Wednesday, July 2, 2025

सरकार ₹3000 से ऊपर के UPI पेमेंट पर लगा सकती है मर्चेंट फीस, जीरो MDR नीति में बदलाव की तैयारी

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फ्री UPI के जरिए भारत को डिजिटल पेमेंट्स में दुनिया में नंबर-1 बनाने वाली ये सर्विस अब मुफ्त नहीं रहेगी. जल्‍द ही इस पर बड़े लेन-देन करने पर शुल्‍क चुकाना होगा. सरकार जल्‍द ही UPI से जुड़े नियमों में बदलाव कर सकती है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सरकार 3,000 रुपये से ज्यादा के UPI लेनदेन पर मर्चेंट डिस्काउंट रेट (MDR) दोबारा शुरू करने की योजना बना रही है. इसके लिए जनवरी 2020 से लागू जीरो-MDR नीति में बदलाव किया जा सकता है.

रिपोर्ट के मुताबिक छोटे UPI पेमेंट्स को MDR से छूट मिलती रहेगी, लेकिन बड़े ट्रांजैक्शन्स यानी 3000 रुपये से ज्‍यादा के ट्रांजैक्शन पर वैल्यू के आधार पर फीस लगाने की तैयारी है. पेमेंट्स काउंसिल ऑफ इंडिया ने बड़े मर्चेंट्स के लिए UPI ट्रांजैक्शन्स पर 0.3% MDR का प्रस्ताव रखा है. अभी क्रेडिट और डेबिट कार्ड पेमेंट्स पर MDR 0.9% से 2% तक है, हालांकि RuPay कार्ड्स को फिलहाल इससे बाहर रखा गया है. सूत्रों के मुताबिक पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री कार्यालय, आर्थिक मामलों के विभाग और वित्तीय सेवा विभाग की एक हाई-लेवल मीटिंग में MDR फ्रेमवर्क पर चर्चा हुई है.

क्‍यों किया जा रहा ये बदलाव?

रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि सरकार यूपीआई नियमों में बदलाव बैंकों और पेमेंट सर्विस प्रोवाइडर्स को घाटे से उबारने के लिए कर रही है. ये उनके इन्फ्रास्ट्रक्चर और ऑपरेशनल खर्चों को मैनेज करने में मदद करेगा. चूंकि UPI अब देश में 80% रिटेल डिजिटल ट्रांजैक्शन्स का हिस्सा है. 2020 से अब तक UPI पर्सन-टू-मर्चेंट ट्रांजैक्शन्स का वैल्यू 60 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है. ऐसे में ज्‍यादातर लोग बड़े लेन-देन के लिए इसी पर भरोसा जताते हैं. लेकिन जीरो-MDR की वजह से बैंकों और पेमेंट प्रोवाइडर्स को बड़े ट्रांजैक्शन्स के खर्चे उठाने में दिक्कत हो रही है, और सेक्टर में नई इन्वेस्टमेंट के लिए प्रोत्साहन कम है. इसी समस्‍या को ध्‍यान में रखते हुए सरकार यह कदम उठा सकती है.

कब तक होगा फैसला?

बैंकों, फिनटेक कंपनियों और नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) के साथ विचार-विमर्श के बाद अगले एक-दो महीनों में फैसला हो सकता है. इस नियम के लागू होते ही UPI यूजर्स के लिए छोटे पेमेंट्स तो मुफ्त रहेंगे, लेकिन बड़े लेनदेन महंगे हो सकते हैं. मर्चेंट्स को MDR चुकाना पड़ेगा, जिसका असर कंज्यूमर्स पर भी पड़ सकता है.

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