Shrikrishan BalLeela : मैया कन्हैया को घर के अन्दर ले गयीं और बोली- क्यों रे लाला तने बाबा के पूजा घर में से भगवान मुंह में धर लिये. कन्हैया बोले- मैया, वो रोज घी में नहाते है, शहद में नहाते है ना, इसलिये मैंने सोचा मीठे होंगे तो मैंने मुंह में धर लिये, मैया बोली- लाला अब ऐसा मत करना वरना कान पक्कड़ के मारूंगी.
Shrikrishan BalLeela: ऐसो ऊधम मचावे, अब तू इतनौ छोटौ थोड़े ही है….
मैया ने लाला को स्नान करायो और बोली, स्नान करके भगवान् की पूजा में जाना चाहिये. बिना स्नान किये भीतर नहीं जाते. स्नान कराके पीताम्बर पहनायो, आज लाला की कमर में करधनी बांधी, चरणों में नुपुर बांध दिये, मोर पंख माथे पर बांध्यो, जैसे ही नूपुर बांधे, मैया अंगुली पकड़कर लाला को चलाने लगी तो ये तो ठुमका मारकर नाचने लगे.
मैया बोली- हे भगवान् ये नाचना कब सीख लिया. लाला की मैया ताली बजाने लगी और भूल गयी, सब कुछ विस्मृत हो गयी, मैया बहुत प्रसन्न है.
“नाचे नंदलाला नचावें हरि की मैया, यशोदा तेरे भाग की कही न जाय” आप जरा देखो सज्जनों- साक्षात् परब्रह्म, “जग जाकी गोद में, सो यशोदा की गोद में” दुनियां जिसके इशारे पर नाचती है, वो यशोदा के इशारे पर नाच रहा है- भाईयों! थोड़े से छाछ व मक्खन के लिए गोपियां भगवान को नचा देती थी.
आपका ह्रदय ही सुंदर मंदिर है, ह्रदय रूपी मंदिर में परब्रह्म को नचाइयें, भाव से गायेंगे तो नाचेगा, यशोदाजी के भाव का दर्शन करें- लाला को कोई चीज अच्छी नहीं लगती,, मैया कभी दुशाला ओढ़तीं है, गोविन्द नहीं ओढ़तें, क्यों? क्योंकि उन्हें तो कारी कमरिया ही अच्छी लगती हैं, ऐसा सुन्दर गोपाल नृत्य करते हैं.
शेष, महेश, गणेश, दिनेश, सुरेश हुं जाहि निरन्तर ध्यावैं..
ताहि अखण्ड अनन्त अनादि अछेध, अवैध सुवेद बतावै।।
नारद से शुक व्यास रळें पचिहारि कोउ पुनि पार न पावै।
ताहि अहीर की छोहरियां छछिया भरि छाछ पै नाच नचावै।।
कृष्ण चरित्र में जो यश प्रदान करे उसे यशोदा कहते हैं. एक और बात- राधारानी की माता का नाम क्या है? कीर्ति, और कृष्ण की माता का नाम है यशोदा, यदि आप व्याकरण के हिसाब से उसका शाब्दिक अर्थ देखें तो “कीर्तिः ददति इति कीर्तिदा” और “यशं ददति इति यशोदा” जो कीर्ति दे वो कीर्तिदा और जो यश देवे वो यशोदा, यश यानी कीर्ति और कीर्ति यानी यश.
राधा और कृष्ण दोनों की माताओं के नाम का अर्थ एक ही होता है. यदि लाला की लीलाओं में यशोदा यश प्रदान न करे तो गोविन्द को कौन जाने, गोविन्द को कौन पहचाने? ऐसा सुन्दर चरित्र है कृष्ण का, मैया जब नृत्य करा रही लाला को, दो ढाई वर्ष के कृष्ण है, रूनक-झुनक पायल बज रही, आज एक गोपी ने गोविन्द को नृत्य करते हुए देख लिया.
उस गोपी का नाम है श्रुतिरूपा, वेद के मंत्र गोपी बनकर आऐं है. गोपी का मन रूपी मयूर नाचने लगा. दौड़ी-दौड़ी गोपियों की मण्डली में गयीं, गोपियां बोली- क्या बात है? क्यों इतनी खुश हो रही हो? गोपी बोली- मैंने आज विचित्र दृश्य देखा, आश्चर्य देखा, गोपियां बोली, क्या देखा? बोली, गाय की धूल से धूसरित अंग वाला, वेदांत प्रतिपाध ब्रह्म आज यशोदा के आंगन में नाच रहा था.
श्रृणुसखि कौतुकमेकं नन्द निकेतांगणेमयादृष्टं।
गोधूलि धूसरितांगः नृत्यति वेदान्त सिद्धान्त।।
इस बात को सुनकर हजारों गोपियों के नेत्र नम हो गये और गोपियों ने मन में सोचा, हम गोविन्द का दर्शन कैसे करे? यशोदा बड़ी भाग्यशाली है, जिसके आंगन में कृष्ण नाचता है, पर लाला का हम दर्शन कैसे करें? अब सब विचार कर रही है, कैसे जायें दर्शन करने? सासूजी तो घर से जाने नहीं देती.
कोई-कोई सासूजी बड़ी खतरनाक होती है, स्वयं सब जगह चली जाती हैं, पर बहू को कहीं नहीं जाने देती, मैं तो हास्य-विनोद मैं कह रही हूं, जो सास है वो बुरा न मानें.
देखे बिन कान्हा जब मन नाहिं माना,
इन आंखों से आज हमने ब्रह्म पहचाना है
कृष्ण पद कमलों में मन को लगाना,
इन गोपियों का ताना ये उलाहना तो बहाना है।।
बहूओं ने सोचा कैसे भी कृष्ण का दर्शन करें, भले ही उलाहन के बहाने ही कृष्ण का दर्शन क्यों ना करना पड़े, कैसे करें? सासूजी सवेरे गयीं शिव मंदिर शिवजी को जल चढ़ाने, नयी-नयी बहूओं ने घर की जितनी भी मटकीयां थी. सारी फोड़ दीं सासूजी आयीं- बहू, ये मटकी कैसी फूटी पड़ी है.
बोली, माताजी! नन्दजी के लाला आये और सारी मटकी फोड़कर चले गये.
सासूजी बोलो- अच्छा, वो नन्द के छोरा की इतनी हिम्मत की मेरे घर में आयकर मेरी मटकी फोड़कर चल्यो गयो, बहू, यदि मैं जाऊँगी तो बात ज्यादा बढ़ जायेगी, इसलिये तुम जाओ हमारी तरफ से यशोदा को उलाहना देकर आओ बड़ी खुशी की बात है, इस उलाहने के बहाने आज लाला के दर्शन तो हो जाऐंगे, इन गोपियों का ताना, ये उलाहना,, तो एक बहाना है.