Sunday, January 12, 2025

बिहार से जुड़ी है होली की सच्ची कहानी, आज भी जीवित है भक्त प्रहलाद और भगवान नरसिंह की निशानी

होली का त्यौहार रंगों और खुशियों का त्यौहार है . कहते हैं इस त्यौहार में इतनी ताकत है की दुश्मनों को भी दोस्त बना देती है . होली के रंगों में रंग सभी घिले शिकवे दूर हो जाते हैं . लेकिन भारत में हर त्यौहार के पीछे कोई न कोई ऐतिहासिक या करोड़ों लोगों की आस्थाओं से जुडी कहानियां है . ऐसे में आज हम आपको उस कहानी का सबूत दिखाने जा रहे हैं जिसे होली के इस पावन त्यौहार की जननी माना जाता है .

क्या है होली की कथा

जी हाँ होली का त्योहार राजा हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के दहन की घटना से जुड़ा है. ऐसी लोक-प्रचलित कहानियां हैं जो वक्त के साथ साथ मान्यताओं में तबदील हो गई.  कहा जाता था कि होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था. उसके पास ऐसी एक दर थी जिसे इस्तेमाल कर वह अग्नि में प्रवेश भी कर जाती थी, लेकिन उसका बाल भी बाक़ा नहीं होता था .

अब क्योंकि होली को बुराई पर अच्‍छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है इसलिए जब वह अपने भतीजे और विष्णु-भक्त प्रहलाद को मारने के इरादे से गोद में लेकर जलती आग में प्रवेश करती है. तभी ऐसा चमत्कार होता है कि हवाएं चलनी लगती है और होलिका का वो चमत्कारी चादर प्रह्लाद से जाकर लिपट जाता है . जिस वजह से प्रहलाद की जगह उस अग्नि में होलिका ही भस्म हो जाती है. उसे मिला वरदान सार्थक सिद्ध नहीं हुआ लेकिन इसके अलावा एक और कहानी है जिसका जीता जागता सबूत आज भी बिहार के पूर्णिया में मौजूद है .

बिहार में आज भी जीवित है पुराना रहस्य

बिहार के पूर्णिया में बनमनखी सिकलीगढ़ धरहरा में मौजूद नरसिंह मंदिर में हर साल भव्य तरीके होली मनाया जाता है. होली के अवसर पर यहां देश नहीं बल्कि विदेश से भी लोग राख की होली खेलने आते हैं. पिछले दो सालों में कोरोना ने होली के इस त्यौहार में भंग दाल दिया था लेकिन अब सब अपनी मुख्या धरा में लौट चूका है. कहते हैं हैं कि जब होलिका जल गई थी और प्रहलाद चिता से सकुशल वापस आ गए थे तब लोगों ने राख और मिट्टी एक-दूसरे पर लगाकर खुशियां मनाई थीं. मान्यता है कि जिस स्थान पर होलिका जली थी और प्रहलाद जिंदा आग से बाहर निकल आए थे वह जगह बिहार के पूर्णिया का यही नरसिंह मंदिर है.

जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर धरहरा गांव में एक प्राचीन मंदिर है. जहाँ पौराणिक कथाओं के मुताबिक यहीं भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए एक खम्भे से भगवान नरसिंह अवतारित हुए थे. भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा खंभा जिसे माणिक्य स्तंभ भी कहा जाता है. वो आज आज भी यहां मौजूद है. उस स्तंभ को कई बार तोड़ने का प्रयास किया गया. लेकिन वो टूटा तो नहीं, लेकिन झुक जरूर गया. भगवान नरसिंह के इस पौराणिक मंदिर में आज बी भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शंकर समेत 40 देवताओं की मूर्तियां स्थापित है.

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