Sunday, July 6, 2025

नोटकांड में घिरे जस्टिस यशवंत वर्मा को दिलाई गई इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज की शपथ

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Justice Yashwant Verma : दिल्ली में कैश कांड के आरोपों से घिरे जस्टिस यशवंत वर्मा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायधीश के रुप में शपथ ले ली है. जस्टिस वर्मा को शनिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायाधीश के रुप में शपथ दिलाई गई. हालांकि कहा जा रहा है कि उन्हें तब तक न्याय प्रक्रिया से जुड़े कोई काम नहीं दिये जायेंगे जब तक की नोटकांड की जांच पूरी ना हो जाये.

Justice Yashwant Verma को मुख्यान्यायधीश के चेंबर में दिलाई गई शपथ

खबर है कि जस्टिस यशवंत वर्मा को शनिवार 5 अप्रैल को इलाहाबाद हाई कोर्ट के  मुख्य न्यायाधीश के चेंबर में शपथ दिलाई गई. शपथ  दिलाये जाने के बाद हाईकोर्ट की ऑफिशियल वेबसाइट पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस की वरिष्ठता सूची के मुताबिक उनका नाम अपलोड कर दिया गया है. वरिष्ठता सूची में जस्टिस यशवंत वर्मा का नाम 9वें स्थान पर दिखाया गया है.

जस्टिस वर्मा के इलाहाबाद कोर्ट आने का क्यों हो रहा है विरोध ?

दरअसल बीते दिनों होली वाले दिन यानी 14 मार्च को  जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास से करोड़ों के जले नोट मिले थे. भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे जस्टिस वर्मा के घर का वीडियो सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट से आनन-फानन में उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट में तबादला कर दिया लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकीलों ने ये कहते हुए जस्टिस वर्मा के इलाहाबाद आने पर विरोध प्रदर्शन शुरु कर दिया कि जो जज दिल्ली की अदालत में बैठने के लिए योग्य नहीं हैं, उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट में बैठने के लिए क्यों योग्य माना जाये.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकीलों कई दिनों के विरोध प्रदर्शन और हड़ताल किया. बाद में कानून मंत्री से इलाहाबाद हाईकोर्ट के प्रतिनिधिमंडल की मुलाकात के बाद यहां के वकीलों ने आम लोगों के हित में हड़ताल वापस ले लिया था.

जस्टिस वर्मा का शपथ रोकने के लिए दायर हुई थी PIL 

आपको बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकीलों ने आम लोगों के हित में अपनी हड़ताल तो वापस ले ली थी लेकिन बुधवार को ही हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच में जस्टिस वर्मा के शपथ ग्रहण को रोकने के लिए एक पीआईएल लगाई गई थी.जिसमें  मांग किया गया था कि “मुख्य न्यायमूर्ति को निर्देश दिया जाए कि दिल्ली हाईकोर्ट से स्थानांतरित होकर आए जस्टिस यशवंत वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज के रूप में शपथ न दिलाई जाए” इस पीआईएल पर फिलहाल सुनवाई के लिए तारीख तय नहीं हुई है.

अपनी याचिका में याचिकाकर्ता विकास चतुर्वेदी ने दलील दिया था कि जिस जज को स्वयं सीजेआई ने कैश स्कैंडल में जांच पूरी होने तक न्यायिक काम न दिये जाने की बात कही थी,उसे बतौर जज शपथ कैसे दिलायी जा सकती है ? याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकार द्वारा  28 मार्च को जारी किये गये उस नेाटिफिकेशन को भी चुनौती दी, जिसमें केंद्र की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की उस प्रस्ताव को मान लिया था जिसमें जस्टिस यशंवत वर्मा को दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर करने की बात कही गई थी.

 जस्टिस वर्मा के खिलाफ चल रही जांच में अब तक क्या क्या हुआ 

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ चल रही जांच को लेकर अब तक कई महत्वपूर्ण घटनाएं सामने आई हैं. ये मामला तब सामने आया जब इसी साल  14 मार्च को दिल्ली में  उनके सरकारी आवास के आउट हाउश में  आग लगी और आग बुझाने के दौरान वहां से अधजले नोटों की गड्डियां मिलने की बात सामने आई. इस बाद काफी बवाल हुआ और सुप्इरीम कोर्ट ने  मामले की जांच के लिए कमिटी बनाई.
आग की घटना और कैश की खोज
14 मार्च 2025 की रात लगभग 11 बजे जस्टिस यशवंत वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास के स्टोर रूम में आग लगी। दिल्ली फायर सर्विस ने आग पर काबू पाया, लेकिन दमकल कर्मचारियों ने स्टोर रूम में अधजले नोटों से भरी बोरियां देखीं। हालांकि, दिल्ली फायर सर्विस चीफ अतुल गर्ग ने बाद में कहा कि उनके कर्मियों को आग बुझाने के दौरान कोई कैश नहीं मिला, और वे मौके से चले गए थे। फिर भी, यह घटना जांच का आधार बनी.
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप और जांच समिति का गठन
इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया. 22 मार्च 2025 को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने तीन सदस्यीय इन-हाउस जांच समिति का गठन किया. इस समिति में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधावालिया, और कर्नाटक हाई कोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल हैं. समिति का उद्देश्य “फैक्ट-फाइंडिंग” जांच करना है.
 जस्टिस यशवंत वर्मा को न्याययिक कार्यों से हटाया गया
CJI के निर्देश पर दिल्ली हाई कोर्ट ने जस्टिस वर्मा से तत्काल प्रभाव से सभी न्यायिक कार्य वापस ले लिए. 24 मार्च 2025 को दिल्ली हाई कोर्ट रजिस्ट्री ने आधिकारिक बयान जारी कर कहा कि हाल के घटनाक्रमों के मद्देनजर यह कदम उठाया गया है. तब तक के लिए उन्हें कोई नया न्यायिक दायित्व नहीं सौंपा जाएगा.
ट्रांसफर की सिफारिश और विवाद
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाई कोर्ट से उनके मूल कोर्ट, इलाहाबाद हाई कोर्ट, ट्रांसफर करने की सिफारिश की. यह प्रस्ताव 24 मार्च 2025 को जारी हुआ और केंद्र सरकार ने 28 मार्च को इसे मंजूरी दे दी. हालांकि, इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने इस ट्रांसफर का विरोध किया और 25 मार्च से अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी. बार ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ CBI और ED से जांच की मांग की और उनके ट्रांसफर को रद्द करने की अपील की.
जांच समिति की कार्रवाई
जांच समिति ने सक्रियता दिखाते हुए 26 मार्च 2025 को जस्टिस वर्मा के आवास का दौरा किया. समिति करीब 30-45 मिनट तक वहां रही और घटनास्थल का निरीक्षण किया. इसके बाद दिल्ली पुलिस ने स्टोर रूम को सील कर दिया. सूत्रों के अनुसार, समिति ने जस्टिस वर्मा को पूछताछ के लिए बुलाया और उनसे तीन मुख्य सवाल पूछे:
    • स्टोर रूम में कैश की मौजूदगी का हिसाब क्या है?
    • कैश का स्रोत क्या था?
    • 15 मार्च की सुबह जले नोटों को किसने हटाया?
      जस्टिस वर्मा ने लिखित जवाब में कहा कि उन्हें या उनके परिवार को स्टोर रूम में कैश की कोई जानकारी नहीं थी, और यह उनके खिलाफ साजिश है.
    • कानूनी सलाह और पुलिस की भूमिका
      जस्टिस वर्मा ने जांच समिति के सामने पेश होने से पहले वरिष्ठ वकीलों (सिद्धार्थ अग्रवाल, मेनका गुरुस्वामी, अरुंधति काटजू, तारा नरूला) से कानूनी सलाह ली. दूसरी ओर, दिल्ली पुलिस ने घटना वाली रात मौके पर मौजूद पांच पुलिसकर्मियों (SHO, एक SI, दो हेड कांस्टेबल, एक कांस्टेबल) के फोन जब्त किए, और उनकी फॉरेंसिक जांच चल रही है.
    • FIR की मांग और सुप्रीम कोर्ट का रुख:
      कुछ याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग की, लेकिन 28 मार्च 2025 को जस्टिस अभय एस. ओका और उज्जल भुयान की पीठ ने इसे खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि इन-हाउस जांच चल रही है और अभी कोई FIR दर्ज करना जल्दबाजी होगी. यह भी स्पष्ट किया गया कि 1991 के वीरस्वामी मामले के फैसले के अनुसार, किसी जज के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई के लिए CJI की मंजूरी जरूरी है.
    • अब तक जांच में कोई ठोस सबूत सार्वजनिक नहीं हुआ है जो कैश के स्रोत या जस्टिस वर्मा की संलिप्तता को स्पष्ट कर सके. मामला संवेदनशील होने के कारण न्यायपालिका और जनता की नजरें इस पर टिकी हैं.
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