दुबई: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी Narendra Modi ने दुबई में आयोजिक COP28 शिखर सम्मेलन से इतर मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू से मुलाकात की है. मुइज्जू को चीन समर्थक नेता माना जाता है.ऐसे में मुइज्जू से पीएम मोदी की मुलाकात काफी अहम बताई जा रही है. ऐसे में मुइज्जू के शासनकाल में मालदीव में अगर चीन की मौजूदगी और ज्यादा बढ़ती है तो यह भारत के लिए चिंता की बात हो सकती है.
COP28 में पीएम मोदी ने मुइज्जू को दी बधाई
मुइज्जू से पीएम मोदी की मुलाकात पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी बयान जारी किया है. पीएम मोदी ने राष्ट्रपति मुइज्जू को पदभार ग्रहण करने पर बधाई दी. दोनों नेताओं ने लोगों से लोगों के बीच जुड़ाव, विकास सहयोग, आर्थिक संबंध, जलवायु परिवर्तन और खेल सहित दोनों देशों के बीच व्यापक द्विपक्षीय संबंधों के मुद्दे पर बात करी. मंत्रालय ने बताया कि दोनों नेताओं ने अपनी साझेदारी को और गहरा करने के तरीकों पर भी चर्चा की। इस संबंध में वे एक कोर ग्रुप गठित करने पर सहमत हुए.
क्या भारत की बढ़ सकती है टेंशन
मालदीव हिंद महासागर में रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण जगह पर स्थित है. वह भारत के भी काफी करीब है.ऐसे में अगर मालदीव में चीन की मौजूदगी बढ़ती है तो इससे भारत का दक्षिणी हिस्सा असुरक्षित हो सकता है.भारत पहले से ही श्रीलंका में चीन की उपस्थिति को लेकर सतर्क है. मालदीव के चीन के कर्ज के जाल में भी फंसने की आशंका है.अगर मालदीव में चीन समर्थक शक्तियां मजबूत होती हैं तो इससे भारत का समर्थन करने वाले राजनेताओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.मुइज्जू ने राष्ट्रपति बनते ही मालदीव में मौजूद भारतीय सेना को देश छोड़ने का हुक्म दिया है. इतना ही नहीं, मुइज्जू ने अपनी पहली विदेश यात्रा के तौर पर कट्टर इस्लामी देश तुर्की को चुना है।
मुइज्जू का इंडिया आउट का नारा
मुइज्जू ने अपने चुनावी अभियान के दौरान इंडिया आउट का नारा दिया था.अपने हर चुनावी भाषण में मालदीव में मौजूद भारतीय सैनिकों को वापस भेजने की बात कही थी.मुइज्जू ने चुनाव में जीत और शपथग्रहण के बाद दोनों मौकों पर भारतीय सैनिकों की वापसी की मांग को दोहराया.मुइज्जू ने यह साफ किया है कि वह भारतीय सैनिकों की जगह किसी और देश के सैनिकों को तैनात करने के पक्ष में नहीं हैं.उन्होंने यह भी कहा था कि उनकी नीति मालदीव फर्स्ट की है.