Wednesday, March 12, 2025

घर में छुपाकर रख दें होलिका की राख, आपसे थर-थर कांपेंगे भूत प्रेत, कई बीमारियों का भी निपटारा तय

छतरपुर जिले में होलिका दहन के समय गोबर के उपले (कंडे) जलाना एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जो शुभ और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी है. होलिका दहन में गोबर के उपले जलाने की परंपरा सदियों पुरानी है. बता दें, होलिका दहन के कुछ दिन पहले से गोबर के बल्ले बनने शुरू हो जाते हैं.

गोबर के उपले जलाने का महत्व
82 वर्षीय प्रेमा बाई बताती हैं कि परंपरा के अनुसार, छोटे-छोटे गोबर के उपले (गुलरियां) या बल्ले बनाकर उन्हें सूखाया जाता है और फिर एक रस्सी में पिरोकर माला बनाई जाती है. गोबर के बल्ले बनने के बाद इसकी 7 मालाएं बनाई जाती हैं. जिसमें 1 माला बड़ी होलिका दहन में जला दी जाती है. इसके बाद 6 मालाएं घर लाई जाती हैं. जिसमें से 5 मालाएं घर में जलने वाली होलिका दहन में डाल दी जाती हैं. बची हुई एक माला को घर के द्वार पर टांग ली जाती है.

बल्ले की माला बदलने की है परंपरा
प्रेमा बाई बताती हैं कि अभी जो घर के द्वार पर गोबर के बल्ले की माला टंगी है. इसको होलिका दहन में जला दिया जाता है. साथ ही बल्लों की एक माला की अदला-बदली की जाती है.

बल्लों की राख को मानते हैं पवित्र
प्रेमा बाई बताती हैं कि बड़ी होलिका दहन की राख को घर के किसी गुप्त स्थान पर रखा जाता है. जिसे बहुत पवित्र माना जाता है. इसे भूत-प्रेत जैसी बाधाओं से बचाने के लिए घर में रखा जाता है. साथ ही राख को बीमार व्यक्ति के माथे पर लगाया जाता है.

पर्यावरण संरक्षण का संदेश
गोबर के उपले पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद होते हैं, क्योंकि इन्हें जलाने से निकलने वाला धुआं, पर्यावरण में मौजूद कई प्रकार के जीवाणु और कीटाणु नष्ट कर देता है.

ऐसे बनाए जाते हैं उपले(कंडे)
गाय के गोबर के छोटे-छोटे गोले बनाकर, उनमें बीच से छेद करके धूप में सुखाया जाता है. इन गोलों को माला की तरह बनाकर, होलिका की अग्नि में जलाया जाता है.

माना जाता है कि होली पर जलाए गए गोबर के बल्ले घर की हर समस्या का समाधान करते हैं. होलिका दहन के समय इसे जलाने से परिवार की बाधाएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि बढ़ती है.

Html code here! Replace this with any non empty raw html code and that's it.

Latest news

Related news