215 अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आर्थिक स्थिति का वर्णन करने वाली पूरी रिपोर्ट और बिहार सरकार के जाति-आधारित सर्वेक्षण के आंकड़ों का दूसरा भाग आज बिहार विधानसभा में पेश किया गया. इसके साथ ही ये भी साफ हो गया कि इस पूरी जाति गणना का मकसद क्या था. सदन में रिपोर्ट पेश करने के बाद अपनी बात रखते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक प्रस्ताव पेश किया. सीएम ने प्रदेश में आरक्षण को बढ़ा कर 75 प्रतिशत करने की पेशकश की. यानी जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी वाला नारा ही इस पूरी कवायद का असल मकसद था.
सीएम ने 75 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव किया पेश
नीतीश कुमार जाति सर्वेक्षण पेश करने के बाद सदन में कहा कि पिछड़ा वर्ग के लिए कोटा 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी किया जाए… आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 फीसदी… इन्हें मिलाकर 75 फीसदी हो जाएगा… और 25 फीसदी फ्री रहेगा.
बिहार में जाति आधारित जनगणना की डिटेल रिपोर्ट मंगलवार को विधानसभा में पेश हुई. इसपर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री ने बड़ी बात कही. सीएम नीतीश ने आरक्षण को बढ़ाकर 75 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा है. और कहा इसको कैसे किया जाएगा इसकी एक रूपरेखा भी तैयार है.#CasteCensus #BiharCasteSurvey pic.twitter.com/RkvqYwhjUZ
— THEBHARATNOW (@thebharatnow) November 7, 2023
नीतीश ने आकड़ों के गलत होने के आरोप पर भी दिया जवाब
इस बीच जाति सर्वेक्षण के आकड़ों को गलत बताते हुए हंगामा कर रहे बीजेपी के सदस्यों को भी नीतिश कुमार ने करारा जवाब दिया. नीतीश ने कहा, “जब यह सब (जाति-आधारित सर्वेक्षण) 1930 में शुरू हुआ, तब देश पर अंग्रेज शासन कर रहे थे. बाद में, जाति जनगणना बंद कर दी गई. हम शुरू से ही (देशव्यापी जाति जनगणना के लिए) मांग कर रहे हैं. आपको (विपक्ष का जिक्र करते हुए) ऐसा करना चाहिए याद रखें कि हम – नौ दल – परस्पर सहमत थे कि ऐसा होना चाहिए और फिर हम अपनी मांग के साथ पीएम से मिले,”
नीतीश कुमार ने आगे कहा, “जब जाति-आधारित जनगणना पहले कभी नहीं हुई है, तो आप यह दावा कैसे कर सकते हैं कि इस जाति को अधिक मिला, और उस जाति को कम मिला? यह एक फर्जी दावा है.”
#WATCH जाति आधारित सर्वेक्षण पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, “… कुछ लोग कहते हैं कि इस जाति की जनसंख्या बढ़ गई या घट गई लेकिन ये बताइए कि जब इससे पहले जाति आधारित जनगणना नहीं हुई है तो आप कैसे कह सकते हैं कि इस जाति की संख्या बढ़ गई या घट गई?… हम शुरूआत से केंद्र… pic.twitter.com/VAH9mJSDIl
— ANI_HindiNews (@AHindinews) November 7, 2023
क्या 2024 में फिर एक बार होगी मंडल कमंडल की लड़ाई
यानी नीतीश ने वीपी सिंह के मंडल दाव को आगे बढ़ाते हुए बीजेपी के कमंडल यानी मंदिर दाव का जवाब दिया है. 2024 में जब बीजेपी राम मंदिर के दरवाज़े जनता के लिए खोल हिंदुत्व की लहर पर सवार होकर तीसरी बार सरकार में आने की तैयारी में है ऐसे में बिहार एक बार फिर बीजेपी के इस विजय रथ को रोकने की तैयारी कर चुका है. नीतीश का 75 प्रतिशत आरक्षण का दाव कभी हकिकत बन भी पाएगा की नहीं ये एक लंबी बहस और प्रक्रिया का मुद्दा है लेकिन 2024 के लिए उनका ये दाव कितना कारगर होगा ये चंद दिनों में साफ हो जाएगा. जब ओबीसी को न्याय दिलाने की बात करने वाले राहुल गांधी इसपर अपनी राय साफ कर देंगे. अगर राहुल बिहार की जाति गणना की तरह ही इसे इंडिया गठबंधन और कांग्रेस का मुद्दा बनाते है तो समझ लीजिए की 2024 में एक बार फिर देश में मंडल कमंडल की लड़ाई देखने को मिलेगी.
जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट के आकड़ों पर एक नज़र डाल लेते है
इस रिपोर्ट में कुछ आकड़े चौंकाने वाले थे तो कुछ की उम्मीद ही थी. जैसे ये आकड़ा की बिहार की एक तिहाई 6000 या उससे कम मासिक कमाई में जीवन गुज़ार रही है. मंगलवार को राज्य विधानसभा में पेश की गई जाति सर्वेक्षण की विस्तृत रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार में रहने वाले एक तिहाई से अधिक परिवार गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं, जिनकी मासिक आय 6,000 रुपये या उससे कम है.
रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में अनुसूचित जाति के 42 प्रतिशत से अधिक परिवार गरीब हैं, जबकि सामान्य वर्ग के 25 प्रतिशत लोग गरीब हैं. बिहार में अनुसूचित जनजाति के लगभग 42.70 प्रतिशत परिवार गरीब हैं.
रिपोर्ट में बताया गया है कि अन्य पिछड़ा वर्ग के 33.16 प्रतिशत और अत्यंत पिछड़े वर्ग के 33.58 प्रतिशत लोग गरीब हैं.
1990 की मंडल लहर तक राज्य की राजनीति पर हावी रहे, बिहार की सबसे बड़ी भूमि-स्वामी जाति मानी जाने वाली भूमिहारों में गरीबी अनुपात आश्चर्यजनक रूप से 27.58 है जो काफी ज्यादा है.
सामान्य श्रेणी में सरकारी नौकरियाँ
बिहार-जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, सामान्य वर्ग के 6 लाख से अधिक लोगों के पास सरकारी नौकरियां हैं, जो कुल आबादी का 3.19 प्रतिशत है.
बिहार में लगभग 4.99 प्रतिशत भूमिहारों के पास सरकारी नौकरियां हैं जबकि बिहार में 3.60 प्रतिशत ब्राह्मण सरकारी नौकरियों में हैं.
वहीं बिहार में सरकारी नौकरियों में राजपूत और कायस्थ समुदाय के लोग क्रमशः 3.81 प्रतिशत और 6.68 प्रतिशत हैं.
शेख समुदाय के लोगों की सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी 39,595 है, जो 0.79 प्रतिशत है, जबकि पठान समुदाय के लोगों की सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी 10,517 है, जो कि 1.07 प्रतिशत है. बिहार में कुल सैयद समुदाय में से 7,231 लोग सरकारी नौकरियों में हैं.
पिछड़ा वर्ग में सरकारी नौकरी की स्थिति
वहीं अगर बात पिछड़ा वर्ग की करें तो, बिहार-जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, पिछड़ा वर्ग श्रेणी के 6,21,481 लोगों के पास सरकारी नौकरियां हैं, जो बिहार में कुल पिछड़ा वर्ग की आबादी का 1.75 प्रतिशत है.
इसी तरह यादव समुदाय के लगभग 2,89,538 लोगों के पास सरकारी नौकरियां हैं जो बिहार में कुल पिछड़ा वर्ग की आबादी का 1.55 प्रतिशत है.
वहीं कुशवाह समुदाय के लगभग 2.04 प्रतिशत, तो कुर्मी के 3.11 प्रतिशत, और बनिया के 1.96 प्रतिशत सरकारी नौकरिया हैं. अगर बात मुस्लमानों की करें तो, सुरजापुरी मुसलमानों के पास 0.63 प्रतिशत, भांट के पास 4.21 प्रतिशत और मलिक मुसलमानों के पास 1.39 प्रतिशत के आसपास सरकारी नौकरियां हैं.
बिहार में परिवारों की आवासीय स्थिति
बिहार-जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट में एक और महत्वपूर्ण बात जो निकल कर आई वो है कि 50 लाख से अधिक बिहारवासी राज्य के बाहर रहते थे. दूसरे राज्यों में कमाई करने वालों की संख्या लगभग 46 लाख है, जबकि अन्य 2.17 लाख लोगों को विदेशों में अच्छी जिंदगी जी रहे हैं.
जबकी दूसरे राज्यों में पढ़ाई करने वाले छात्रों की संख्या लगभग 5.52 लाख है, जबकि लगभग 27,000 लोग विदेश में भी पढ़ाई कर रहे हैं.
बिहार जाति सर्वेक्षण परिणाम की पहली कड़ी में 2 अक्टूबर को बताया गया था कि बिहार में ओबीसी और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) राज्य की कुल आबादी का 60 प्रतिशत से अधिक हैं, जबकि ऊंची जातियां लगभग 10 प्रतिशत हैं.