Thursday, December 5, 2024

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के 136वें दीक्षांत समारोह में सम्मिलित हुए सीएम योगी,कुमार विश्वास को डी. लिट् की मानद उपाधि

प्रयागराज, 27 नवंबर।   मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ CM Yogi ने युवाओं को रिफॉर्म के प्रति सकारात्मक भाव अपनाने का आह्वान किया है, उन्होंने कहा है कि युवाओं को नए ज्ञान से अपने आप को वंचित नहीं करना चाहिए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के 136वे दीक्षांत समारोह के मंच से युवाओं को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि हर नया ज्ञान अपने आप में एक विज्ञान होता है। जब भी आप अपने आप को इससे दूर करेंगे तो आप अपने लिए एक बैरियर खड़ा करेंगे। उन्होंने कहा कि तमाम लोग नई बातों को और नए रिफॉर्म को अंगीकार नहीं कर पाते। जब कोई नयापन आता है तो लोग झंडा लेकर उसका विरोध करने निकल पड़ते हैं। वो समय गया जब नारे लगते थे कि मेरी मांगे पूरी हों, चाहे जो मजबूरी हो। देश और समाज का उत्थान इसमें कभी नहीं हो सकता।

याद रखना हमारा एक-एक पल, एक-एक क्षण राष्ट्र धर्म के प्रति समर्पित होना चाहिए। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि जो लोग जाति, मत और मजहब के आधार पर छात्र शक्ति और युवा शक्ति को बांटने की कोशिश कर रहे हैं, वो भारत की युवा शक्ति और युवा ऊर्जा को विभाजित करने का पाप कर रहे हैं। ऐसे लोगों को कभी भी आगे नहीं बढ़ने देना चाहिए।

CM Yogi दीक्षांत समारोह में शामिल हुए

मुख्यमंत्री योगी, बुधवार को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के 136वें दीक्षांत समारोह में सम्मिलित हुए। इस अवसर पर उन्होंने यहां छात्र एवं छात्राओं को डिग्री प्रदान की। इससे पूर्व विश्वविद्यालय की कुलपति संगीता श्रीवास्तव ने सीएम योगी CM Yogi  को स्मृति चिन्ह देकर एवं शॉल ओढ़ाकर स्वागत किया। वहीं कुलाधिपति आशीष कुमार चौहान ने दीक्षा पाने वाले छात्रों को शपथ दिलाई। सीएम योगी ने प्रख्यात कवि डॉ. कुमार विश्वास को विश्वविद्यालय की ओर से डी.लिट् की मानद उपाधि भी प्रदान की। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम नए ज्ञान की परंपरा से अपने आप को वंचित नहीं कर सकते। समय की गति बड़ी निराली है। जो उसके साथ आगे नहीं बढ़ पाता है तो समय उसकी दुर्गति कर देता है। हमें दुर्गति का शिकार नहीं बनना है। हमें नए ज्ञान से ओतप्रोत होना होगा।

पुरातन गौरव हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है विश्वविद्यालय

अपने उद्बोधन में सीएम योगी CM Yogi  ने कहा कि ये आनंद का क्षण है कि जब प्रयागराज की इस पावन धरा पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इस दीक्षांत समारोह के अवसर पर आप सबके बीच में आने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय अपनी प्रतिष्ठा के लिए जाना जाता है। समाज का ऐसा कौन सा क्षेत्र है, जहां के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने ऊर्जावान युवाओं को न तैयार किया हो। लेकिन समय की एक गति होती है और अगर हम उस गति से कदम से कदम मिलाकर चलते हैं तो समाज, देश और दुनिया हम सबका अनुसरण करती है और अगर हम उससे पीछे हैं तो हमें पिछलग्गू होने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

कहीं न कहीं, इलाहाबाद विश्वविद्यालय भी इसी द्वंद्व का शिकार हुआ होगा। लेकिन इस सभी विपरीत परिस्थितियों और झंझावतों के बीच भी विश्वविद्यालय ने चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करते हुए फिर से उस प्रतिष्ठा को प्राप्त करने की तड़प दिखाई है। विश्वास से कह सकता हूं कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय अपने पुरातन गौरव को हासिल करेगा, इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है।

दीक्षांत उपदेश छात्र के जीवन की नूतन शुरुआत – CM Yogi

सीएम योगी ने समारोह में दीक्षांत उपदेश का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जब हम दीक्षांत उपदेश की चर्चा करते हैं तो यह केवल दीक्षा का अंत नहीं है बल्कि एक नूतन शुरुआत होती है। हमारा देश भारत है, जिसका मतलब ही है ज्ञान में रत रहने वाला। उच्च शिक्षा का केंद्र कैसा होना चाहिए, प्राचीन भारत ने दुनिया को दिखाया था। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक ग्रंथ के रूप में भारत की ऋषि परंपरा ने उपनिषदों की रचना की और उसी उपनिषद की पंक्तियां हमारे गुरुकुल में दीक्षांत उपदेश के रूप में अंगीकार की गईं जिसे हम तैत्तिरीय उपनिषद के रूप में बोलते हैं कि सत्यं वद, धर्मं चरः, स्वाध्यायान्मा प्रमदः सत्यान्न प्रमदितव्यम्, धर्मान्न प्रमदितव्यम्, कुशलान्न प्रमदितव्यम्। ये तैत्तिरीय उपनिषद का वह दीक्षांत उपदेश है जो हमारे गुरुकुल में आज से नहीं हजारों वर्षों से अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद एक नए जीवन में प्रवेश करने वाले छात्र को प्रदान किया जाता था। इसमें सत्य की बात भी है और धर्म की बात भी है। 5000 वर्ष पहले भगवान वेदव्यास को भी कहना पड़ा था कि मैं बाहें उठाकर लोगों को समझा रहा हूं कि धर्म से ही अर्थ और काम की प्राप्ति होती है, इसलिए क्यों धर्म के मार्ग पर नहीं चलते।

मानवता के संकट के समय भारत हमेशा रहा मददगार

सीएम योगी ने कहा कि हमारे यहां धर्म की बहुत विराट परिभाषा है। अगर आप इसे भारत के संविधन के मूल में इसको देखेंगे तो यह कहता है कि कर्तव्य, सदाचार और नैतिक मूल्यों का जो प्रवाह है जिस पर व्यक्ति और समाज का जीवन टिका है, वही धर्म है। हमारे दर्शन कहते हैं कि धर्म वह नहीं है जिसको हम आज के दिन पर मान रहे हैं, धर्म वह है जो हमारे अभ्युदय यानी सांस्कारिक उत्कर्ष का मार्ग प्रशस्त करे और जीवन के बाद मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करे। भारतीय मनीषा ने धर्म को कभी किसी संकीर्ण दायरे में नहीं रखा। हमने सबको स्वीकार किया। पूरी दुनिया की मानवता के सामने जब भी संकट आया भारत हमेशा बाहें फैलाकर करके खड़ा था कि आओ हमारे यहां शरण लो, हम तुम्हारी रक्षा करेंगे। हमने कभी अपने स्वार्थ के लिए किसी का अहित नहीं किया। ये है सनातन धर्म, ये है भारत।

जिन्होंने संविधान का गला घोंटा, वही आज संविधान बचाने का ढिंढोरा पीट रहे

विपक्षी दलों पर प्रहार करते हुए सीएम ने कहा कि क्या भारतीय मनीषा ने धर्म को केवल उपासना विधि माना है, नहीं। मंगलवार को भारत के संविधान का दिवस था। 26 नवंबर 1949 को भारत ने अपना संविधान अंगीकर किया था और 26 जनवरी 1950 से यह लागू हुआ। तब जो संविधान की मूल प्रति है उसमें कहीं भी पंथ निरपेक्ष और समाजवादी शब्द नहीं था। ये दो शब्द जोड़े गए तब जब देश में संसद भंग थी, न्यायपालिका के अधिकार कुंद कर दिए गए थे। इस देश के लोकतंत्र पर कुठाराघात हुआ था और जिन लोगों ने संविधान का गला घोंटने का काम किया था, वो लोग आज संविधान बचाने का ढिंढोरा पीटते जा रहे हैं। वह कह रहे हैं कि संविधान खतरे में है, लोकतंत्र खतरे में है। प्रश्न यह उठता है कि यह समाज उन लोगों का मूल्यांकन कब करेगा जो लोग स्वयं लोकतंत्र के लिए खतरा हैं। जिन लोगों ने संविधान पर अपनी मर्जी से न सिर्फ छेड़छाड़ का प्रयास किया, बल्कि लोकतंत्र को पूरी तरह पैरालाइज करने का प्रयास किया। ऐसे शब्द डाल दिए कि वह पंत निरपेक्ष से धर्म निरपेक्ष हो गया।

युवाओं ने जब भी अंगड़ाई ली, कुछ नया जरूर हुआ है

उन्होंने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि युवाओं ने जब भी अंगड़ाई ली है कुछ नया जरूर हुआ है। लक्ष्य तक जरूर पहुंचे हैं। उन्होंने भगवान राम, श्रीकृष्ण भगवान बुद्ध, महावीर समेत देश के तमाम क्रांतिकारियों का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि पंडित रामप्रसाद बिल्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई। उनसे पूछा गया कि उनकी अंतिम इच्छा क्या है। उन्होंने ये नहीं कहा कि मुझे मुक्ति मिले, उन्होंने ये नहीं कहा कि मुझे कोई रत्न मिले। एक ही बात थी मातृभूमि के लिए, गुलामी की बेड़ियों को समाप्त करने के लिए।

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