दिल्ली : जम्मू कश्मीर से Article 370 हटाये जाने के विरोध में दाखिल याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की पीठ सुनवाई कर रही है. चीफ जस्टिस डी वाय चंद्रचूड़ इस पीठ की अध्यक्षता कर रहे हैं. पीठ में जस्टिस चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस संजय कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत सुनवाई कर रहे हैं. जम्मू कश्मीर से Article 370 हटाये जाने के खिलाफ अब तक सुप्रीम कोर्ट में 23 याचिकाएं आई हैं, जिनपर सुनवाई हो रही है.
जम्मू कश्मीर Article 370
केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर को स्पेशल स्टेट का दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को हटा दिया था औऱ राष्ट्रपति का आदेश लागू करते हुए जम्मू कश्मीर में भी देश के दूसरे हिस्से की तरह भारत का संविधान लागू करने का रास्ता साफ कर दिया था.इस आदेश को संसद के दोनों सदनों ने बहुमत से पास किया था.
अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले के बाद केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला किया.इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट में नोट दाखिल किया गया है. अलग अलग याचिकाओं पर बहस के लिए 18 वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए 60 घंटे का समय मांगा है.
नोट के मुताबिक याचिकाकर्ताओं की तरफ से कपिल सिब्बल और गोपाल सुब्रमन्यम दस-दस घंटे बहस करेंगे इसके अलावा दुष्यंत दवे, , राजीव धवन, गोपाल शंकर नारायणन, मेनका गुरुस्वामी, शेखर नफाड़े,चंदर उदय सिंह, नित्या रामकृष्णन भी बहस करेंगे. वहीं केंद्र सरकार के लिए अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता बहस करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान कपिल सिब्बल की दलील
याचिकाकर्ता अकबर लोन की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि आज सुप्रीम कोर्ट में एक ऐतिहासिक पल है. आज इस बात पर बहस हो रही है कि 5 अगस्त 2019 को इतिहास को क्यों कुरेदा गया?
सिब्बल ने कहा कि संसद में जो प्रकिया अपनाई गई , क्या वो लोकतंत्र के अनुरुप थी ?
क्या जम्मू कश्मीर के लोगों की आवाज को दबाया नहीं गया ?
याचिकाकर्ता की तरफ से वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले को यहां तक आने में 4 साल लग गये. पिछले 4 साल से राज्य में कोई चुनी हुई सरकार नहीं है. ये अनुच्छेद जो राज्य में लोकतंत्र को बहाल करने की मांग करती है , उसे रद्द कर दिया गया. क्या ऐसा किया जा सकता हैं?
‘लोकतंत्र की आड़ में अधिकारों का दमन’ – कपिल सिब्बल
कपिल सिब्बल ने कहा कि आज हम यहां इस आधार पर बहस कर रहे हैं कि जम्मू- कश्मीर का भारत में एकीककरण निर्विवाद है और हमेशा निर्विवाद ही रहेगा. लेकिन संसद में असंवैधानिक प्रक्रिया के तहत पूरे ढांचे को बदल दिया गया. जम्मू-कश्मीर के लोगों की भावनाओं को क्या इस तरह से दबाया जा सकता है ? पिछले 5 सालों से J&K में लोकतंत्र नहीं है. राज्य में लोकतंत्र के नाम पर लोकतंत्र को खत्म कर दिया गया.
किस कानूनी प्रावधान के तहत विधायिका को खत्म किया गया- कपिल सिब्बल
कपिल सिब्बल ने राज्य में लागू राष्ट्रपति शासन का मुद्दा उठाते हुए कहा कि जम्मू कश्मीर का भारतीय संघ में विलय एक अलग संबंधों के तहत किया गया. क्या दो संप्रभुओं के बीच के संबंध को इस तरह से खत्म किया जा सकता है . सत्ता में मौजूद पार्टियों के हटने के बाद राज्यपाल ने विधानसभा को निलंबित कर दिया औऱ ये सोचने समझने का मौका तक नहीं दिया कि राज्य में दूसरी सरकार बन सकती है कि नहीं?
भारत का संविधान अपने आप में एक पोल दस्तावेज है जो समाज में रहने वालों की इच्छाओं और आकांक्षाओं का ध्यान रखता है . सुप्रीम कोर्ट में बहस जारी है ….