ISRO ने फिर एक बार इतिहास रच दिया. चंद्रायान 3 की सफलता के कुछ ही दिन बाद अपने पहले सूर्य मिशन को भी सफलता के साथ अंजाम दिया गया. जी हां ISRO ने PSLV-C57, Aditya-L1 मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च कर फिर एक बार इतिहास रच दिया है. लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के दूसरे लॉन्च पैड से 2 सितंबर 2023 को 11:50 पर की गई है. यह लॉन्चिंग पीएसएलवी-एक्सएल रॉकेट से की गई है. आपको जानकर हैरानी होगी ये उड़ान इस रॉकेट की 25वीं उड़ान थी.
जिस राकेट के साथ भारत का ये मिशन गया है उसकी खासियत की बात करें तो यह PSLV रॉकेट की 59वीं उड़ान है. वहीँ PSLV-XL वैरिएंट की 25वीं उड़ान है. यह रॉकेट 145.62 फीट ऊंचा है. लॉन्च के समय वजन 321 टन रहता है. यह चार स्टेज का रॉकेट है. जिसमें 6 स्ट्रैप ऑन होते हैं.
– PSLV-XL रॉकेट आदित्य-L1 को धरती की निचली कक्षा में छोड़ेगा. जो 235 km x 19,500 km की पेरिजी और एपोजी वाली ऑर्बिट है. आदित्य-L1 का वजन 1480.7 किलोग्राम है. लॉन्च के करीब 63 मिनट बाद रॉकेट से आदित्य-L1 स्पेसक्राफ्ट अलग हो जाएगा. रॉकेट वैसे तो आदित्य को 25 मिनट में ही आदित्य को तय कक्षा में पहुंचा देगा.
अब एक सवाल ये कि आदित्य L 1 मिशन में आदित्य मतलब सूरज 1 मतलब पहला मिशन लेकिन ये L का मतलव क्या है। तो L का मतलब है लैरेंज प्वाइंट. यह नाम मशहूर गणितज्ञ जोसेफी-लुई लैरेंज के नाम पर दिया गया है. इन्होंने ही इन लैरेंज प्वाइंट्स को खोजा था. इस पॉइंट का मतलब होता है जब किसी दो घूमते हुए अंतरिक्षीय वस्तुओं जो की यहाँ पृत्वी और सूरज हैं. उनके बीच के बीच ग्रैविटी का एक ऐसा प्वाइंट आता है, जहां पर कोई भी वस्तु या सैटेलाइट दोनों ग्रहों या तारों की ग्रेविटी से बचा रहता है. इस पॉइंट पर ग्रेविटी जीरो होती है.
आदित्य-L1 अपनी यात्रा लोअर अर्थ ऑर्बिट (LEO) से शुरू करेगा . जहाँ यानी PSLV-XL रॉकेट उसे छोड़ेगा. इसके बाद धरती के चारों तरफ 16 दिनों तक पांच ऑर्बिट मैन्यूवर करके सीधे धरती की ग्रेविटी स्फेयर ऑफ इंफ्लूएंस (SOI) से बाहर जाएगा. फिर शुरू होगी क्रूज फेज. यह थोड़ी लंबी चलेगी. आदित्य-L1 को Halo Orbit में डाला जाएगा. जहां पर L1 प्वाइंट होता है. इस यात्रा में इसे 109 दिन का वक्त लगेगा. हालाँकि ये मिशन काफी मुश्किल है क्यों थोड़ी से भी गलती हुई तो आदित्य L 1 ऑर्बिट भटक सकता है.
Aditya-L1 भारत की पहली अंतरिक्ष आधारित ऑब्जरवेटरी (Space Based Observatory) है. यह सूरज से इतनी दूर तैनात होगा कि उसे गर्मी तो लगे लेकिन खराब न हो. क्योंकि सूरज की सतह से थोड़ा ऊपर यानी फोटोस्फेयर का तापमान करीब 5500 डिग्री सेल्सियस रहता है. केंद्र का तापमान 1.50 करोड़ डिग्री सेल्सियस रहता है. ऐसे में किसी यान या स्पेसक्राफ्ट का वहां जाना संभव नहीं है. वहां जाकर आदित्य-L1 स्पेस्क्राफ्ट सौर तूफानों के आने की वजह, सौर लहरों और उनका धरती के वायुमंडल पर पड़ने वाले असर, सूरज के कोरोना से निकलने वाली गर्मी और गर्म हवाओं की स्टडी, सौर हवाओं के विभाजन और तापमान की स्टडी और साथ ही साथ सूरज के वातावरण को समझने की कोशिश करेगा. इस मिशन से ISRO की बहुत सी उम्मीदें जुड़ी हैं. अब देखना ये है कि क्या ये मिशन उम्मीदों पर और दुआओं पर खरा उतरता है.