शनिवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर महिला संगठनों और नागरिक अधिकार से जुड़े संगठनों ने बिलकिस बानो के दोषियों को रिहा किए जाने के खिलाफ प्रदर्शन किया. प्रदर्शन में मांग की गई कि गुजरात सरकार बिलकिस के 11 दोषियों को रिहा करने का अपना फैसला वापस ले. जंतर मंतर पर मौजूद संगठनों ने बिलकिस बानो के साथ एकजुटता का भी संदेश दिया. प्रदर्शनकारियों का कहना था कि बिलकिस के दोषियों की रिहाई पर देश भर में गुस्सा है. इसलिए सामाजिक संगठन और महिला संगठन गुजरात सरकार से 11 दोषियों की रिहाई के फैसले पर पुनर्विचार की मांग कर रहे हैं. यहां विरोध प्रदर्शन करने आई महिलाओं का कहना था कि बलात्कार जैसे क्रूर अपराध की सजा के मामले में सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश है कि अपराधी की सजा कम नहीं की जा सकती, इसके बावजूद गुजरात सरकार ने 1992 के कानून की आड़ में ये फैसला लिया जबकी 2014 और उसके बाद दो ऐसी गाइडलाइन आ चुकी है जिसमें साफ कहा गया है कि गैंगरेप,रेप और आतंकवाद के दोषियों को माफी नहीं दी जा सकती. विरोध-प्रदर्शन में शामिल महिलाओं का कहना था कि एक तरफ सरकार और प्रधानमंत्री महिला अधिकार और सम्मान की बात करते हैं, वहीं दूसरी तरफ आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर एक महिला के सम्मान और जीवन को तार-तार करने वाले नृशंस हत्यारों की सजा माफ कर दी जाती है.ये सरकार के दोहरे चरित्र को दर्शाता है.
बिलकिस बानो के लिए न्याय की मांग करने आई एडवा की अध्यक्ष सहबा फारुकी का कहना था कि “बात देश में संविधान के ऊपर हमले की है.संविधान ने आम नागरिकों को सम्मान से जीने का अधिकार दिया है. एक तरफ प्रधानमंत्री लाल किले से महिला सम्मान की बात करते हैं दूसरी तरफ उनकी ही पार्टी की सरकार बलात्कारियों और हत्यारों को सजा मुक्त कर देती है. महिला सम्मान की बात करने वाले राजनेता देश में कौन सा ट्रेंड सेट कर रहे है?” समाजसेवी संस्था स्वराज अभियान की असना नौशीन ने कहा कि “उन्हें अब भी यकीन नहीं हो रहा है कि बेटियों को आगे बढ़ाने और उन्हें सशक्त बनाने का नारा देने वाली बीजेपी की सरकार में इस तरह का फैसला हुआ है.”
इसी तरह एक और महिला संगठन NFIW की सदस्य नजमा फ़ैज़ी का कहना है कि “ बिलकिस बानो के अपराधियों को जो सजा आखिरी सांस तक के ले दी गई थी, उसे सरकार ने कैसे माफ कर दिया. निर्भया मामले में जिस तरह गुनाहगारों को फांसी की सजा हुई, वही नजीर सरकार ने इस मामले में क्यों नहीं कायम रखी? क्या सिर्फ इसलिए की इसमें पीड़िता का नाम बिलकिस है.” उनका कहना था कि “ जब देश के हर नागरिक को समान न्याय का अधिकार है तो फिर बिलकिस के मामले में गुनाहगारों का गुनाह कम कैसे है?”
जंतर मंतर पर बिलकिस बानो के समर्थन में प्रदर्शन करने वाले संगठन थे एडवा, AISA ,AIMSS, AIUFWP, अनहद (ANHAD), ARMAA, BASO, Collective, DSG, DWC, जनसंदेश (Jansandesh), NAPM-Delhi, NFIW, NTUI, पहचान (Pehchan), RYA, SNS. इसके अलावा कई जगरुक नागरिक भी इस प्रदर्शन में शामिल होने आए थे.
अब तक इस मामले में क्या हुआ
15 अगस्त को गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसकी तीन साल की बेटी समेत परिवार के 7 सदस्यों की हत्या करने वाले 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने माफी देते हुए जेल से रिहा कर दिया. सरकार के इस फैसले का समाज के हर वर्ग ने विरोध किया और मामला जनहित याचिका के रुप में सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा,जहां बिलकिस बानो के 11 दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती दी गई है.एक जनहित याचिका दायर कर सभी दोषियों की सजा पर फिर से विचार करने की गुहार लगाई गई है. इस याचिका को सामाजिक कार्यकर्ता सुभाषिनी अली, रेवती लाल, रूप रेखा वर्मा की ओर से कोर्ट में दायर किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए केंद्र और गुजरात सरकार दोनों को नोटिस जारी किया है. साथ ही मामले कि सुनवाई के दौरान जस्टिस अजय रस्तोगी ने कहा कि सवाल यह है कि गुजरात के नियमों के तहत दोषी छूट के हकदार हैं या नहीं? मैंने कहीं पढ़ा है कि सुप्रीम कोर्ट ने रिहा करने का आदेश दिया था. लेकिन नहीं, हमने केवल गुजरात को कानून के अनुसार आगे बढ़ने के लिए कहा था. कोर्ट ने इस मामले में छोड़े गए दोषियों को भी पक्षकार बनाने का निर्देश दिया है.
बिलकिस बानो के आपराधियों की रिहाई देश भर में बहस का मुद्दा बना हुआ है. 21 साल की मासूम एक लड़की के साथ 11 दरिंदे हैवनियत करते हैं, उसकी आंखों के सामने उसकी तीन साल की बच्ची समेत 7 लोगों की हत्या कर दी जाती है, उन अपराधियों को ‘अच्छे व्यवहार’ के आलोक में छोड़ दिया जाता है. बिलकिस बानो ने अपने साथ हुए हैवानियत के खिलाफ 17 साल तक अदालतों में लड़ाई लड़ी तब कहीं उसे गुनाहगार सलाखो के पीछ पहुंचाये गये थे.
बिलकिस बानों के बलात्कारियों और हत्यारों को रिहा करने का मामला मजहबी रंग ले रहा है, लेकिन भारत का लोकतंत्र किसी धर्म,जाति,रंग,भाषा के आधार पर फर्क नहीं करता है, ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिये कि इस मामले में हत्यारों और बलात्कारियों को एक बार फिर से वही सजा मिलेगी जिनके वे हकदार हैं.जिस देश में नारी को देवी मानकर पूजा की जाती है, बेटू बहू की बेकद्री करने वालों के खिलाफ तलवारें खिंच जाती है, उस देश में एक नारी के साथ जघन्य सामुहिक बलात्कार करने वाले बलात्करियों और नृशंस हत्या को अंजाम देने वाले हत्यारों के खिलाफ सजा देकर एक मिसाल कायम की जायेगी.
बिलकिस बानो के साथ दरिंदगी करने वालों की रिहाई पूरी न्यायिक प्रक्रिया के साथ बेहूदा मजाक है
दिल्ली के जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन