जेएनयू के पूर्व शोधार्थी उमर खालिद सहित जेल में बंद कार्यकर्ताओं के परिवारों के साथ मिलकर वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) ने मंगलवार को कहा कि जब पीड़ित पक्ष मुस्लिम होता है तो जमानत शायद ही कभी दी जाती है.
77 वर्षीय राजनेता हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी का हवाला दे रहे थे जिसमें कहा गया था कि “जमानत नियम है और जेल अपवाद है”.
वे न तो लोकतंत्र में विश्वास करते हैं और न ही संविधान में-आरएसएस पर बोले Digvijay Singh
सीएए-एनआरसी विरोधी प्रदर्शनों में शामिल कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी के चार साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राइट्स (एपीसीआर) द्वारा आयोजित पैनल चर्चा के दौरान दिग्विजय सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की आलोचना की.
उन्होंने भारत में मुसलमानों को कथित तौर पर निशाना बनाने की तुलना जर्मनी में हिटलर के शासन के दौरान यहूदियों के उत्पीड़न से की.
जेल में बंद कार्यकर्ताओं के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए सिंह ने दावा किया कि वह ऐसे क्षेत्र से आते हैं जहाँ आरएसएस को “नर्सरी” के रूप में जाना जाता है.
पीटीआई की खबर के मुताबिक दिग्विजय सिंह ने आरएसएस के लिए कहा, “मैं हमेशा से उन्हें करीब से जानता हूँ. वे न तो लोकतंत्र में विश्वास करते हैं और न ही संविधान में. जिस तरह से हिटलर ने यहूदियों को अपना निशाना बनाया, उसी तरह उन्होंने मुसलमानों को अपना निशाना बनाया है… जिस तरह से विचारधारा हर स्तर पर घुसपैठ कर चुकी है, वह लोकतंत्र के लिए खतरनाक है.”
दिग्विजय सिंह ने टिप्पणी की कि आरएसएस एक अपंजीकृत संस्था है, जिसकी कोई औपचारिक सदस्यता या खाता नहीं है और अगर कोई व्यक्ति पकड़ा जाता है तो वे उससे अपना नाता तोड़ लेते हैं, जैसा कि उन्होंने “नाथूराम गोडसे के मामले में किया था”. सिंह ने पूछा, “जमानत एक नियम है और जेल एक अपवाद है, तो फिर मुसलमानों के लिए जमानत एक अपवाद क्यों बन जाती है?”
यूएपीए कानून को लेकर उमर के पिता ने चिंता जताई
इस बीच, उमर खालिद के पिता एसक्यूआर इलियास ने कड़े गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के बारे में चिंता व्यक्त की, जिसके तहत खालिद और अन्य को गिरफ्तार किया गया है.
“चाहे उमर हो या गुलफिशा या भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए लोग… संसद के अंदर बनाए गए ये कठोर कानून आतंकवाद को रोकने के लिए हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल आम लोगों के खिलाफ किया जाता है. भाजपा पोटा लेकर आई, कांग्रेस ने इसे खत्म कर दिया, लेकिन फिर यूएपीए के तहत इसके सभी प्रावधानों को वापस ले आई,” इलियास ने कहा.
उन्होंने सवाल उठाया कि जब सालों की सुनवाई के बाद कोई व्यक्ति निर्दोष पाया जाता है तो पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जाती. उन्होंने मामले में गवाहों के लिए “अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा” जैसे नामों का इस्तेमाल करने के लिए दिल्ली पुलिस की भी आलोचना की.
जेल में बंद कार्यकर्ताओं को एक दिन “लोकतंत्र के योद्धा” है- दीपांकर भट्टाचार्य
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि वर्तमान में जेल में बंद कार्यकर्ताओं को एक दिन “लोकतंत्र के योद्धा” के रूप में पहचाना जाएगा.
उन्होंने कहा, “आपातकाल के दौरान गिरफ्तार किए गए लोगों को लोकतंत्र के योद्धा के रूप में देखा जाता था, आज भी यही स्थिति है.”
उन्होंने यह भी कहा कि शाहीन बाग में सीएए/एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन केवल नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन नहीं था, बल्कि “समान नागरिकता आंदोलन” था.