Friday, August 8, 2025

Supreme Court Divorce: रिश्ता हो जाये नागवार तो तलाक होगी स्वीकार-सुप्रीम कोर्ट का फैसला

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दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को तलाक के मामले में एक अहम फैसला दिया है. ये फैसला उन लोगों के लिए राहत का पैगाम है जो अपनी शादी में खुश नहीं है और तलाक लेकर अपना जीवन सूकून से गुजारना चाहते हैं.

सीधे हो सकती है तलाक स्वीकार

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान पीठ ने तलाक को लेकर दिये अपने फैसले में कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिली शक्तियों का प्रयोग करते हुए शादी को तत्काल खत्म किया जा सकता है. 6 महीने इंतजार की कानूनी बाध्यता को अस्वीकार किया जा सकता है.

तलाक को लेकर क्या है कानून

हिंदु मौरेज एक्ट 1955 में इस बात का प्रावधान है कि अगर कोई पति पत्नी आपसी रजामंदी से तलाक के लिए फैमिली कोर्ट में आते हैं तो तलाक के पहले मोशन के बाद दसरे मोशन (डिक्री ) तक पहुंचने में 6 महीने का इंतजार करना होता है. महीने  इंतजार के बाद अगर कोर्ट को ये लगे कि तलाक देना जरुरी है तभी तलाक स्वीकार की जाती है. फैमिली कोर्ट में तलाक के मामले कई कई सालों तक चलते हैं .

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में इससे पहले भी सीधे तलाक स्वीकार हुई है

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने इससे पहले भी कई मामलों में शादी जारी रखना असंभव होने पर कानूनी औपचारिकताओ को दरकिनार कर कई तलाकों को मंजूरी दी है. अदालत ने ऐसे मामलों में माना है कि कानूनी औपचारिकताओं को किनारे करके तलाक स्वीकार की जा सकती है .

संविधान पीठ में  कैसे पहुंचा मामला ?

साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट में तलाक का एक मामला आया जो- शिल्पा शैलेष बनाम वरुण श्रीनिवास के नाम से था.  इस मामले की सुनावई के दौरान दो जजों के बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों पर विचार को महत्वपूर्ण माना. कोर्ट ने माना कि ऐसे मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों पर  विचार किया जा सकता है. क्या शादी को बनाये रखना असंभव होने पर भी सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों का इस्तेमाल करके तलाक पर तत्काल फैसला लिया जा सकता है?

2016 में ये मामला सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संविधन पीठ में पहुंचा.सितंबर 2022 में मामले पर संविधान पीठ में सुनवाई शुरु हुई. जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस ए एस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जे के माहेश्वरी ने इस मामले को सुना और अब इस मामले में  पीठ का फैसला आया है. जजों ने यह माना है कि अनुच्छेद 142 की व्यवस्था संविधान में इसलिए की गई है, ताकि लोगों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट आदेश दे सके.

6 महीने की बाध्यता हो सकती है दरकिनार

संविधान पीठ के फैसले को पढ़ते हुए जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि जब विवाह को जारी रखना असंभव हो जाये तो सुप्रीम कोर्ट तलाक स्वीकार कर सकता है. आपसी सहमति से लिये जा रहे तलाक में 6 महीने इंतजार का बाध्यता जरुरी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट  ने तलाक से जुड़े फैसले में उन सभी स्थितियों का जिक्र भी किया जिसमें तलाक लिया जा सकता है. इसमें गुजारा भत्ता और बच्चों की परवरिश पर भी चर्चा की गई है.

हलांकि सुप्रीम कोर्ट ने ये साफ कर दिया है कि कोई भी तलाक से लिए सीधे सीधे सुप्रीम कोर्ट नहीं आ सकता है. उन्हें निचली आदालत की प्रक्रिया से गुजर ना होगा, वहां अगर किसी फैसले को लेकर अडचन आती है तो पूरी कानूनी प्रकिया के पालन के बाद ही वो सुप्रीम कोर्ट में याचिका  दाखिल कर सकते हैं. अगर सुप्रीम कोर्ट को लगा कि मामले को लंबा खींचने की जगह तलाक देना बेहतर है तभी कोर्ट ये फैसला देगा

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