ता है कि वो जनता के साथ हैं. जनहित के कार्यक्रम बनाने पड़ते हैं,जनता के मूड को भांपना पड़ता है. पिछले कुछ समय में देखा गया है कि कई बार केंद्र की सरकारों ने राज्यों में होने वाले चुनावों के दवाब में पेट्रोल डीजल के दाम कम किये हैं, वहीं राज्यो के चुनाव खत्म होते ही फिर से मंहगाई आसमान छूने लगती है. इस व्यवस्था के दोनो पहलू हैं.लोगों को  इसे समझना होगा.  अगर जनता की भलाई के लिए लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग अलग होते हैं, तो राष्ट्र में मतदाता किसी एक पैटर्न पर वोट नहीं करते हैं बल्कि सोच समझ कर वोट करते हैं और अपने लिए सरकार बनाते हैं. हाल के दिनों मे देखा गया है कि जिस पार्टी की तरफ हवा चलती है, जनता का रुख उसी तरफ हो जाता  है,. ऐसे में ‘एक देश एक चुनाव’ का दाव उल्टा भी पड़ सकता है.

Html code here! Replace this with any non empty raw html code and that's it.

Latest news

Related news