Sharadiya Navratri 2024 : देश भर में आज से शारदीय नवरात्र की धूम शुरु हो गई है.पितृपक्ष की समाप्ति के बाद अब देशभर के दुर्गा पंडालों में मां दूर्गा के नौ रुपों की स्थापना की तैयारी पूरी हो गई है . देश भर में इसे कहीं दुर्गा नवरात्री तो कहीं दूर्गा पूजा के नाम से जाना जाता है.
Sharadiya Navratri 2024 :भारत के पूर्व में दूर्गा पूजा
शारदीय दूर्गापूजा की धूम ऐसे को पूर्वी भारत जैसे असम, उड़ीसा, मणिपुर, मेघायल, बिहार, झारखंड सभी जगह देखने के लिए मिलती है लेकिन सबसे दूर्गा पूजा का सबसे भव्य और प्रचलित आयोजन पश्चिम बंगाल में होता है. पश्चिम बंगाल में दूर्गा पूजा साल का सबसे बड़ा आयोजन होता है.
दिल्ली यूपी गुजरात समेत मध्य भारत में नवरात्री की धूम
पूर्वी भारत में जहां दूर्गा पूजा का नाम से आयोजन होता है वहीं दिल्ली , उत्तर प्रदेश , गुजरात महाराष्ट्र समेत उत्तर भारत में नौ दिन की पूजा नवरात्री के रुप में मनाई जाती है.
नवरात्री के मौके पर दूर्गा पंडालों के साथ साथ गरबा का मैदान भी तैयार किया जाता है. गुजरात महाराष्ट्र में इन दिनों में मां गरबी देवी की पूजा होती है और घट स्थापना के साथ ही नवरात्र महोत्व का आरंभ हो जाता है. दिल्ली उत्तर प्रदेश और दूर्गा पूजा और नवरात्र साथ साथ मनाये जाये हैं.
आज से शारदीय नवरात्र की शुरुआत
शरादीय नवरात्र की शुरुआत आज शुभ मुहुर्त में घट स्थापना के साथ परंपरागत रुप से शुरु हो जायेगी. दूर्गा पूजा के लिए पंडाल सज कर तैयार हैं. इन पंडालों में अगले 9 दिन तक महिषासुर मर्दनी मां जगदंबा की आराधना होगी. इस साल दूर्गा पूजा की शुरुआत 3 अक्टूबर यानी आज गुरुवार से हो रही है जो 12 अक्टूबर तक चलेगी.
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
हिंदु मान्यताओं के मुताबिक नवरात्रि के पहले दिन देवी के प्रथम रुप की आराधना करन से पहले शुभ मुहूर्त में कलश यानी घट की स्थापना करनी चाहिये. पूजा के दौरान कलश को ब्रह्मांड का स्वरुप माना जाता है. एक कलश में ब्रम्हा , विष्णु, महेश और संसार की सभी जीवनदायनी नदियों का वास मान जाता है. इस लिए हिंदु धर्म में विधि विधान के साथ कलश की स्थापना को शुभ फलदायनी माना जाता है. इस साल शारदीय नवरात्रि पर कलश स्थापना के लिए दो शुभ मुहूर्त बताये गये हैं. इस शुभ मूहूर्त के बारे में पंडित ईश्वर चंद तिवारी का कहना है कि हमार देश मे कई तरह के पंचांग है, जिसमें अलग अलग मत दिखाई देते हैं लेकिन जो निष्कर्ष निकाला गया है उसके मुताबिक कलश स्थापना के लिए 3 अक्टूबर गुरुवार को दो मुहूर्त है
पहला शुभ मुहूर्त – सुबह 6 बजकर 22 मिनट से लेकर सुबह 7 बजकर 40-42 मिनट तक
दूसरा शुभ मुहूर्त – अभिजीत मुहूर्त सुबह 11.45 मिनट लेकर 12.50 मिनट तक)
पंडित ईश्वर चंद तिवारी के मुताबिक सबसे उत्तम मूहूर्त सुबह 11.45 से 15.50 तक का है.
अगले नौ दिन तक होगी मां दूर्गा के नौ रुपों की पूजा
अगले नौ दिन में लगातार विधि-विधान से दूर्गा सप्तशती का पाठ मंत्रोचार के साथ होगा. वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु के आगमन पर आने वाले इस त्योहार के दौरान होने वाले मंत्रोच्चारण से पूरा वातावरण दिव्य उर्जा से भर जाता है. यही कारण है कि शारदीय नवरात्र में दूर्गा सप्तशती के पाठ का बड़ा महत्व है.
किस वाहन से धरती पर विराज रही हैं देवी दूर्गा
हिंदु धर्म में मान्यता है कि वैसे तो ईश्वर हर क्षण में अपने भक्तों के लिए सूक्ष्म रुप में विराजमान रहते हैं लेकिन पृथ्वी पर कुछ खास मौके होते हैं, जब देवी देवता अपने सबसे भव्य रुप में स्वर्गलोक से धरतीलोक पर पधारते हैं. देवी देवता जिस वाहन से पधारते हैं, उसका भी बड़ा महत्व है.माना जाता है कि देवी देवता का वाहन आने वाले साल के बारे में संदेश भी लेकर आता है. इस बार देवी का आगमन पालकी पर हो रहा है. माना जा रहा है कि देश और समज के लिए ये शुभ फलदायी दे लेकिन माता का प्रस्थान मुर्गा वाहन पर होगा, जो देस और समाज के लिए कष्ट लेकर आ सकता है.
नवरात्र के दौरान देवी दूर्गा के नौ रुपों की पूजा
कलश रुप में मां दुर्गा की स्थापना के साथ ही नवरात्र के दौरान देवी के नौ रुपों की पूजा शुरु हो जाती है और हर रुप का एक खास महत्व होता है.
पहला रुप- मां शैलपुत्री
दूसरा रुप – मां ब्रह्मचारिणी
तीसरा रुप – मां चन्द्रघण्टा
चौथा रुप – मां कूष्माण्डा
पांचवा रुप – मां स्कंदमाता
छठा रुप – मां कात्यायनी
सातवां रुप – मां कालरात्रि
आठवां रुप – मां महागौरी
नौवां रुप – मां सिद्धिदात्री
दसवें दिन महिषासुर मर्दन के बाद देवी के विजयी रुप की पूजा होती है.
नवरात्री की अंतिम तिथी को देवताओं की मनोकामना सिद्धी का दिन भी माना जाता है.इसी दिन मां दुर्गा ने महिषासुर के मर्दन के बाद देवताओं के मनोकामनाओं की पूर्ति की थी.यही कारण है कि आस्थावान भक्त जो इन दिनों में व्रत रखते हैं, वो सिद्धरात्री को पूजन के बाद अपने व्रत को पूरा करते हैं.
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शारदीय नवरात्र में मां दूर्गा की उपासना का ये त्योहार ये संदेश लेकर भी आता है कि नारी अगर शैलपुत्री की तरह सहनशील सौम्य हो सकती है,तो जगत के कल्याण के लिए कालरात्री का रुप लेकर महिषासुर मर्दनी भी बन सकती हैं.