Prasad under scrutiny: तिरुपति देवस्थानम में ‘लड्डू’ विवाद के बाद, उत्तर प्रदेश के विभिन्न धार्मिक शहरों में ‘प्रसाद’ तैयार करने की प्रक्रिया जांच के घेरे में आ गई है. इसी के मद्दे नज़र राज्य में ‘प्रसाद’ की गुणवत्ता की जांच के लिए एक राज्यव्यापी अभियान चलाया जाएगा, जिसमें मंदिरों में दी जाने वाली मिठाइयों की प्रयोगशाला में जांच की जाएगी. इस कदम का उद्देश्य ‘प्रसाद’ की पवित्रता में भक्तों की आस्था और विश्वास को बहाल करना है.
आयुष, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन मंत्री दयाशंकर मिश्र दयालु ने कहा कि यह निर्णय जनहित में लिया गया है.
Prasad under scrutiny: एफएसडीए व्यापारियों से संवाद स्थापित करेगा- मंत्री
एफएसडीए अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे मंदिरों के सामने भोग बेचने वाले दुकानदारों से संवाद स्थापित करें, खास तौर पर अयोध्या, वाराणसी और प्रयागराज जैसे धार्मिक शहरों में. व्यवसाय मालिकों को गुणवत्ता जांच के बारे में आश्वस्त किया जाएगा ताकि वे अपने खाद्य पदार्थों की जांच के समय सहयोग करें. एफएफएसडीए प्रयोगशालाओं में प्रसाद की व्यापक जांच करेगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह अशुद्धियों और मिलावट से मुक्त है.
व्यवसाय मालिकों को आश्वस्त किया जाएगा कि गुणवत्ता जांच उनके हित में है-मंत्री
मंत्री ने कहा, “हमने तिरुपति मंदिर में हुई घटनाओं को गंभीरता से लिया है, जहां प्रसाद की गुणवत्ता को लेकर चिंता जताई गई थी. एफएसडीए अधिकारियों को न केवल प्रसाद की जांच करने बल्कि मंदिरों के बाहर भोग बेचने वाले दुकानदारों और विक्रेताओं से बातचीत करने का भी काम सौंपा गया है. यह अयोध्या, वाराणसी और प्रयागराज जैसे धार्मिक शहरों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहां प्रसाद की बिक्री एक आम बात है. व्यवसाय मालिकों को आश्वस्त किया जाएगा कि गुणवत्ता जांच उनके हित में है और इससे उन्हें अपने उत्पादों में उच्च मानक बनाए रखने में मदद मिलेगी.”
अयोध्या में हनुमानगढ़ी अखाड़ा करेगा लड्डुओं की जांच
अयोध्या में हनुमानगढ़ी अखाड़े ने खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन की मदद से मंदिर के आसपास बिकने वाले लड्डुओं की लैब जांच शुरू करने का फैसला किया है. अखाड़े का लक्ष्य अफवाहों को दूर करना और प्रसाद की शुद्धता सुनिश्चित करना है. अखाड़े ने सभी विक्रेताओं से सैंपलिंग और जांच प्रक्रिया के बारे में बातचीत शुरू कर दी है. हिंदुस्तान टाइम्स की खबर की मुताबिक संकटमोचन सेना के राष्ट्रीय प्रमुख और अखाड़ा परिषद के पूर्व अध्यक्ष महंत ज्ञानदास के उत्तराधिकारी महंत संजय दास ने कहा कि सभी विक्रेताओं को पहले ही लड्डू तैयार करने के लिए केवल ब्रांडेड और अनुमोदित सामग्री का उपयोग करने के लिए कहा गया था. उन्होंने कहा कि जिस भी विक्रेता की मिठाई लैब टेस्ट में फेल हो जाएगी, उसे अपनी दुकान बंद करनी होगी और हनुमानगढ़ी क्षेत्र में उसे प्रसाद बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा.
हिंदुस्तान टाइम्स की खबर की मुताबिक, मोदनवाल समाज के जिला अध्यक्ष और अयोध्या व्यापार संघ के महासचिव नंदलाल गुप्ता ने बताया कि हनुमानगढ़ी क्षेत्र में अधिकांश विक्रेता अब पहले से बने लड्डू खरीदने के बजाय खुद ही लड्डू बनाने लगे हैं. ये विक्रेता अखाड़े द्वारा अनुमोदित घी के एक विशिष्ट ब्रांड का उपयोग करते हैं. मुख्य खाद्य सुरक्षा अधिकारी (सीएफएसओ) पीके त्रिपाठी ने कहा कि भगवान राम की प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के बाद से ही विभाग खाद्य उत्पादों, खासकर प्रसाद की गुणवत्ता में सुधार की दिशा में काम कर रहा है. उन्होंने पुष्टि की कि समारोह से पहले विभाग ने विभिन्न दुकानों से नमूने लिए और कोई भी नमूना गुणवत्ता परीक्षण में विफल नहीं हुआ. मथुरा में, एफएसडीए ने मंदिरों के पास के बाजारों की दुकानों से नमूने लिए हैं. मथुरा में खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन (एफएसडीए) का नेतृत्व करने वाले सहायक आयुक्त डॉ धीरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा, ‘हमने मथुरा और वृंदावन के बाजारों में 40 से अधिक दुकानों और मुख्य रूप से मंदिरों के पास की दुकानों से नमूने एकत्र किए हैं. सभी नमूने आवश्यक मानकों को पूरा करते हैं.’
इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाने के लिए मथुरा एफएसडीए ने हाल ही में एक अभियान शुरू किया है. धार्मिक नगरी मथुरा और वृंदावन में मिठाई विक्रेताओं को मानकों के बारे में जागरूक करने के लिए ‘फूड सेफ्टी ऑन व्हील्स’ नामक वाहन चलाया गया.
डिंपल यादव ने खोया में मिलावट का लगाया था आरोप
बता दें कि मैनपुरी से समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव ने रविवार को मैनपुरी में मीडिया से बातचीत में मथुरा की दुकानों पर बिकने वाले ‘खोया’ (दूध से बना उत्पाद) में मिलावट का आरोप लगाया था और मामले की जांच की मांग की थी.
हालांकि, मथुरा में धार्मिक मामलों के जानकारों का दावा है कि मथुरा और वृंदावन में अधिक से अधिक गौशालाएं स्थापित करने के मुख्यमंत्री के विशेष प्रयासों के बाद दूध की आपूर्ति में कोई कमी नहीं रही और कुल मिलाकर दूध उत्पाद विक्रेताओं को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा, जिससे दुकानों पर बिकने वाले प्रसाद में मिलावट का डर कम हो गया.
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