Tuesday, October 8, 2024

भारत ने पाकिस्तान के बीच हुए सिंधु जल समझौते में संशोधन की मांग की, मोदी सरकार की बडी पहल

Indus Water Treaty : 1960 में भारत पाकिस्तान के बीच हुए इस ऐतिहासिक संधि पर भारत पाकिस्तान और विश्व बैंक ने हस्ताक्षर किये थे. पाकिस्तान की तरफ से लगातार समझौते के नियमो के उल्लंघन को लेकर भारत सरकार ने इस संधि में सुधार की मांग की है.  मोदी सरकार की इस मांग को ऐतिहासिक गलती को सुधारने की दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचायक माना जा रहा है.

Indus Water Treaty : भारत ने पाकिस्तान को भेजा नोटिस 

भारत सरकार ने 1960 की सिंधु जल संधि के बावजूद पडोसी देश पाकिस्तान की तरफ से लगातार हो रहे उल्लंघन को रेखांकित करते हुए इसी साल 30 अगस्त को पाकिस्तान को एक औपचारिक नोटिस भेजा है, जिसमें संधि की समीक्षा और संशोधन की मांग की गई है. सिंधु जल समझौते के अनुच्छेद XII (3) के तहत ये कहा गया है कि इस संधि के प्रावधानों को समय-समय पर दोनों सरकारों के बीच इसके उद्देश्य की पूर्ति के लिए संशोधित किया जा सकता है.

भारत सरकार ने पहली बार जनवरी 2024 में भेजा था नोटिस

दरअसल भारत ने जनवरी 2023 में भी पाकिस्तान को सिंधु जल समझौते में संशोधन करने की मांग को लेकर नोटिस भेजा था.  2023 में भारत ने पहली बार 1960 में हुए इस संधि में संशोधन की मांग की थी. भारत ने पाकिस्तान को ये नोटिस सिंधु जल संधि के अनुच्छेद 12 के तहत भेजा था. भारत ने पाकिस्तान को नोटिस भेजते हुए जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजनाओं पर चल रहे विवादों को सुलझाने में पाकिस्तान के “अड़ियल रवैये” का जिक्र किया था. इस सिलसिले मे पाकिस्तान ने हेग (Hague) के उस रुख का भी विरोध किया था जिसमें पाकिस्तान ने   मध्यस्थता करवाने के लिए एकतरफ़ा फ़ैसला किया था.

सिंधु जल समझौता को लेकर भारत की चिंता    

1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के समय हुए  इस संधि को लेकर भारतीय की चिंता वर्तमान परिस्थियों में हुए मौलिक और अप्रत्याशित परिवर्तनों को लेकर हैं. इन परिवर्तनों को समाहित करने के लिए संधि के विभिन्न अनुच्छेदों के तहत तय किय गये दायित्वों का पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है.

भारत सरकार के तर्क

भारत सरकार ने संधि में संशोधन के लिए खासकर 3 बिंदुओं पर अपनी चिंता जाहिर की है

  1. जलवायु परिवर्तन के कारण नदियों के जल विज्ञान पर असर पड़ रहा है और बढ़ती आबादी की वजह से भी दबाव बढ़ रहा है.
  2. सिंधु जल संधि में जल के उपयोग में ज़्यादा लचीलापन होना चाहिए.इसमें नदी बेसिन से दूसरे बेसिन में पानी हस्तांतरित करने की अनुमति होनी चाहिए.
  3. भारत ने संशोधन की मांग करते हुए कहा है कि सिंधु जल संधि के प्रबंधन में बेसिन-आधारित दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए.इस दृष्टिकोण में सिंधु बेसिन के जल संसाधनों को एक साथ प्रबंधित किया जाएगा.
रतले और किशनगंगा परियोजनाओं के संचालन पर विवाद

दरअसल  भारत और पाकिस्तान के बीच ये सिंधु जल संधि में संशोधन की मांग की एक बड़ी वजह जम्मू कश्मीर के रतले और किशनगंगा जलविद्युत परियोजनाओं के संचालन पर लंबे समय से चला आ रहा विवाद भी है. हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट मुताबिक भारतीय अधिकारियों का मानना ​​है कि पाकिस्तान भारत की तरफ चल रहे परियोजनाओं  में निरंतर बाधा डालता रहा है और सिंधु जलसंधि के तहत भारत की उदारता का अनुचित लाभ उठाता रहा है. इस मामले में पाकिस्तान की मध्यस्था वाले एक तरफे फैसले के कारण ये स्थिति अधिक विकट हो गई है, क्योंकि पाकिस्तान के अपील के बाद विश्व बैंक ने भारत के सभी तर्कों को किनारे कर तटस्थ विशेषज्ञ तंत्र और मिडियेशन कोर्ट को एक साथ सक्रिय कर दिया है.जबकि भारत लगातार ये कहता रहा है कि संधि के विवाद और इसके समाधान के लिए पुनर्विचार की जरुरत है.

सिंधु जल बंटबारे को लेकर पाकिस्तान का अडियल रवैया बना रोड़ा

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत सरकार का ये निर्णय सिंधु जल बंटवारे को लेकर पाकिस्तान के अड़ियल रवैये और सीमा पार से लगातार हो रहे आतंकवादी हमलों पर बढ़ते गुस्से के कारण है.भारत का ये असंतोष इस लिए भी बढ़ रहा है क्योंकि 1960 में हुई संधि तत्कलीन सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ संपन्न हुई थी लेकिन समय के साथ इसमें बदलाव आता गया और पाकिस्तान की तऱफ से लगातार संधि के नियमों का उल्लंघन होता रहा है.समय के साथ  दोनो देशों के स्थिति गहरे दुश्मन की  होती चली गई. पाकिस्तान की तरफ से लगातार आतंकवाद का समर्थन देखने के लिए मिलता रहा है.

रिपोर्ट्स के मुताबिक सिंधु जल समझौते को लेकर जम्मू कश्मीर में भी असंतोष है और यहां से भी  इस संधि की समीक्ष की मांग की जाती रही है.  जम्मू कश्मीर के लोगों का मानना है कि बिना किसी परामर्श के उनके अधिकारों को छीन लिया गया था. पंजाब और हरियाणा में भी पानी को लेकर भावनाएं प्रबल रही हैं.

विश्वत सूत्रों के मुताबिक सरकार ने सिंधु जल समझौते के लिए संशोधन का नोटिस सरकार के भीतर व्यापक विचार-विमर्श के बाद भेजा गया है. इसे मोदी सरकार की ऐतिहासिक गलती को सुधारने की दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचायक माना जा रहा है.

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