प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद नामीबिया के चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो फारेस्ट में छोड़ा. ये कदम था भारत में विलुप्त हो चुके चीतों की प्रजाति को एक बार फिर से बढ़ाने का. तो यहाँ भी प्रधानमंत्री ने इस मौके को अवसर समझते हुए इसे एक मेगा इवेंट बना दिया. जिसकी ख़ास वजह ये भी रही कि ये मौका ये इवेंट उनके जन्मदिन पर आयोजित हुआ. पूरे देश में चर्चा होने लगी कि भारत के प्रधानमंत्री कितने बड़े पशु प्रेमी हैं पर्यावरण प्रेमी हैं लेकिन समोरोह ख़त्म हुआ चीतों को जंगल में भी छोड़ दिया गया लेकिन अब क्या? क्या इनका हाल भी पहले लाये गए चीतों की तरह होगा क्या ये भी मारे जाएंगे? आप सोच रहे होंगे कि ये भला हम क्या बोल रहे हैं तो ये रिपोर्ट देखिये सब समझ आ जायेगा.
तो सुना आपने प्रधानमंत्री ने साफ़ कहा कि ये प्रयास 1952 के बाद पहली बार उन्होंने साल 2022 में किया है. ऐसा कहकर शायद प्रधानमंत्री ये बताना चाहते हैं कि वो कितने बड़े पशु प्रेमी हैं कितने बड़े पर्यावरण प्रेमी हैं. लेकिन यहाँ प्रधानमंत्री सरासर झूठ बोल रहे हैं. यकीन ना हो तो अब ये सुनिए
ये क्या यहाँ तो प्रधानमंत्री मोदी ने खुद ही मुख्यमंत्री मोदी जी को झूठा साबित कर दिया.दरअसल ये वीडियो तब का है जब नरेंद्र मोदी जी देश के प्रधानमंत्री नहीं थे बल्कि गुजरात के मुख्यमंत्री थे। आप सोच रहे होंगे कि क्या है पूरा मामला तो आइये बताते हैं. दरअसल चीतों को भारत कि धरती पर एक बार फिर से बसाने का प्रयास 2022 नहीं बल्कि इससे पहले भी कई बार किया जा चुका है . साल 2022 में नामीबिया के जंगल से 4 नर और 4 मादा चीते भारत लाये गए। इसे प्रधानमंत्री की बड़ी उपलब्धि समझा गया। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के लिए ये कोई नई बात नहीं है। ठीक ऐसे ही 2009 में भी जूनागढ़ में चीतों को लाया गया, वो भी आज से 13 साल पहले जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब भी उन्होंने ऐसा ही महान काम किया था .तब सिंगापुर से चार चीते लाए गए थे. वहां से लाने के बाद जूनागढ़ में इन चीतों को रखा गया था। इन चीतों के बदले पैसे तो नहीं बल्कि सिंगापुर को गिर जंगल के बाघ दिए गए थे. लेकिन जूनागढ़ की मुख्य वन संरक्षक आराधना साहू ने कहा,कि ‘63 साल के अंतराल के बाद, मार्च 2009 में एक शेर और दो शेरनी के बदले में दो जोड़े चीते यानी कि चार चीते देश में पहुंचे. सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी ने गुजरात सरकार के इस आग्रह को मंज़ूरी दी थी कि राज्य में चीता लाकर उसकी आबादी बढ़ाने के प्रयास किए जाएँ। जिसके बाद 2012 में सिंगापुर से लाई गई मादा चीता मर गई. मादा चीता के पहले एक नर चीता की भी मृत्यु हो गई थी. 2014 में तीसरे चीते की मृत्यु हो गई .चौथा और आखिरी चीते की मृत्यु 2017 में हुई.
सिर्फ इतना ही नहीं 2009 के पहले भी तीन चीते भारत लाए गए थे. दो चीते दिल्ली के चिड़ियाघर में रखे गए और एक को हैदराबाद में रखा गया लेकिन ये तीनों चीते मर गए।
यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि जूनागढ़ से पहले तीन चीतों की मौत उसके बाद जूनागढ़ में चार चीतों की मौत हुई और चीते को भारत में बसाने का काम फेल हो गया. लेकिन सवाल ये उठता है कि जूनागढ़ चीता प्रोजेक्ट की चर्चा प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में क्यों नहीं किया . इन सब में ये भी पता नहीं चल पाया कि पिछली बार वो क्या गलतियां थी जो उन चीतों कि मौत कि वजह बनी और अब इस मिशन को सफल बनाने के लिए क्या नए प्रयास किये गए हैं. इस पर ना तो प्रधानमंत्री ने कोई टिपणी की और ना ही किसी वनविभाग के अधिकारी ने जो बहुत ही आश्चर्य की बात है. आखिर इस फैक्ट को छुपाने की कोशिश क्यों की गई.
या फिर अपने भाषण में जूनागढ़ में लाये गए चीतों कि बात ना करके प्रधानमंत्री अपने पुरानी असफलताओं को छिपाने का प्रयास कर रहे हैं.
खैर वक्त बदला है टेक्नोलॉजी बदली है भारत बदला है देखना होगा कि इस बार प्रधानमंत्री मोदी चीतों की प्रजाति को भारत में बढ़ाने में कामयाब हो पाते हैं या इन चीतों का हस्र भी वही होगा जो इससे पहले वाले चीता प्रोजेक्ट के साथ हुआ था .