नई दिल्ली। पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की एक टिप्पणी ने अयोध्या विवाद एक बार फिर चर्चा में ला दिया है। उन्होने एक इंटरव्यू में कहा था कि बाबरी मस्जिद का निर्माण ही मूल रूप से अपवित्र था। उनका कहना था कि जिस स्थान पर पहले से मस्जिद हो, वहां मस्जिद बनाना ही अपवित्र था। इसी को लेकर विवाद शुरू हो गया है और प्रोफेसर जी मोहन गोपाल ने तो राम मंदिर पर आए फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि चंद्रचूड़ के बयान के आधार पर ही क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की जा सकती है।
वहीं दूसरी तरफ चंद्रचूड़ अपने बयान पर सफाई भी दे चुके हैं। उनका कहना है कि उनके शब्दों को संदर्भ से बाहर निकालकर गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है और सुप्रीम कोर्ट का अयोध्या फैसला साक्ष्य और कानूनी सिद्धांतों पर आधारित था, न कि आस्था पर। उन्होंने यह भी कहा कि आलोचक अक्सर पूरे फैसले को नहीं पढ़ते, जो 1,000 से अधिक पृष्ठों का है। कहा जाता है कि इस फैसले की ड्राफ्टिंग खुद चंद्रचूड़ ने ही की थी। चंद्रचूड़ के साक्षात्कार की क्लिप्स सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हो रही हैं।
प्रोफेसर जी. मोहन गोपाल ने कहा कि डीवाई चंद्रचूड़ के बयान में वह बात कही गई है, जो फैसले में ही नहीं है। ऐसे में इसके आधार पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की जा सकती है। 2019 में 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने राम मंदिर केस में फैसला सुनाया था। इस बेंच में तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल थे। बेंच ने कहा था कि मुस्लिम पक्ष यह साबित करने में असफल रहा है कि बाबरी मस्जिद वाले स्थान पर उनका कोई निर्बाध मालिकाना हक रहा है। इसके साथ ही मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला दिया गया और अब राम मंदिर का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है। राम मंदिर पर आए फैसले में यह भी स्पष्ट रूप से दर्ज किया गया कि बाबरी मस्जिद के निर्माण के लिए मंदिर को तोड़ने का कोई प्रमाण नहीं है। प्रोफेसर जी मोहन गोपाल ने चंद्रचूड़ की टिप्पणी के जवाब में कहा कि अब अयोध्या का फैसला दूषित हो गया है और फैसले तथा बाद की टिप्पणियों के बीच असंगति से निर्णय में विश्वास कमजोर हो सकता है।
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