Monday, December 23, 2024

यूपी विधानसभा में एक दिन महिलाओं के नाम, सम्मान के साथ सुरक्षा पर भी दें ध्यान

हाथरस, बदायूं और अब लखीमपुर, मुरादाबाद….इन शहरों के साथ जुल्म की ऐसी घटनाएं जुड़ गई है जिसने इन शहरों की वास्तविक पहचान धुंधली कर दी है. 14 सितंबर 2020 हाथरस की एक दलित बेटी के साथ रेप के बाद हत्या की कोशिश हुई. 29 सितबर को लड़की ने अस्पताल में दम तोड़ दिया. घटना में आरोपी ऊंची जाति के होने के कारण बेगुनाह बेटी और उसके परिवार से सम्मान के साथ अंतिम संस्कार तक का हक छीन लिया गया. इसी तरह बदायूं में बेटी के इंसाफ की लड़ाई परिवार को इतनी भारी पड़ी कि दबंग विधायक ने पूरा परिवार ही उजाड़ दिया.
हाथरस कांड के ठीक दो साल बाद 14 सितबर को फिर उत्तर प्रदेश दहल उठा. इस बार लखीमपुर में दो सगी दलित नाबालिग बहनों के शव एक पेड़ से लटकते मिले हैं. दोनों के साथ दुष्कर्म कर उन्हें लटका दिया गया था, अभी मुरादाबाद से एक लड़की का वीडियो वायरल हुआ है जिसमें लड़की बिना कपड़ों के बदहवास हालात में सड़क पर भागती दिखाई दे रही है.लड़की के फूफा ने अपहरण और बलात्कार का आरोप लगाया लेकिन लड़की के मां-बाप ने हलफनामा देकर अपनी ही बेटी को बीमार बता दिया. पुलिस ने भी जांच में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं होने की बात कही.
आप सोच रहे होंगे की 22 सितंबर को हम ये सब क्यों याद कर रहे है. तो 22 सितंबर उत्तर प्रदेश के इतिहास में अपनी खास जगह बना चुका है. उत्तर प्रदेश की सरकार ने इस दिन को महिला सशक्तिकरण से जोड़ एक अनोखी पहल की है. उत्तर प्रदेश की विधानसभा के इतिहास में पहली बार इस दिन दोनों सदनों की कार्यवाही महिला विधायकों के नाम रही. इस दिन विधानसभा की 47 और विधान परिषद में छह महिलाओं महिला सदस्य को अपनी बात रखने का मौका दिया गया. यानी सदन में ये दिन महिलाओं की आवाज़ सुनने का दिन रहा. इतना ही नहीं इन महिला विधायकों के सुनने के लिए 150 महिलाओं को विशेष निमंत्रण देकर विधानसभा भी बुलाया गया.निमंत्रण पाने वालों में केजीएमयू की महिला डाक्टर्स, एकेटीयू की महिला शिक्षकों के साथ-साथ प्रदेश के विधि विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रही छात्राएं शामिल थी.ये सभी सदन की कार्रवाई विधानसभा मंडप की चार दर्शक की दीर्घाओं में बैठ देख पाई.
इतना ही नहीं महिलाओं के इस खास मौके पर सदन के नेता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अपने विचार रखे. मुख्यमंत्री ने मातृ शक्ति को सलाम पेश करते हुए अपनी सरकार के काम भी गिनाए. मुख्यमंत्री ने कहा “हमने कन्या सुमंगला योजना का कार्यक्रम आगे बढ़ाया, आज लगभग 13,67,000 बेटियों को इस योजना का लाभ प्रदेश में प्राप्त हो रहा है. निराश्रित महिला पेंशन योजना में 1000 रुपए उनकी पेंशन की गई, 31,50,000 महिलाओं को इसका लाभ मिल रहा है.” इस मौके पर नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव को भी अपनी बात रखने का मौका दिया गया. अखिलेश यादव ने जहां प्रदेश में महिलाओं के लिए बेहतर माहौल बनाने के लिए सरकार के साथ मिलकर काम करने की बात कहीं. वहीं अपनी लेपटॉप योजना का जिक्र कर ये भी कह दिया की महिलाओं को पढ़ाई में मदद कर दी है अब सरकार उनके रोजगार की बात करें.
वैसे ये पहला मौका नहीं है जब योगी सरकार ने महिलाओं के लिए कोई बड़ा फैसला लिया हो इसी साल मई में यूपी सरकार ने महिला सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए सरकारी और निजी क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं के लिए नियम बनाया था कि कामकाजी महिलाओं को शाम 7 बजे के बाद और सुबह 6 बजे से पहले ड्यूटी करने के लिए बाध्‍य नहीं किया जा सकता है. यह नियम वर्क फ्रॉम होम और वर्क फ्रॉम ऑफिस दोनों पर लागू किया गया था.
इसके अलावा महिला सुरक्षा के नाम पर योगी सरकार रोमियों स्कॉड भी बना चुकी है. इतना ही नहीं एनसीआरबी की 2021 की रिपोर्ट भी मानती है कि यूपी में महिलाओं के खिलाफ अपराध कम हुआ है. लेकिन ये आंकड़ा उस साल का है जब कोरोना के चलते देश अपने अपने घरों में कैद था. वैसे इससे पहले के आकड़ों के मुताबिक यूपी महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के मामलों में नंबर वन था. अब इसे आप प्रदेश की बड़ी आबादी से जोड़कर देखा जाये या फिर मानसिकता से ये हम आप पर छोड़ते हैं .वैसे पिछले कई मामलों में शर्मसार करने वाली जो सबसे बड़ी बात सामने आई उसके मुताबिक पुलिस पर अपराधियों की जाति और धर्म देख कार्रवाई करने के आरोप लगे. ज्यादातर मामलों में यूपी पुलिस और प्रशासन का अपराधियों के प्रति जो रवैया रहा उसमें देखा ये गया कि अपराधी ऊंची जाति और बहुसंख्यक हो तो पुलिस का रवैया नरम नज़र आता है. वही अगर अपराधी नीची जात और एक घर्म विशेष का निकल आए तो फौरन इंसाफ हो जाता है , उनके घरों पर बुलडोज़र चला दिये जाते है. यानी पुलिस का इकबाल सिर्फ कुछ जाति और धर्म के लिए है. वोट बैंक की इसी राजनीति के चलते पिछले कुछ सालों में उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध को एक अलग ही रंग दे दिया है. ऐसे में अगर सरकार बेटी के सम्मान और मातृ शक्ति की बात करती है तो उसे याद रखना होगा. हमारे समाज में बेटियां साझी और मां सिर्फ मां होती है. उनको धर्म, नाम, रंग, जाति के नाम पर नहीं बांटा जाता.
उत्तर प्रदेश में सरकार अपराधों के प्रति जीरो टालरेंस की बात करती है, सरकार का रवैया अपराधियों के प्रति सख्त हैं, फिर वो कौन से लोग है जिन पर सरकार के सख्त आदेशों का भी असर नहीं है ?
वो कौन लोग हैं जो बेटी बचाओ बेटी बढ़ाओ का नारा देने वाली सरकार के इकबाल को कम करने पर आमादा है?

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