पटना : बिहार में उपेंद्र कुशवाहा के जेडीयू छोड़ते ही सियासी हलचल तेज हो गई है. उपेंद्र कुशवाहा ने सोमवार को जेडीयू छोड़ा और मंगलवार को बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल मोतिहारी से पटना भेंट करने आ गये. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के पटना पहुंचते ही उन कयासों को बल मिल गया जिसके बारे में पहले से जेडीयू के नेता बोल रहे थे . अंदरखाने कहीं वो बातें सही थी. हलांकि संजय जायसवाल ने इस मुलाकात को महज शिष्टाचार भेंट बताया . पत्रकारों के तमाम सवाल के जवाब में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने यही कहा कि फिलहाल कुछ तय नहीं है. यहां तक कि उपेंद्र कुशवाहा ने भी बीजेपी के साथ जाने की कोई बात नहीं कही. सियासी गलियारों में ये चर्चा लंबे समय से चल रही है कि बीजेपी जेडीयू को तोड़कर उनके लोगों को अपनी पार्टी में लाने के कोशिश में है. अब ये बात साफ होती नजर आ रही है.
उपेंद्र कुशवाहा का राजनीतिक सफर
63 साल के उपेंद्र कुशवाहा लगभग 40 साल से राजनीतिक जीवन मे हैं. 1985 में लोकदल से राजनीतिक जीवन शुरु करने वाले उपेंद्र कुशवाहा साल 2000 में पहली बार समता पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जंदाहा सीट से चुनाव जीते. फिर 2005 में जेडीयू के टिकट पर चुनाव हारने के बाद 2007 में पार्टी छोड़कर अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय समता पार्टी बनाई. जातीय समीकरण को देखते हुए 2009 में नीतीश कुमार ने एक बार फिर से उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी मे आने का आमंत्रण दिया. 2010 में जनता दल यूनाइडेट ने उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा का सदस्य बनाया . 2013 में उपेंद्र कुशवाहा जदयू से अलग हो गये और अपनी नई राजनीतिक पार्टी बनाई- राष्ट्रीय लोक समता पार्टी . 2018 में अरुण कुमार साथ मिलकर कुशवाहा ने राष्ट्रीय जनता दल ( सेक्यूर) का गठन किया.
कुशवाहा ने तीसरी बार बनाई अपनी नई पार्टी
उपेंद्र कुशवाहा अब तक दो बार जनता दल यूनाइडेट से अलग होकर अपनी नई पार्टी बना चुके हैं. ये तीसरा मौका है जब उन्होने ने अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल(RLJD) गठन किया है.
उपेंद्र कुशवाहा ने जदयू से अलग होकर अपनी पार्टी तो बन ली है लेकिन जानकार ये बताते है कि इसबार कुशवाहा सही गणित बैठने के बाद ही किसी पार्टी में अपनी पार्टी का विलय करेंगे, या गठबंधन करेंगे . जानने वाले तो यहां तक बताते है कि नीतीश कुमार के साथ गठबंधन टूटने की वजह ही कुर्सी रही. सूत्र बताते है कि उपेंद्र कुशवाहा ने मंत्री पद पर बातचीत तय होने के आश्वासन के बाद ही अपनी पार्टी का विलय किया था लेकिन सियासी गणित में आरजेडी के शामिल हो जाने से पूरा हिसाब गड़बड़ा गया और उपेंद्र कुशवाहा के हाथ कोई पद नहीं लगा.
क्या है उपेंद्र कुशवाहा की रणनीति ?
दो बार जेडीयू के साथ अनबन के बाद पार्टी तोड़कर नई पार्टी बनाने के बाद अब इस बार उपेंद्र कुशवाहा फूंक कर कदम रखना चाहते हैं. यही कारण है कि फिलहाल कुशवाहा अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं. इधर बीजेपी भी इस बात का इंतजार कर रही है कि अगर कुशवाहा के साथ बात बन जाती है तो नीतीश कुमार के एक बड़े बोट बैंक तक पहुंचा जा सकता है. बिहार में जातीय गणित के हिसाब से ओबीसी तबके में कोयरी, कुर्मी और कुशवाहा बिरादरी की जनसंख्या लगभग 11 प्रतिशत है. माना जाता है कि नीतीश कुमार की इस वोट बैंक पर पकड़ है. बिहार में उपेंद्र कुशवाहा के पार्टी छोड़ने के बाद एक बार फिर से सियासी हलचल तेज है.