Sunday, December 8, 2024

Bihar Bypolls: 4 सीटों पर मतदान कल, पीके की पार्टी की होगी पहली परीक्षा- इंडिया या एनडीए किसका बिगाड़ेंगे खेल

Bihar Bypolls: बुधवार को बिहार में होने वाले उपचुनावों पर सभी की निगाहें रहेंगी. इन चुनावों के नतीजों का 2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों पर बड़ा असर होगा. ऐसा कहा जा रहा है कि इन्हीं नतीजों पर नए राजनीतिक गठबंधन और रणनीति की संभावना काफी हद तक निर्भर करेगी.

Bihar Bypolls में जाने वाली 4 सीटों पर है किसका कब्जा

बुधवार को जिन 4 सीटों पर मतदान हो रहा है, उनमें से तीन पर इंडिया गठबंधन का कब्जा है – दो पर राष्ट्रीय जनता दल (बेलागंज और रामगढ़) और एक पर भाकपा-माले (तरारी) का कब्जा है, जबकि एक सीट पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के सहयोगी दल हम (इमामगंज) का कब्जा है.
इस बार भारतीय जनता पार्टी दो सीटों (तरारी और रामगढ़) से चुनाव लड़ रही है, जबकि सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) क्रमशः बेलागंज और इमामगंज से चुनाव लड़ रहे हैं. एनडीए ने चारों सीटों पर जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी है, सभी राज्य के नेता कड़ी मेहनत कर रहे हैं.

प्रशांत किशोर की जन सुराज क्या मुकाबले को त्रिकोणीय कर पाएगी?

हालांकि प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के चुनावी राजनीति में प्रवेश के साथ ही काफी हलचल बढ़ा दी है. अगर किशोर की पार्टी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में सफल होते हैं, तो यह समीकरण बदल सकता है. लेकिन यह देखना बाकी है कि क्या जनसुराज का बिहार की अत्यधिक ध्रुवीकृत राजनीति पर कोई असर पड़ता है.

बेलगंज में किसका पलड़ा है भारी

बेलागंज दशकों से राजद का गढ़ रहा है, जहानाबाद के सांसद सुरेंद्र यादव यहां से आठ बार जीत चुके हैं और इस बार अपने बेटे विश्वनाथ यादव को मैदान में उतारा है. राजद ने पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद के नेतृत्व में जोरदार प्रचार किया है. जेडी(यू) ने भी एक यादव, पूर्व एमएलसी मनोरमा देवी को मैदान में उतारा है, जो दिवंगत बिंदेश्वरी प्रसाद यादव की विधवा हैं. जन सुराज के उम्मीदवार स्थानीय पूर्व पंचायत प्रमुख मोहम्मद आजाद हैं, जिन्होंने 2005 और 2010 में भी चुनाव लड़ा था.

रामगढ़ का किला बचा पाएगी आरजेडी

रामगढ़ भी 1990 से राजद का गढ़ रहा है, जिसका प्रतिनिधित्व चार बार राज्य पार्टी प्रमुख जगदानंद सिंह और 2020 में उनके बड़े बेटे सुधाकर यादव ने किया. इस बार पार्टी ने जगदानंद सिंह के छोटे बेटे को मैदान में उतारा है. भाजपा ने यहां केवल एक बार 2015 में जीत हासिल की है और पार्टी ने उसी उम्मीदवार अशोक कुमार सिंह को मैदान में उतारा है. जन सुराज ने सुशील कुंअर कुशवाहा को मैदान में उतारा है, जो निर्वाचन क्षेत्र में अच्छी खासी आबादी वाली जाति से ताल्लुक रखते हैं. बहुजन समाज पार्टी ने सतीश कुमार उर्फ पिंटू यादव को मैदान में उतारा है, जो अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में वोटों को विभाजित कर सकते हैं.

तरारी में बीजेपी सुनील पांडेय के दबदबे के भरोसे

तरारी विधानसभा सीट पहले सीपीआई-एमएल के पास थी और भाजपा ने कद्दावर पूर्व विधायक सुनील पांडेय के बेटे विशाल प्रशांत को मैदान में उतारा है. पांडेय और उनके बेटे उपचुनाव से ठीक पहले लोजपा से भाजपा में शामिल हुए थे. उन्होंने 2010 में यह सीट जीती थी और 2020 में सीपीआई-एमएल के सुदामा प्रसाद से हार गए थे, लेकिन निर्दलीय के तौर पर 63,000 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे, जिससे भाजपा तीसरे स्थान पर आ गई थी. शायद इलाके में पांडेय के दबदबे ने उन्हें भाजपा में जगह दिलाई और उनके बेटे को टिकट दिलाया. जन सुराज से स्थानीय किरण सिंह मैदान में हैं.

इमामगंज से जीतन राम मांझी की बहू है मैदान में

इमामगंज में केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की बहू और बिहार के मंत्री संतोष कुमार सुमन की पत्नी दीपा मांझी हम की उम्मीदवार हैं. वह अपने परिवार की विरासत पर भरोसा कर रही हैं क्योंकि राजद इस सीट से कभी नहीं जीत पाया है. हालांकि इस बार मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है. राजद ने जहां रौशन कुमार मांझी को मैदान में उतारा है, वहीं जन सुराज ने स्थानीय स्तर पर लोकप्रिय जितेंद्र पासवान को मैदान में उतारा है. बेलागंज की तरह, जहां दो यादव एक-दूसरे के खिलाफ हैं, इमामगंज में दो मांझियों के बीच लड़ाई होगी और जन सुराज को इससे फायदा होने की उम्मीद है.

चुनाव के नतीजे तय करेंगे कौन होगा बिहार में सबसे बड़ी पार्टी

चार सीटों के लिए हुए उपचुनाव के नतीजे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले विधानसभा का गणित बदल सकते हैं. फिलहाल, 78 सीटों के साथ भाजपा विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी है, जबकि 77 सीटों के साथ राजद दूसरे नंबर पर है. अगर राजद रामगढ़ और बेलागंज में अपनी दोनों सीटें बरकरार रखने में सफल हो जाती है, तो वह 79 सीटों पर पहुंच सकती है, जो भाजपा से एक अधिक होगी, लेकिन अगर भाजपा एक या दो सीटें जीतती है, तो वह अपनी बढ़त को बराबर या बरकरार रख सकती है. जेडी(यू) के लिए यह मनोवैज्ञानिक बढ़त के अलावा और कुछ नहीं होगा.

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