Thursday, January 30, 2025

निर्गुण राम के उपासक रामनामी संप्रदाय का जत्था पहुंचा महाकुंभ,श्रीराम की मूर्ति और मंदिर की नहीं करते हैं पूजा

25 जनवरी, महाकुम्भ नगर।  सनातन संस्कृति के महापर्व महाकुम्भ में सम्मिलित होने तरह-तरह के साधु, संन्यासी, जाति, पंथ, संप्रदाय के लोग देश के कोने-कोने से आते हैं। इस क्रम में महाकुम्भ में सम्मिलित होने छत्तीसगढ़ के रहने वाले रामनामी संप्रदाय  Ramnami  Sect के अनुयायी पवित्र संगम में आस्था की डुबकी लगाने आये हैं। अपने पूरे शरीर में राम नाम गुदवाये हुए, सफेद वस्त्र और सिर पर मोरपंख का मुकुट धारण किये हुए रामनामी संप्रदाय के अनुयायी संगम की रेती पर राम भजन करते हुए महाकुम्भ में पवित्र स्नान को बेताब हैं।

Ramnami  Sect के लोग पूरे शरीर पर गुदवाते हैं राम नाम

पौराणिक मान्यता और परंपरा के अनुसार महाकुम्भ में पवित्र संगम में स्नान करने सनातन आस्था से जुड़े सभी जाति, पंथ और संप्रदाय के लोग जरूर आते हैं। इसी में से एक हैं छत्तीसगढ़ के जांजगीर, भिलाई, दुर्ग, बालोदाबजार, सांरगगढ़ से आये हुए रामनामी संप्रदाय के लोग। 19वीं शताब्दी में जब सनातन संस्कृति के तथाकथित उच्च वर्ग के लोगों ने छत्तीगढ़ में कुछ जनजाति के लोगों को मंदिर में प्रवेश करने और मूर्ति पूजा से वंचित किया तो जनजाति के लोगों ने अपने पूरे शरीर पर ही राम नाम अंकित कर अपनी देह को राम का मंदिर बना लिया। रामनामी संप्रदाय की शुरूआत जांजगीर चंपा के परशुराम जी से मानी जाती है। इस पंथ के अनुयायी अपने पूरे शरीर पर रामनाम का टैटू या गोदना गोदवाते हैं। राम नाम लिखा हुआ सफेद वस्त्र और सिर पर मोरपंख से बना मुकुट धारण करते हैं। राम नाम का जाप और मानस की चौपाईयों का भजन करते हैं। रामनामी संप्रदाय के लोग मंदिर और मूर्ति पूजा नहीं करते वो निर्गुण राम के उपासक हैं। वर्तमान में रामनामी संप्रदाय के लगभग 10 लाख से अधिक अनुयायी मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के जिलों में रहते हैं।

राम नाम ही अवतार, राम नाम ही भवसागर की पतवार

रामनामी संप्रदाय Ramnami  Sect के कौशल रामनामी का कहना है कि महाकुम्भ में पवित्र स्नान करने उनके पंथ के लोग जरूर आते हैं। मौनी अमावस्या की तिथि पर राम नाम का जाप करते हुए हम सब संगम में अमृत स्नान करेंगे। छत्तीसगढ़ के सारंगढ़ से आये कौशल रामनामी का कहना है पिछली पांच पीढ़ी से उनके पुरखे महाकुम्भ में सम्मिलित होने आते रहे हैं। आने वाले समय में हमारे बच्चे भी परंपरा जारी रखेंगे। उन्होंने बताया कि सारंगढ़, भिलाई, बालोद बाजार और जांजगीर से लगभग 200 रामनामी हमारे साथ आये हैं। अभी और भी लोग मौनी अमावस्या से पहले प्रयागराज आ रहे हैं। हम लोग परंपरा के मुताबिक मौनी अमावस्या के दिन राम नाम का जाप करते हुए त्रिवेणी संगम में स्नान करेंगे। राम भजन करते हुए महाकुम्भ से अपने क्षेत्रों में लौट जाएंगे। उन्होंने बताया कि वो रामनाम को ही अवतार और भवसागर की पतवार मानते हैं। वो मंदिर नहीं जाते और मूर्ति पूजा नहीं करते। केवल राम नाम का जाप ही उनका भजन है और रामनाम लिखी देह ही मंदिर।

Html code here! Replace this with any non empty raw html code and that's it.

Latest news

Related news