इंदौर: मध्य प्रदेश में अर्बन मोबिलिटी की पहचान रहा इंदौर का बीआरटीएस कॉरिडोर (बस रैपिड ट्रांजैक्शन सिस्टम) अब इतिहास बनकर रह जाएगा. इसे हटाने को लेकर हाई कोर्ट और राज्य सरकार की सहमति के बाद बुधवार से इसको पूरी तरह से हटाने का काम शुरू हो जाएगा. इंदौर नगर निगम ने इसे हटाने के लिए एजेंसी भी निर्धारित कर दी है.
चुनिंदा शहरों को मिली थी बीआरटीएस की सौगात
शहरों में सुगम यातायात की दृष्टि से केंद्र सरकार की जेएनएनयूआरएम परियोजना के चलते प्रदेश के कुछ चुनिंदा शहरों को बीआरटीएस नामक ऐसी सौगात दी थी, जिसमें शहर की मुख्य सड़क के निर्धारित गलियारे में बिना किसी बाधा के बस के जरिए लोग आसान सफर कर सकें. मुख्य रूप से इंदौर और भोपाल में तैयार किए गए कॉरिडोर में से इंदौर बीआरटीएस कॉरिडोर को संचालित करने के लिए अटल इंदौर सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विस लिमिटेड नामक कंपनी का गठन हुआ. जिसके ऑपरेशन के चलते इंदौर का बीआरटीएस कॉरिडोर सबसे सफल प्रोजेक्ट रहा.
2013 में शुरू हुआ था बसों का संचालन
इस 11.47 किलोमीटर लंबे कॉरिडोर पर 10 मई 2013 से बसों का संचालन शुरू हुआ था. जिसके लिए आगरा मुंबई मार्ग के निरंजनपुर चौराहे से राजीव गांधी सर्किल तक बीआरटीएस बनाया गया था. शुरुआती दौर में इसकी लागत करीब 90 करोड़ थी, लेकिन बनते-बनते इसकी लागत करीब 300 करोड़ पहुंच गई. जब यह कॉरिडोर बनकर तैयार हुआ तो इस कॉरिडोर में चलने वाली आधुनिक और लग्जरी बसें हर किसी के लिए आकर्षण का केंद्र थी.
यही वजह रही कि अर्बन मोबिलिटी की लग्जरी सवारी के रूप में इंदौर के लोगों ने बीआरटीएस कॉरिडोर को स्वीकार किया और प्रतिदिन इसमें सफर करने वाले यात्री 60000 से लेकर 65000 तक होते थे.
बड़ी आबादी इन्हीं बसों में कर रही है सफर
बीते एक दशक में न केवल बीआरटीएस कॉरिडोर बल्कि इन बसों में यात्रा के नए-नए सोपान और सुविधा भी विकसित की गई. यही वजह रही कि इसे हटाने की घोषणा और जरूरी औपचारिकताओं के बाद भी शहर की एक बड़ी आबादी अभी भी इसी कॉरिडोर में चल रही बसों में अपने सफर को प्राथमिकता दे रहे हैं.
हाई कोर्ट ने दिए थे हटाने के आदेश
इसी साल फरवरी में भोपाल बीआरटीएस को हटाने के फैसले के साथ इंदौर के बीआरटीएस को भी हटाने संबंधी फैसला दिया था. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि "बीआरटीएस कॉरिडोर के कारण सड़क पर यातायात का दबाव बढ़ गया है. जिससे यात्रियों को परेशानी होती है." इस मामले में इंदौर के सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कोटवानी ने हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ में 2 याचिका दायर की थी. इसके बाद हाई कोर्ट ने बीआरटीएस कॉरिडोर की उपयोगिता जांच करने के लिए 5 सदस्यों वाली एक्सपर्ट कमेटी गठित की थी.
इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि बीआरटीएस कॉरिडोर के कारण यातायात पर दबाव पड़ रहा है. इसके बाद सरकार ने भी इसे हटाने के फैसले पर अपनी सहमति दे दी थी. इसके बाद से ही इसे हटाने के प्रयास किए जा रहे हैं. इस मामले में याचिकाकर्ता द्वारा कोर्ट में अपील की गई थी कि बीआरटीएस कॉरिडोर के लिए रोड का 42% हिस्सा 2% लोगों के लिए आरक्षित किया गया है, जो 94 करोड़ में बना था, लेकिन इसमें 325 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी उसकी उपयोगिता सिद्ध नहीं हो सकी.
कॉरिडोर में थी कई सुविधायें
बीआरटीएस कॉरिडोर को हटाए जाने के फैसले के बावजूद इंदौर का ग्रीन कॉरिडोर अपनी खास यादों को भी समेटे हुए हैं. इंदौर के बीआरटीएस कॉरिडोर में सबसे ज्यादा ग्रीन कॉरिडोर बनाए गए और एक दशक से ज्यादा के समय में यह कॉरिडोर शहर के डेली ट्रैवलर और विद्यार्थियों की जरूरत बन गया. यहां ऑफ बोर्ड टिकटिंग सुविधा के अलावा एटीएम वेंडिंग मशीन फ्री वाई-फाई जैसी सुविधा थी. प्रतिदिन इस कॉरिडोर में चलने वाली 50 से 60 वर्षों में डेली की सवारी में से 60% लोग विद्यार्थी होते हैं, जो कॉरिडोर में चलने वाली बसों में सफर करते थे.
हालांकि अभी इस कॉरिडोर में 30 इलेक्ट्रिक बसें चल रही हैं. जिसमें प्रतिदिन करीब 40000 यात्री सफर कर रहे हैं. इन बसों में भी पब्लिक सर्विस सिस्टम, बस स्टॉप पर गार्ड, ट्रैफिक वार्डन और सुरक्षित टिकटिंग के साथ आरामदायक सफर आज भी लोग बड़ी संख्या में कर रहे हैं.
चौथी बार में दिया ढाई करोड़ से ज्यादा का टेंडर
इंदौर नगर निगम में बीआरटीएस कॉरिडोर को हटाने के लिए 3.68 करोड़ रुपए की अपेक्षा की थी, लेकिन तीनों बार ही इतनी राशि नगर निगम को देकर चुकाने के बाद यह काम लेने वाली कोई एजेंसी नहीं मिली. अपने चौथी बार के टेंडर में राजगढ़ की एक एजेंसी को यह 2.55 करोड़ की राशि के बदले में हटाने का काम सौंपा है. बता दें कि बीआरटीएस में लगे सारे समान एजेंसी ही रखेगी और वह नगर निगम को बीआरटीएस हटाने का 2.55 करोड़ रुपए नगर निगम को देगी.
नगर निगम के महापौर पुष्यमित्र भार्गव का कहना है कि "बीआरटीएस को हटाने का काम दो-तीन दिन में शुरू हो जाएगा. इसे हटाने के बाद सड़क पर नई डिजाइन के आधार पर डिवाइडर तैयार करने के लिए भी टेंडर किया गया है, जिस पर 13 करोड़ रुपए खर्च होंगे."