गिरते शेयर और घटती दौलत के बीच डूबते नज़र आ रहे अडानी समूह को तिनके का सहारा मिल ही गया. अडानी समूह का बचाव करने अब आरएसएस सामने आ गया है. आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर ने Decoding the hit job by Hindenburg against Adani Group शिर्षक से एक लेख छपा है. लेख का सार ये है कि अडानी के खिलाफ साजिश के तहत हिंडनबर्ग रिपोर्ट को जारी किया गया है. ये साजिश ऑल्टेलिया में रची गई है.
लेख में क्या दावा किया गया है
आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर के आर्टिकल में बताया गया है कि कैसे और कौन अडानी समूह के मौजूदा संकट के पीछे है. ऑर्गेनाइजर का दावा है कि इस संकट की साजिश 2016-17 से हो रही है. अखबार लिखता है कि “अडानी समूह पर यह हमला वास्तव में हिंडनबर्ग शोध रिपोर्ट के बाद 25 जनवरी, 2023 को शुरू नहीं हुआ, बल्कि ऑस्ट्रेलिया से वर्ष 2016-17 में शुरू किया गया था. क्या आप जानते हैं कि केवल भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी को बदनाम करने के लिए एक ऑस्ट्रेलियाई एनजीओ द्वारा प्रबंधित एक विशेष वेबसाइट है? बॉब ब्राउन फाउंडेशन (बीबीएफ), माना जाता है कि यह एक पर्यावरणविद् एनजीओ है, जो adaniwatch.org चलाता है. इस वेबसाइट की शुरुआत ऑस्ट्रेलिया में अडानी की कोयला खदानों की परियोजनाओं के विरोध से हुई थी, लेकिन यह यहीं तक सीमित नहीं थी. अब एनजीओ की वेबसाइट सब कुछ और कुछ भी प्रकाशित करती है, यानी दूर से अडानी से भी जुड़ा हुआ है कुछ भी.”
इस लेख में कहा गया है कि ऑस्ट्रेलियाई एनजीओ से लेकर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सभी पूरी प्लानिंग के तहत किया गया है.
बीबीएफ का रवैया कांग्रेस और विपक्ष के प्रति नरम है
लेख में दावा किया गया है कि बॉब ब्राउन फाउंडेशन विपक्षी शासित राज्यों में अडानी के प्रोजेक्ट को निशाना नहीं बनाता है. लेख में राहुल गांधी का नाम भी लिया गया है. कहा गया है कि “किसी कारणवश, बीबीएफ विपक्ष के प्रति नरम हो जाता है. वे कांग्रेस या टीएमसी के नेतृत्व वाले राज्यों में अडानी परियोजनाओं को निशाना नहीं बनाता है. वह विरोध के पक्ष में राहुल गांधी के एक बयान देने भर स संतु,ट हो जाता है. विपक्षी राज्यों में अडानी के निवेश को कहा जा रहा है कि अडानी मोदी की पसंदीदा होने की छवि से बचने के लिए इन राज्यों में जा रहा है.”
बीएफएफ की फंडिंग पर भी उठाए सवाल
आर्टिकल में दावा किया गया है कि ये सजिश 2010 से शुरु हुई जब “अडानी समूह को 2010 में ऑस्ट्रेलिया में कारमाइकल कोयला खदान के लिए एक परियोजना मिली. 2017 में 350.org एनजीओ के नेतृत्व में कुछ एनजीओ द्वारा अडानी के खिलाफ विरोध शुरू किया गया था. उन्होंने इस प्रोजेक्ट को रोकने के लिए ग्रुप #StopAdani का गठन किया है.”
आर्टिकल दावा कहता है कि 350.org को टाइड्स फाउंडेशन से फंडिंग की जाती है. इसमे कहा गया है क हलांकि 350.org अपने दानदाताओं का खुलासा नहीं करता है. लेकिन इसने माना है कि उसने टाइड्स फाउंडेशन से फंड प्राप्त किए है. टाइड्स फाउंडेशन के बारे में बताया गया है कि ये सैन फ्रांसिस्को स्थित एक डोनर-एडवाइज्ड फंड है, जिसने गुमनाम रहने की इच्छा रखने वाले दानदाताओं और फाउंडेशनों से उदार समूहों को करोड़ों डॉलर दिए हैं. जॉर्ज सोरोस और टॉम स्टेयर से जुड़े समूहों ने भी 350.org में व्यापक योगदान दिया है. टाइड्स फाउंडेशन को फंड कौन देता है? इसमें सोरोस, फोर्ड फाउंडेशन, रॉकफेलर, ओमिडयार और बिल गेट्स के नाम हैं.
इसके साथ ही इसमें एक और भारतीय एनजीओ नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया (NFI) का जिक्र है जिसे सोरोस, फोर्ड फाउंडेशन, रॉकफेलर, ओमिडयार, बिल गेट्स और अजीम प्रेमजी से फंड मिला. आर्टिकल में कहा गया है कि अजीम प्रेमजी के नेतृत्व में एक एनजीओ शुरू किया गया था, जो Altnews, The Wire, The Caravan, The News Minute, आदि प्रचार समाचार वेबसाइटों को फंड देता है.
सभी मोदी विरोधी या खुद को स्वतंत्र पत्रकार कहने वाले पत्रकारों पर साधा गया है निशाना
आर्टिकल में फंडिंग के तार आजीम प्रेमजी से जोड़ने के बाद इसमें उन सबी पत्रकारों के नाम भी लिए गए है जो खुद को स्वतंत्र पत्रकार बोलते है और अकसर मोदी सरकार पर हमलावर होते है. लेख में खास कर सीपीआई (एम) नेता सीताराम येचुरी की पत्नी सीमा चिश्ती का नाम लिया गया है जिन्हें एनएफआई में मीडिया फेलोशिप सलाहकार बताया गया है और उनके बीबीसी में बतौर पत्रकार 10 साल काम करने की बात भी कहीं गई है. लेख में दावा किया गया है कि द वायर की संपादक हैं और द कारवां में लिखने वाली सीमा चिश्ती ने बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के लिए भी मसाला तैयार किया है.
कुल मिलाकर कहें तो अडानी के खिलाफ साजिश से शुरु हुआ लेख 2002 गुजरात दंगों पर बनी बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को भी इस साजिश को हिस्सा करार देता है. इस लेख में कथित तौर पर मोदी विरोधी कहें जाने वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म और पत्रकारों को निशाना बनाया गया है. इसके साथ ही लेख अडानी समूह के खिलाफ आई हिंडनबर्ग रिपोर्ट और बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को वाम दलों की सरकार और देश को बदनाम करने की साजिश बताता है.
सवाल ये है कि अगर लेख में लिखी गई बातों को सच भी मान लिया जाए तो सरकार और सरकारी एजेंसियां अडानी समूह के खिलाफ जांच से बच क्यों रही है. अगर ये एक साजिश है तो जांच में इसका भी खुलासा हो जाएगा. सवाल ये भी है कि अडानी समूह के खिलाफ जो आरोप लगाए गए है अगर उनमें जरा भी सच्चाई नहीं है तो विदेशी रेटिंग कंपनियां और बैंक खुद को अडानी समूह से अलग क्यों कर रहे है.
सवाल ये भी है कि अगर अडानी सरकार के चहेते नहीं है तो इस तरह आरएसएस को उनके समर्थन में खुलकर सामने आने की जरूरत क्या थी. इस वित्तीय मामले को वित्तीय एजेंसियों और सरकार पर छोड़ देना चाहिए था. आरएसएस के मुखपत्र में इस तरह के लेख छपने से तो विपक्ष के इस आरोप को और बल मिलेगा कि भ्रष्टाचार अडानी समूह का नहीं मोदी सरकार का है.