Wednesday, December 10, 2025

संकष्टी चतुर्थी पर ग्रह बाधा दूर करने के लिए ऐसे करें गणेश पूजन, चंद्रमा को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का करें जप

हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है, लेकिन पौष माह में अखुरथ संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है, जो कि भगवान गणेश को समर्पित है. इस दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाती है. भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है क्योंकि वह अपने भक्तों के सभी विघ्नों को दूर कर देते हैं. यह तिथि सभी संकटों को दूर करने वाली है और हर कार्य में सफलता मिलती है. सारावली में गणेश को आरंभ का देवता कहा गया है अर्थात् जो भी कार्य शुभ संकल्प के साथ इस दिन शुरू किया जाए, उसमें बाधाओं की संभावना बहुत कम रहती है. आइए जानते हैं अखुरथ संकष्टी चतुर्थी तिथि का महत्व, कर्ज और ग्रह बाधा दूर करने के लिए ऐसे करें गणेशजी की पूजा…

अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का महत्व
अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का महत्व यह है कि यह तिथि विघ्नहर्ता ऊर्जा के उदय का समय है. यह तिथि मानसिक एवं ग्रहजन्य कष्टों को शांत करती है और मंगल, चंद्र, राहु–केतु की बाधाएं कम करती है. गणेशजी की कृपा से यह तिथि संकल्प सिद्धि और कार्य-सफलता प्रदान करती है. इस दिन चंद्र दर्शन के बाद व्रत खोलना, गणपति अथर्वशीर्ष या संकट नाशक गणेश स्तोत्र, दूर्वा, मोदक, लाल पुष्प का अर्पण और राहु–केतु संबंधित पीड़ाओं में गणेश जी को श्री गणेशाय नमः की 108 बार जप करने का विशेष शुभ माना जाता है.

अखुरथ संकष्टी चतुर्थी पंचांग 2025
द्रिक पंचांग के अनुसार, सोमवार को सूर्य वृश्चिक राशि में और चंद्रमा कर्क राशि में रहेंगे. इस तिथि को अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 52 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय सुबह 8 बजकर 20 मिनट से शुरू होकर 9 बजकर 37 मिनट तक रहेगा.

अखुरथ संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
पौष मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को अखुरथ संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन गजानन की पूजा करने से साधक हर काम में सफलता हासिल करता है. साथ ही माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह व्रत रख सकती हैं. इस व्रत की शुरुआत करने के लिए जातक ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करने के बाद पीले वस्त्र पहनकर पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें.
इसके बाद भगवान गणेश की प्रतिमा के समक्ष दूर्वा, सिंदूर और लाल फूल अर्पित करने के बाद श्री गणपति को बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं. इनमें से 5 लड्डुओं का दान ब्राह्मणों को करें और 5 भगवान के चरणों में रख बाकी प्रसाद में वितरित करें. पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, और संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. ॐ गं गणपतये नमः मंत्र का 108 बार जाप करें. शाम के समय गाय को हरी दूर्वा या गुड़ खिलाना शुभ माना जाता है.

अर्घ्य देते समय इस मंत्र का करें जप
संकटों से मुक्ति के लिए चतुर्थी की रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देते हुए ‘सिंहिका गर्भसंभूते चन्द्रमांडल सम्भवे. अर्घ्यं गृहाण शंखेन मम दोषं विनाशय॥’ मंत्र बोलकर जल अर्पित करें. यदि संभव हो तो चतुर्थी का व्रत रखें, जिससे ग्रहबाधा और ऋण जैसे दोष शांत होते हैं.

Latest news

Related news