पटना: यह सच है कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनता दल ने NDA के कई नामवर नेताओं को अपने पाले में ला दिया है। ऐसा कर वो बीजेपी और जदयू दोनों के सामने पहली नजर में मुश्किलें खड़ी करता दिख रहा है। पर उससे भी बड़ा सवाल तो ये है कि ये दगे कारतूस लालू प्रसाद यादव की राजद को क्या कोई मुकाम दिला पाएंगे? क्या इनकी उपस्थिति राजद के वोट बैंक को बढ़ाएंगे? क्या इनकी मौजूदगी विधायकों के संख्या बल को आगे ले जाएंगे ! जानते है कौन हैं ये NDA नेता जिन्होंने हाल में राजद का दामन थाम कर हलचल मचा दी।
पहला नाम- बृजकिशोर बिंद
बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री एवं चैनपुर के पूर्व विधायक बृज किशोर बिंद ने राष्ट्रीय जनता दल का दामन थाम कर बीजेपी की परेशानी बढ़ा दी है। हालांकि बृज किशोर बिंद की राजनीति बहुत सुरक्षित तो नहीं रह गई थी। ऐसे भी उन्हें लगने लगा था कि उनकी विधानसभा सीट चैनपुर जदयू को जा सकती है। ऐसे में बृज किशोर बिंद का टिकट कटना तय था। ऐसा इसलिए कि साल 2020 के विधानसभा चुनाव में चैनपुर से बसपा के जमा खान चुनाव जीते थे। बाद में ये जेडीयू में शामिल हो गए और बिहार सरकार में मंत्री भी हैं। ऐसे में यह सीट जेडीयू के खाते में जाना तय है। इसलिए बृज किशोर बिंद के लिए राजद जाना मजबूरी था। वहीं अब इस सीट पर वो जीत पाएंगे या नहीं, इस पर भी संशय ही है।
दूसरा नाम- निरंजन राम
बीजेपी नेता और मोहनिया के पूर्व विधायक निरंजन राम का भी राजद में जाना तय है। तेजस्वी यादव से मुलाकात की तस्वीर वायरल हुई है। दरअसल इनकी मजबूरी यह थी कि साल 2020 में आरजेडी की संगीता कुमारी ने निरंजन राम को हराया था। लेकिन कुछ महीने पहले संगीता कुमारी ने बीजेपी का दामन थाम लिया। ऐसे में बीजेपी निरंजन राम के बदले संगीता कुमारी को चुनावी टिकट देती। इसलिए उन्हें राजद की सेफ पार्टी लगी।
नरेंद्र सिंह उर्फ बोगो सिंह
जदयू के पूर्व विधायक नरेंद्र सिंह उर्फ बोगो सिंह ने भी राजद का दामन थाम लिया है। राजद में जाना इनकी भी मजबूरी थी। ऐसा इसलिए कि साल 2020 के विधानसभा चुनाव में बोगो सिंह की करारी हार हुई थी। इन्हें लोजपा के राज कुमार सिंह ने हराया था। पर बाद में लोजपा विधायक राज कुमार सिंह जदयू में शामिल हो गए। ऐसे में बोगो सिंह को जदयू से टिकट मिलना असंभव था। इसलिए इन्होंने टिकट की उम्मीद में राजद का दरवाजा खटखटाया है।
मुजाहिद आलम
कोचाधामन विधानसभा के पूर्व विधायक मुजाहिद आलम ने भी राजद का दामन थाम जदयू की मुश्किल बढ़ा दी। दरअसल साल 2020 विधानसभा चुनाव में जदयू उम्मीदवार मुजाहिद आलम को AIMUIM के उम्मीदवार मुहम्मद इजहार असफी से हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन पार्टी छोड़ने का बहाना इन्होंने नए वक्फ कानून को जदयू का समर्थन बताया।
रेणु कुशवाहा
सांसद और बिहार में मंत्री रह चुकीं रेणु कुशवाहा ने राजद की सदस्यता ले कर भी NDA की मुश्किल बढ़ा दी हैं। राजद इन दिनों कुशवाहा मिशन में लगी हुई हैं। ऐसे में पूर्व मंत्री रेणु कुशवाहा राजद के लिए लाभकारी होती हैं या नहीं, इसे अभी प्रमाणित होना है। रेणु कुशवाहा समय-समय पर जदयू, भाजपा और लोजपा में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुकी हैं।
हारे हुए नेताओं का लिटमस टेस्ट!
NDA नेताओं की नजर में इन नेताओं के राजद में जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। पर क्या यह हकीकत है? इस सवाल का जवाब बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों से मिलेगा। हालांकि थोड़ा बहुत अंदाजा तो तब ही लग जाएगा जब इनके खिलाफ उतरने वाले NDA उम्मीदवारों की लिस्ट तय हो जाएगी।