7 सितंबर 2020, को The print में एक आर्टिकल छपा था. आर्टिकल का शीर्षक था ( Why fewer Indians have joined ISIS) क्यों कम भारतीय ISIS में शामिल हुए हैं. आर्टिकल में हैरानी जताई गई थी कि दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश भारत. जिसने दशकों से घरेलू और पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा आतंकवादी हमलों का सामना किया है; जो मुस्लिम-बहुल कश्मीर में निरंतर उग्रवाद का गवाह रहा है; और जिसकी राजनीति अभी भी मुस्लिमों के सवाल पर गहराई से विभाजित है, कैसे वहां आईएसआईएस और अल कायदा जैसे आतंकी संगठनों के लिए कम फॉलोवर पैदा होते हैं.
अगर 5 साल और पीछे जाएं तो 24 मई 2015 को लखनऊ विश्वविद्यालय में तब के केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी कुछ ऐसा ही बयान दिया था. गृहमंत्री ने कहा था कि भारत के मुसलमान राष्ट्रवादी हैं और उन्हें मैं धन्यवाद देता हूं. अगर इस देश के किसी मुसलमान ने आईएसआईएस से जुड़ने की कोशिश की है, तो उनके परिवार ने ही उन्हें रोका और हतोत्साहित किया है. सरकार मानती है कि मुसलमान कभी भी आतंकवादियों के मंसूबे पूरे नहीं होने देंगे.
ये बयान केंद्रीय गृहमंत्री का था तो मान लेना चाहिए कि वो पूरे देश की बात कर रहे होंगे. हलांकि अब वो न गृहमंत्री हैं और न अब उनकी पार्टी उनके इस बयान से सहमत होती.
फिल्म ने बदला दावा, अब 32000 नहीं सिर्फ 3 लड़कियों की बताया कहानी
अभी तो उनकी पार्टी 5 मई का इंतजार कर रही है. 5 मई को देश में ‘द केरल स्टोरी’ रिलीज़ होने वाली है. ‘द केरल स्टोरी’ इसके यूट्यूब ट्रेलर के डिस्क्रिप्शन के मुताबिक ये, “दिल को दहला देने वाली, सच्ची कहानी है, जो पहले कभी नहीं कही गई – एक खतरनाक साजिश का खुलासा जो भारत के खिलाफ रची गई है. केरल स्टोरी केरल के विभिन्न हिस्सों की तीन युवा लड़कियों की सच्ची कहानियों का संकलन है. सच्चाई हमें आज़ादी दिलाएगी! हजारों मासूम महिलाओं का व्यवस्थित रूप से धर्म परिवर्तन किया गया, कट्टरपंथी बनाया गया और उनके जीवन को नष्ट कर दिया गया. यह कहानी का पक्ष है.“
वैसे पहले जो इस फिल्म का ट्रेलर रिलीज़ किया गया था उसमें इसे केरल की 32000 महिलाओं की दिल दहला देने वाली कहानियां बताया जा रहा था लेकिन अब इसे केरल के विभिन्न हिस्सों की 3 युवा लड़कियों की सच्ची कहानी कहा जा रहा है.
कर्नाटक में मतदान से 5 दिन पहले रिलीज हो रही है केरल स्टोरी
कर्नाटक चुनाव के लिए मतदान से ठीक 5 दिन पहले रिलीज़ होने वाली इस फिल्म को विपक्ष प्रोपेगैंडा मूवी बता रहा है. इसकी रिलीज पर रोक लगाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा भी खटखटाया गया है. विपक्ष को डर है कि 2019 चुनाव से पहले उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक और पिछले साल आई कश्मीर फाइल्स की तरह ये फिल्म भी बीजेपी को कर्नाटक चुनाव में फायदा न दे जाए. कर्नाटक में बीजेपी ने हलाल-हिजाब और अब हनुमान सभी मुद्दों को उठा रखा है. कांग्रेस के अपने घोषणापत्र में पीएफआई की तरह ही बजरंग दल को बैन करने के वादे के बाद तो बीजेपी प्रदेश भर के मंदिरों में हनुमान चालीसा का पाठ भी करने की योजना बना रही है. इतना ही नहीं बीजेपी ने कर्नाटक को भगवान हनुमान की जन्म भूमि बताया है और पीएम मोदी ने अपने भाषण में ये तक कह दिया है कि कांग्रेस भगवान राम के बाद अब भगवान हनुमान को ताले में बंद करना चाहती है.
ऐसे में हिंदू लड़कियों को बहला-फुसला कर धर्म परिवर्तन करने और फिर आईएसआईएस से जुड़ने की कहानी बीजेपी के धार्मिक ध्रुवीकरण के एजेंड़े को सूट करती है. बीजेपी को उम्मीद है कि कश्मीर फाइल्स जो 2022 गुजरात चुनाव से पहले रिलीज़ हुई थी. और जिसने हिंदू-मुसलमान के बीच कश्मीर के आतंकवाद की कहानी को ऐसे बांट दिया था कि लोग ये भूल गए कि जब कश्मीर में आतंकवाद की शुरुआत हुई थी तब कश्मीरी पंड़ितों के साथ हज़ारों प्रो हिंदुस्तानी और अमनपसंद मुसलमानों ने भी अपनी जान गंवाई थी.
केरल में मुसलमानों औक ईसाइयों को लुभा रही है बीजेपी
वैसे केरल देश का अकेला ऐसा राज्य है जहां बीजेपी लाख कोशिशों के बाद भी पैर नहीं जमा पा रही है. केरल चुनाव से पहले सबरीमाला के मुद्दे को बीजेपी ने खूब उठाया था लेकिन हिंदू ध्रुवीकरण करने में वो वहां कामयाब नहीं हो पाई. लेकिन इसके बाद बीजेपी ने केरल राज्य को देश भर में ऐसे पेश करना शुरू कर दिया जैसे वहां इस्लामिक राज्य हो और वहां हिंदूओं के साथ जुल्म होते हों. बीजेपी का ये एजेंडा भी वहां फेल हो गया तो अब बीजेपी वहां ईद पर मुसलमानों को और गुड फ्राईडे और क्रिसमस पर ईसाइयों के घर जाकर उन्हें गले लगाने का अभियान चला रही है.
देशभर के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण है बीजेपी का एजेंडा
लेकिन ये अभियान केवल केरल के लिए है. केरल के बाहर बीजेपी का हलाल, हिजाब, कब्रिस्तान, दरगाह जिहाद जैसा एजेंडा जारी है. और केरल में सत्तारूढ़ दल सीपीएम और मुख्य विपक्षी कांग्रेस फिल्म द केरला स्टोरी को बीजेपी के इसी एजेंडे का हिस्सा बता रहे हैं. कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) सीपीआई और कांग्रेस ने फिल्म के मेकर्स की आलोचना की है और कहा कि वे संघ परिवार के प्रचार को आगे बढ़ा रहे हैं. ‘लव जिहाद’ का हौव्वा खड़ा कर राज्य को धार्मिक उग्रवाद का केंद्र बनाया जा रहा है. केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भी संघ परिवार पर “सांप्रदायिकता के जहरीले बीज बोकर” राज्य में धार्मिक सद्भाव को नष्ट करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है. दूसरी ओर बीजेपी ने केरल के सीएम और सत्तारूढ़ सीपीआई (एम) के रुख को “दोहरा मानदंड” कहा है.
‘केरल स्टोरी’ को मिला ‘ए’ सर्टिफिकेट
वैसे इस बीच ‘द केरल स्टोरी’ को सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन यानी सेंसर बोर्ड ने इसे ‘ए’ सर्टिफिकेट दिया है इसके साथ ही फिल्म के कई सीन्स पर सेंसर बोर्ड की कैंची भी चल गई है. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक फिल्म से केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन के एक पूरे इंटरव्यू सहित 10 सीन्स को रिलीज प्रिंट से हटा दिया गया है.
कौन सी केरल स्टोरी पसंद करेगी जनता, 100% शिक्षा वाली या आईएसआईएस वाली
यानी ए सर्टिफिकेट देकर फिल्म को कम उम्र के बच्चों की पहुंच से तो सरकार ने ही दूर कर दिया है. बाकी बच गए बड़े लोग. तो देखना दिलचस्प होगा कि उन्हें केरल स्टोरी में क्या देखना ज्यादा पसंद आता है. धर्म परिवर्तन कर आईएसआईएस में शामिल होती लड़कियां, या फिर शिक्षा प्राप्त कर अरब देशों में लाखों कमा रही नर्स और डॉक्टर बेटियों की कहानी. क्योंकि इस केरल स्टोरी के रिलीज होने से पहले पूरा देश जानता है कि केरल 100 प्रतिशत शिक्षित राज्य है. यहां की बेटियां मेडिकल और शिक्षा के क्षेत्र में देश ही नहीं पूरे विश्व में अपनी जगह बना चुकी हैं. ऐसे में क्या एक फिल्म लोगों के विचार बदल पाएगी. सवाल ये भी है कि कर्नाटक में अगर बीजेपी को इसका फायदा मिल भी जाता है तो केरल में फिर वो किस मुंह से मुसलमानों के घर जाएगी.
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