Thursday, October 17, 2024

Election Commission of India : निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराना एक बड़ी चुनौती

दिल्ली :  लोकतंत्र में दलीय विचारधारा के आधार पर एक-दूसरे की नीतियों से असहमति हो सकती है लेकिन जब पार्टियों के समर्थक मामूली बात पर आमने-सामने होते दिखें तो चुनाव आयोग Election Commission of India के सुरक्षा बंदोबस्तों की परीक्षा भी होती है। एक वक्त था जब लोकतांत्रिक देशों में भी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना बड़ी चुनौती थी। भारत जैसे देश में भी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की राह में कम चुनौतियां नहीं हैं। चुनाव आयोग अपनी तरफ से बाधा रहित चुनाव कराने के बंदोबस्त में जुटा है। अपने इन्हीं प्रयासों के तहत चुनाव आयोग ने ताजा निर्देशों के तहत छह राज्यों में गृह सचिवों व पश्चिम बंंगाल के पुलिस महानिदेशक को हटाने के लिए कहा है। चुनाव आयोग के स्थायी निर्देशों की पालना नहीं होने पर यह सख्ती की गई है।

Election Commission of India के सामने चुनौती

पहले से जारी व्यवस्था के अनुसार चुनाव कार्यों से जुड़े उन अफसरों को अन्यत्र स्थानांतरित करना होता है जो पदस्थापन के तीन साल एक ही जगह पर पूरे कर चुके हैं या जिनकी तैनाती गृह जिले में हैं। हैरत की बात यह है कि चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के बाद भी संबंधित राज्यों में इन अहम पदों पर अफसरों को तैनात किया हुआ था। महाराष्ट्र में कुछ नगरीय निकायों में भी आयोग ने निर्देशों की अनदेखी पर नाराजगी जाहिर की है।

भारत का आम चुनाव दूसरों के लिए नजीर

भारत के आम चुनावों पर पूरी दुनिया की नजर इसलिए भी रहती है कि यहां के चुनाव दूसरे देशों के लिए नजीर भी बनते हैं। यह बात सही है कि बीते बरसों में हमारे यहां चुनावी हिंसा की घटनाओं में अपेक्षाकृत कमी आई है। लेकिन यह भी सही है कि कुछ राज्य अब भी मतदान पूर्व और इसके बाद होने वाली हिंसक घटनाओं के लिए बदनाम हैं। ऐसे में कई बार स्थानीय अफसरों की मिलीभगत अथवा लापरवाही भी सामने आती रही है। निष्पक्ष चुनावों की दिशा में सिर्फ आयोग का यह कदम ही पर्याप्त नहीं। बड़ी चुनौती कालेधन के प्रवाह को रोकने की भी है। हर बार आयोग की सतर्कता टीमें करोड़ों रुपए बरामद करती रही हैं, जिनका कहीं कोई हिसाब-किताब नहीं होता। इसी तरह चुनावों में प्रलोभन के रूप में मतदाताओं को शराब व अन्य सामग्री बांटे जाने की खबरें भी आती रहती हैं। रही-सही कसर प्रचार अभियान में नेताओं व उनके समर्थकों के बिगड़े बोल पूरी कर देते हैं। पहले से लेकर सातवें चरण तक के मतदान और इसके बाद मतगणना तक का लम्बा समय है।

लोकतंत्र में दलीय विचारधारा के आधार पर एक-दूसरे की नीतियों से असहमति हो सकती है लेकिन जब पार्टियों के समर्थक मामूली बात पर आमने-सामने होते दिखें तो चुनाव आयोग के सुरक्षा बंदोबस्तों की परीक्षा भी होती है। सबसे बड़ा सवाल चुनाव आयोग को और शक्तिमान बनाने का है। जितनी सख्ती अफसरों को हटाने के निर्देश देकर चुनाव आयोग ने दिखाई है, उससे ज्यादा सख्ती चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले राजनेताओं पर दिखानी होगी। ऐसा हुआ तो चुनाव शांतिपूर्ण होने की उम्मीदें ज्यादा रहेंगी।

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