गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले सुनाते हुए चुनावी बांड योजना को “असंवैधानिक” बताया. कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों को मिलने वाली फंडिंग के बारे में जानकारी जनता को चुनावी विकल्प चुनने के लिए आवश्यक है. कोर्ट ने योजना को सूचना के अधिकार और धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन माना. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि काले धन पर अंकुश लगाने के लिए सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है.
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चुनावी बांड के माध्यम से कॉर्पोरेट योगदानकर्ताओं के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए क्योंकि कंपनियों द्वारा दान पूरी तरह से बदले के उद्देश्य से दिया जाता है.
6 मार्च तक मांगा बॉन्ड से मिले चंदे का ब्योरा
इतना ही नहीं कोर्ट ने बांड से मिले चंदे का ब्योरा 6 मार्च तक कोर्ट में पेश करने को भी कहा, सुप्रीम कोर्ट ने इस महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई पिछले साल यानी अक्तूबर 2023 में की थी और नवंबर 2023 में इसपर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. कोर्ट ने 4 अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई की थी. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि बैंक तत्काल चुनावी बांड जारी करना बंद कर दें. सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि एसबीआई राजनीतिक दलों द्वारा लिए गए चुनावी बांड का ब्योरा पेश करेगा। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि एसबीआई भारत के चुनाव आयोग को विवरण प्रस्तुत करेगा और ECI इन विवरणों को वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा.
फैसले दो हैं लेकिन निष्कर्ष एक- सीजीआई
मामले में फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इस मामले में दो अलग-अलग फैसले हैं. एक फैसला उनके द्वारा लिखा गया और दूसरा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना द्वारा. हलांकि उन्होंने कहा कि दोनों फैसले सर्वसम्मत हैं.
कब और किसने शुरु की चुनावी बॉन्ड योजना
आपको बता दें, चुनावी बांड ब्याज मुक्त चंदा देने की स्कीम है. जिनका उपयोग अनिवार्य रूप से राजनीतिक दलों को गुमनाम रूप से धन दान करने के लिए किया जाता है. इस योजना की घोषणा पहली बार 2017 के केंद्रीय बजट भाषण में की गई थी जब स्वर्गीय अरुण जेटली वित्त मंत्री थे.
क्या थी याचिकाकर्ताओं की चिंता
जैसे की हमने बताया की इस मामले में चार याचिका दायर की गई थी. याचिकाकर्ताओं की पहली चिंता योजना की पारदर्शिता को लेकर थी. उनका कहना था कि मतदाता अब यह नहीं जान सकते कि किस व्यक्ति, कंपनी या संगठन ने किस पार्टी को और किस हद तक चंदा दिया है. जबकि पहले पार्टियों को 20,000 रुपये से अधिक का योगदान देने वाले सभी दानदाताओं का विवरण सार्वजनिक करना होता था. हालाँकि, केंद्र ने नकद दान के विकल्प के रूप में और राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के तरीके के रूप में बांड को पेश किया है.
चुनावी बांड योजना की संवैधानिकता को चुनौती देने के अलावा, याचिकाकर्ताओं ने अदालत से सभी राजनीतिक दलों को सार्वजनिक कार्यालय घोषित करने और उन्हें सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे में लाने और राजनीतिक दलों को अपनी आय और व्यय का खुलासा करने के लिए बाध्य करने की मांग की थी.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने पिछले साल 2 नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
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