पूरी दुनिया पर आफत बनकर टूटने वाली महामारी. कोरोना वायरस जिसने पूरी दुनिया की अर्थव्यस्था को तो धराशायी किया ही साथ साथ करोड़ों लोगों की मौत का कारण भी बनी. लेकिन हमेश से ये सवाल उठते रहे कि इतनी घातक बीमारी का जन्म हुआ कैसे. क्या वो प्राकृतिक आपदा थी या फिर किसी षडियंत्र का हिस्सा. तो इसका जवाब आज मिल गया. जिसका डर था वही हुआ. जिस पर शाक्त था वही उस भयानक तबाही का रिमोट कंट्रोलर निकला.
जी हाँ कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर नया खुलासा हुआ है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वुहान में चीनी सेना के साथ काम करने वाले वैज्ञानिक एक खतरनाक प्रयोग में लगे हुए थे. ये लोग दुनिया के सबसे घातक कोरोना वायरसों को मिलाकर एक नया म्यूटेंट वायरस बनाना चाहते थे. इसी दौरान कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत हुई. जांचकर्ताओं का मानना है कि चीनी वैज्ञानिक खतरनाक प्रयोगों से जुड़े गुप्त प्रोजेक्ट पर काम रहे थे. इसी वक्त वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से रिसाव हुआ और कोविड-19 का प्रकोप शुरू हुआ.
लेकिन यहाँ कुदरत का करिश्मा देखिये जिस देश ने दूसरे देशों को बर्बाद करने के लिए उस परमाणु रुपी वायरस का इजात किया उसका प्रभाव् भी उसी पर उल्टा सबसे ज्यादा पड़ा.
यह रिपोर्ट सैकड़ों दस्तावेजों पर आधारित है, जिसमें ख़ुफ़िया रिपोर्ट, आंतरिक मेमो, वैज्ञानिक कागजात और ईमेल से हुई बातचीत शामिल है. एक जांचकर्ता ने कहा, ‘अब तो यह साफ हो गया है कि वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में कोविड-19 वायरस से जुड़े प्रयोग किए जा रहे थे. इस काम को लेकर किसी तरह की प्रकाशित जानकारी नहीं है. क्योंकि यह चीनी सेना के शोधकर्ताओं के सहयोग से किया गया था. चीन की आर्मी ही इसे फंड मुहैया कराती थी. ऐसे में हमारा मानना है कि चीन की ओर से जैविक हथियारों का विकास करने के मकसद से ये एक्सपेरिमेंट किए जा रहे थे. जब की ऐसे हथियारों पर काम करने के लिए इन पर परिक्षण करने के लिए UNO ने सख्त नियम बना रखे हैं. कमाल की बात देखिये UNO के नियमों की धज्जियां वो उदा रहे हैं जो उनके स्थाई सदस्य हैं.
वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में 2003 में सार्स वायरस की उत्पत्ति का पता लगाने का काम शुरू हुआ. इसके लिए दक्षिणी चीन की बैट गुफाओं से लिए गए कोरोना वायरसों पर जोखिम भरे प्रयोग शुरू हुए. इसके नतीजे शुरू में सार्वजनिक किए गए थे. 2016 में शोधकर्ताओं को युन्नान प्रांत के मोजियांग में खदान में सार्स के समान नए प्रकार का कोरोना वायरस मिला. इसके बाद चीन ने इन मौतों की जानकारी पब्लिक नहीं की. हालांकि, उस वक्त पाए गए वायरस को अब कोविड-19 फैमिली का सदस्य माना जाता है. इसके बाद उन्हें वुहान संस्थान ले जाया गया और इन पर वैज्ञानिकों के अलग-अलग प्रयोग शुरू हुए.
रिपोर्ट में भी दावा किया गया है कि एक दर्जन से ज्यादा जांचकर्ताओं को अमेरिकी खुफिया सर्विस की ओर से जुटाई गई जानकारियां मुहैया कराई गईं. इनमें मेटाडेटा, फोन इंफॉर्मेशन और इंटरनेट सूचना शामिल हैं. अमेरिकी विदेश विभाग के जांचकर्ताओं ने कहा कि वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी खुद को नागरिक संस्थान के रूप में पेश करता है. इसके बावजूद, यहां चीन की सेना के साथ मिलकर गुप्त प्रोजेक्ट्स पर काम किया गया. वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी 2017 से ही एनमिल एक्सपेरिमेंट समेत कई तरह के प्रयोगों में लगा हुआ है। यह सब चीन की सेना की देखरेख में होता रहा है.
तो ये सब साफ हो जाने के बाद क्या WHO और UNO चीन के ऊपर कोई एक्शन लेंगे क्योंकि ऐसा नहीं होता है तो ये दूसरे देशों को भी गलत संकेत देगा और सभी देशों में जैविक रासायनिक हथियार बनाने की होड़ मच जायेगी जो पूरी मानवता के लिए खतरा है.