Friday, November 8, 2024

बिहार में मेडिकल स्टॉफ की घोर किल्लत की बीच सरकार का फैसला,मरीजों की मदद के लिए रखे जायेंगे स्थानीय भाषा के जानकार

पटना  अभिषेक झा , ब्यूरोचीफ पटना  

बिहार के अस्पतालों में डॉक्टर-नर्स भले ही ना मिले, पांच भाषाओं के जानकार जरूर मिलेंगे: सरकार का नया फैसला जानिये…

बिहार में सरकार ने फैसला किया है कि हर सरकारी अस्पताल में लोगों को भाषा के स्तर पर कोई असुविधा ना हो इसलिए स्थानीय 5 भाषाओं के जानकारों को अस्पतालों में नौकरियां दी जायेगी. स्वास्थ्य विभाग ने जिला अस्पतालों यानि सदर अस्पतालों को निर्देश दिया है कि अस्पताल अपने स्तर पर लोकल भाषा के जानकारों को आवश्यकता के अनुसार नियुक्त करें. हर अस्पताल प्रबंधन को ऐसे कम से कम 5-5 ऐसे लोगों को रखने के लिए कहा गया है. स्थानीय भाषाओं के जानकार लोगों को अस्पतालों में मे-आइ-हेल्प यू डेस्क ( MAY I HELP YOU, क्या मैं अपनी मदद कर सकती/ सकता हूं) पर तैनात किया जायेगा. वे सारी भाषा को समझ कर काम करेंगे.

भाषा के स्तर पर असुविधा से बचने के लिए सरकार की पहल 

ये योजना बिहार की स्वास्थ व्यवस्था में सुधार लाने के लिए  शुरु किया किया जा रहा है.बिहार के डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव ने मिशन 60 के तहत राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों और सदर अस्पतालों में मरीज और उनके परिजनों को लोकल भाषा में अस्पताल की सुविधाओं के संबंध में जानकारी देने की तैयारी शुरू कर दी गयी है.

दरअसल बिहार सरकार ने सभी जिला अस्पतालों में Help desk  बनाने का निर्देश दिया है. स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव के पत्र में हेल्प डेस्क की व्यवस्था को प्रभावी बनाने का निर्देश दिया गया है. हेल्प डेस्क पर तैनात लोग अस्पतालों में आने वाले मरीजों और परिजनों की मदद करेंगे. इस योजन के तहत अब हेल्प डेस्क पर बिहार की पांच स्थानीय भाषा भोजपुरी, मगही, मैथिली, अंगिका और बज्जिका भाषाओं के जानकारों की तैनाती होगी. ये लोग यहां आने वाले मरीजों की भाषा में उनके परिजनों से बात कर उनकी मदद करेंगे. हेल्प डेस्क अस्पताल में रजिस्ट्रेशन से लेकर डॉक्टर, जांच की सुविधा, दवा काउंटर आदि की सभी चीजों की जानकारी उपलब्ध करायेगा. स्वास्थ विभाग ने अस्पतालों के लिए नयी संचालन प्रक्रिया (SOP) बनाया है उसमें इसे शामिल किया गया है. सरकार कही रही है कि सरकारी अस्पतालों में मरीजों को निजी अस्पताल जैसे सुविधा दी जायेगी.

सरकार के दावे और उसके लिए की जा रही तैयरियां स्वागत योग्य पहल है लेकिन यहां एक बात गौर करने वाली है कि  बिहार के सरकारी अस्पतालों में जितने डॉक्टरों का पद स्वीकृत हैं उनमें से लगभग 65% पद खाली हैं. इसका मतलब ये हुआ कि अगर अस्पताल में 100 डॉक्टर होने चाहिये तो यहां केवल 35 डॉक्टर उपलब्ध हैं. राज्य में कितनी हैं इस के बारे में सरकार के पास भी कोई आंकड़ं मौजूद नहीं है. ऐसे में सरकार की पहली प्रथमिकता मेडिकल स्टॉफ की उपल्ब्धता होनी चाहिये थी. आये दिन जिस तरह से तरह से अस्पतालों में मेडिकल स्टॉफ की कमी के कारण संवेदनहीनता दिखाई देती है, उसकी भरपाई कैसे हो, इसकी चिंता भी की जानी चाहिये.

राज्य के ज्यादातर अस्पतालों में डॉक्टर और नर्स नहीं मिलेंगे लेकिन अब पांच भाषाओं के जानकार लोग मिल जायेंगे. सरकार ने सरकारी अस्पतालों के लिए पांच भाषाओं के जानकार लोगों की नियुक्ति का आदेश जारी किया है.

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