10 अक्टूबर को करवाचौथ व्रत है. उत्तर भारत में ये व्रत बड़े पैमाने पर विवाहित महिलाएं रखती हैं. कहा जाता है कि ये व्रत सैकड़ों सालों से रखा जा रहा है. क्या ये मुश्किल व्रत महाभारत काल में द्रौपदी और रामायण काल में सीता भी रखती थीं. आखिर हमारे शास्त्र इस बारे में क्या कहते हैं. हां ये जरूर है कि अर्जुन को लेकर एक बार द्रौपदी ने एक कठिन व्रत जरूर रखा था, जिसकी कथा को करवा चौथ से जोड़ा जाता है.
तो इसका सीधा जवाब होगा – नहीं. आज जो करवा चौथ का व्रत रखा जाता है, उसका उल्लेख ना तो रामायण में है और ना ही महाभारत में लेकिन कुछ कुछ प्राचीन ग्रंथों में ऐसे समानार्थी व्रतों का ज़िक्र ज़रूर मिलता है जिनका स्वरूप करवा चौथ से मिलता-जुलता है. मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, अथवा गृह्यसूत्रों में “करवा चौथ” जैसा व्रत नहीं मिलता.
रामायण और महाभारत क्या कहते हैं
करवा चौथ” नाम से कोई व्रत न तो वेद ना पुराण और ना ही रामायण या महाभारत में मिलता है. यह व्रत लोक परंपरा (लोकायत धर्म) से विकसित हुआ, जो बाद में धर्मशास्त्रों में स्थान पाता गया. “करक चतुर्थी” या “करक व्रत” का उल्लेख कुछ पुराणों जैसे भविष्य पुराण और नारदीय पुराण में मिलता है. इसमें बताया गया है कि स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए चतुर्थी तिथि पर उपवास रखती हैं – इसे आधुनिक करवा चौथ का ही शुरुआती रूप माना जा सकता है.
वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण या रामचरितमानस – किसी में भी सीता द्वारा “करवा चौथ” या “सौभाग्य हेतु व्रत” रखने का उल्लेख नहीं हुआ है. उत्तरकांड में ये ज़रूर कहा गया है कि सीता ने पति के धर्म के पालन और तपस्या में अटूट निष्ठा रखी – पर उपवास के रूप में करवा चौथ जैसा व्रत नहीं उस दौर में नहीं होता था.
हां उत्तर भारत की कुछ लोककथाओं में ये कहा जाता है कि जब राम वनवास में थे, सीता ने उनकी सुरक्षा के लिए चंद्रमा को अर्घ्य दिया था. लेकिन यह लोक परंपरा है, शास्त्रीय प्रमाण नहीं.
धार्मिक मान्यताएं जरूर हैं कि माता सीता ने भगवान श्रीराम के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था, विशेष रूप से जब वे अशोक वाटिका में थीं. माना जाता है कि उन्होंने पति की लंबी आयु और सुख-संपत्ति के लिए यह व्रत किया था.हालांकि उन्होंने व्रत जरूर किया था लेकिन इसे करवा चौथ नहीं कहा गया.
चिंतित द्रौपदी ने अर्जुन के लिए कौन सा व्रत रखा
महाभारत में एक प्रसिद्ध प्रसंग है. पांडव वनवास में हैं. अर्जुन तपस्या को गए हैं. द्रौपदी चिंतित हैं. तब कृष्ण उन्हें “करक व्रत” करने का सुझाव देते हैं, जिससे पति की सुरक्षा और सफलता होती है. हालांकि यह प्रसंग “महाभारत” के मूल संस्करण में नहीं बल्कि बाद में जोड़े गए “व्रत-खंड या “कथासरित्सागर” जैसी ग्रंथों की लोक कथाओं वाली शृंखला में मिलता है. कहते हैं कि इसी प्रसंग के बाद करवा चौथ की कथा विकसित हुई. जिसमें एक स्त्री अपने पति की रक्षा के लिए चतुर्थी तिथि का व्रत रखती है.
मिट्टी का घड़ा और कृष्ण चतुर्थी
अधिकांश विद्वानों के अनुसार, यह व्रत उत्तर-पश्चिम भारत यानि पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की परंपरा से आया है. “करवा” यानि मिट्टी का घड़ा और “चौथ” का मतलब चतुर्थी तिथि. यानि कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्थी को किया जाने वाला उपवास. कृषि आधारित समाज में, यह समय रबी फसलों की बुवाई से पहले का होता था. तब स्त्रियां पति की दीर्घायु और परिवार की समृद्धि के लिए व्रत रखती थीं. धीरे धीरे यह कथा शृंगार और चांद के दीदार करके व्रत तोड़े जाने से जुड़ गई.
द्रौपदी का ‘करक व्रत’ जो अब करवा चौथ बन गया
आइए जानते हैं कि वो करक व्रत कथा कौन सी है, जिस व्रत को द्रौपदी ने कृष्ण के कहने पर अर्जुन की रक्षा के लिए रखा था., बाद में ये करवा चौथ की कथा के रूप में विकसित हुई. कहा जाता है कि इसी से आधुनिक करवा चौथ की नींव पड़ी.
एक बार पांडव जब वनवास में थे, तो अर्जुन तपस्या करने के लिए हिमालय चले गए. अर्जुन के जाने के बाद द्रौपदी बहुत चिंतित रहने लगीं. क्योंकि वन में पांडवों को तरह-तरह के संकटों और राक्षसों से जूझना पड़ रहा था. द्रौपदी ने मन ही मन भगवान कृष्ण को याद किया. उन्होंने कहा, “हे माधव! मेरे पति संकट में हैं. उनके जीवन की रक्षा कैसे हो, इसका उपाय बताइए.”
भगवान कृष्ण मुस्कराए और बोले, “हे द्रौपदी, तुम्हारी चिंता उचित है.एक प्राचीन व्रत है – करक चतुर्थी व्रत, जिसे यदि श्रद्धा से किया जाए तो पति की आयु बढ़ती है, संकट दूर होते हैं और सौभाग्य अखंड रहता है.” द्रौपदी ने पूछा, “हे माधव, यह व्रत कैसे किया जाता है?” तब कृष्ण ने ये बताया कि ये व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को स्नान करके मिट्टी के घड़े में जल भरकर रखा जाना चाहिए. उसमें गणेशजी तथा चंद्रमा का पूजन कर पति की लंबी उम्र का संकल्प करना चाहिए. फिर रात में चांद को अर्घ्य देकर फिर पानी पीना चाहिए.”
द्रौपदी ने उसी अनुसार व्रत किया. कहा गया कि इस व्रत के चलते अर्जुन की तपस्या सफल हुई. बाद में यही करक व्रत “करवा चौथ” बन गया. कई स्थानों पर यह भी मान्यता है कि माता पार्वती ने पहला करवा चौथ व्रत भगवान शिव के लिए रखा था.