दिल्ली बिहार के बाहुबली पूर्व सांसद और आरजेडी नेता आनंद मोहन सिंह की समय पूर्व रिहाई पर बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा दाखिल कर दिया है. बिहार सरकार ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि “किसी कैदी की रिहाई की अपील सिर्फ इस आधार पर खारिज नहीं की जा सकती है कि मारा गया व्यक्ति सरकारी अधिकारी था.”
जी कृष्णैया की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में किया है अपील
गोपालगंज के जिलाधिकारी रहते हुए जी कृष्णैया की हत्या के दोषी आनंद मोहन की उम्रकैद की सजा को खत्म करने के बिहार सरकार के फैसले को उनकी पत्नी उमा कृष्णैया ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उमा कृष्णैया की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को नोटिस जारी किया था . इसी नोटिस के जवाब में शुक्रवार को बिहार सरकार ने हलफनामा दाखिल किया.
बिहार सरकार ने आनंद मोहन की रिहाई को सही बताया
नीतीश कुमार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में नियमों में बदलाव को सही बताते हुए दलील दी है कि उम्र कैद की सजा काट रहे किसी कैदी को केवल इस आधार पर रिहाई ना दी जाये कि जिसकी हत्या हुई वो पीडित व्यक्ति सरकारी अधिकारी था. ये भेदभाव पूर्ण है.
‘सरकार ने हैसियत के आधार पर भेदभाव को खत्म किया’
बिहार सरकार ने अपनी दलील को आगे बढ़ाते हुए कहा कि सरकार ने केवल उस नियमावली में संशोधन किया है जिसमें हैसियत के आधार पर भेदवाव का जिक्र था.केवल उस प्रवधान को खत्म किया गया है.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 19 मई को हुई सुनवाई में बिहार सरकार से आनंद मोहन की रिहाई का आधार पूछा था, साथ ही बदले गये नियम से संबंधित सारे दस्तावेज मांगे थे. बिहार सरकार ने अपने जवाब में ये भी कहा है कि कानून के मुताबिक एक आम आदमी की हत्या के मामले में भी उतनी ही सजा का प्रवधान है जितनी किसी सरकारी कर्मचारी की हत्या में हो सकती है.
जेल मैनुअल भेदभावपूर्ण – बिहार सरकार
सरकार ने बताया कि जेल मैनुअल के मुताबिक किसी आम आदमी की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे दोषी की रिहाई तो हो सकती है लेकिन किसी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी की हत्या के दोषी की ताउम्र रिहाई नहीं दी जा सकती है .ये जेल मैनुअल भेदभावपूर्ण था,इसलिए बिहार सरकार ने 10 अप्रैल को इसमे संशोधन करते हुए बदलाव कर दिया और इसे सभी के लिए एक बराबर कर दिया.
बिहार सरकार ने कहा जेल में आनंद मोहन का व्यवहार अच्छा
नीतीश सरकार ने जेल मैनुअल में बदलाव के साथ साथ हलफनामे में आनंद मोहन का कैरेक्टर भी बताया है. सरकार की तरफ से हलफनामे में कहा गया है कि जेल मे रहते हुए आनंद मोहन का व्यवहार अन्य कैदियों की तरफ काफी अच्छा था. आनंद मोहन के बारे मे जेल से मिली रिपोर्ट उनकी सजा रद्द करने का आधार बनी.
बिहार सरकार ने अपने हलफनामे में आनंद मोहन की तीन किताब और उसके मेहनताने की भी जिक्र किया. सरकार की तरफ से कहा गया कि आनंद मोहन ने जेल में रहते हुए तीन किताब लिखी और उसे जो काम दिया गया उसे अच्छी तरह से किया. जेल मे रहने के दौरान आनंद मोहन का अच्छा व्यवहार उनकी रिहाई का आधार बनी.
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बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को राज्य के अधिकार की याद दिलाई
नीतीश सरकार ने हलफनामे मे एक और महत्वपूर्ण बात कही है. कहा कि राज्य सरकार कैदी की समय से पूर्व रिहाई का अधिकार रखती है.सुप्रीम कोर्ट को इस बात का संज्ञान रखना चाहिये कि सरकार द्वारा लिये गये फैसले की न्यायिक समीक्षा का आधार सीमित है.
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जी कृष्णैया हत्या कांड
बिहार के गोपालगंज में 1994 में तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्मैया की दिन दहाड़े एक भीड़ ने उस समय हत्या कर दी थी जब वो एक सरकारी मिटिंग से वापस लौट रहे थे. उस भीड़ की अगुवाई आनंद मोहन कर रहे थे. 2007 में आनंद मोहन पर जी कृष्मैया की हत्या का केस साबित हुआ औऱ उसे फांसी की सजा हुई , बाद में 2008 में पटना हाईकोर्ट ने फांसी की सजा को उम्र कैद में तब्दील कर दिया था. तब मामला सुप्रीम कोर्ट में भी गया था और सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सही ठहराया था.